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बंगाल विभाजन के समय वायसराय कौन था

बंगाल विभाजन

बंगाल विभाजन ( bangaal ka vibhaajan -1905) के समय लार्ड कर्जन गवर्नर जनरल था। लार्ड कर्जन का गवर्नर काल भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का उच्चतम बिन्दु था। इनके विभिन्न प्रशासकीय कार्यों में जिस कार्य का सर्वाधिक विरोध हुआ और जो उसका सबसे विवादास्पद कार्य था वह था बंगाल का विभाजन। बंगाल विभाजन को इतिहास में बंग-भंग के नाम से भी जाना जाता है। यह अंग्रेजों की “फूट डालो – शासन करो” वाली नीति का ही एक अंग था।

कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन का निर्णय ( 1905 ) भारतीय राष्ट्रवाद पर किया गया एक प्रच्छन्न प्रहार था।बंगाल प्रेसीडेंसी तत्कालीन सभी प्रेसीडेंसियों में सबसे बङी थी, इसमें पश्चिमी और पूर्वी बंगाल सहित बिहार और उङीसा भी शामिल थे। असम बंगाल से 1874 ई. में ही अलग हो चुका था।

बंगाल विभाजन का कारण(Reason for Partition of Bengal)

अंग्रेजी सरकार ने बंगाल को विभाजित करने का कारण यह बताया कि इतने बङे प्रांत को विभाजित किये बिना इसका शासन सुव्यवस्थित रूप से नहीं किया जा सकता। बंगाल उस समय राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र बिन्दु था और इसी चेतना को नष्ट करने हेतु बंगाल विभाजन का निर्णय लिया गया।

बंगाल को केवल बंगालियों के प्रभाव से मुक्त करने के लिए नहीं बांटा गया बल्कि बंगाल में बंगाली आबादी को कम करना भी सरकार का उद्देश्य था। बंगाल विभाजन में एक और विभाजन धार्मिक आधार पर विभाजन अंतर्निहित था। 20 जुलाई, 1905 बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा हुई।

7अगस्त,1905 को कलकत्ता के टाऊन हाल में संपन्न एक बैठक में स्वदेशी आंदोलन की घोषणा हुई तथा बहिष्कार प्रस्ताव पारित हुआ।

16 अगस्त,1905 को बंगाल विभाजन की योजना प्रभावी हो गई।

विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक नया प्रांत बनाया गया जिसमें राजशाही, चटगांव, ढाका आदि सम्मिलित थे, जहाँ की कुल जनसंख्या 3 करोङ दस लाख थी, जिसमें एक करोङ अस्सी लाख मुसलमान तथा एक करोङ बीस लाख हिन्दू थे।ढाका यहां की राजधानी थी।

विभाजित बंगाल के दूसरे भाग में प. बंगाल,बिहार और उङीसा शामिल थे, जिसकी कुल जनसंख्या 5 करोङ 40 लाख थी जिसमें 4 करोङ20 लाख हिन्दू और 90 लाख मुसलमान थे।

16 अक्टूबर,1905 के दिन समूचे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया, लोगों ने उपवास रखा,वंदेमातरम् का गीत गाया और एक-दूसरे को राखी बाँधी।

विभाजन पर गोखले ने कहा था कि यह एक निर्मम भूल है

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने विभाजन पर कहा कि विभाजन हमारे ऊपर एक वज्र की तरह गिरा है।

स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन( indigenous and the boycott movement)

  • कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन का अनुमोदन किया गया।
  • स्वदेशी और बहिष्कार का प्रचार समूचे देश में करने का कार्य तिलक,लाला लाजपतराय और अरविन्द घोष ने किया।
  • इस समय चलाये गये बहिष्कार आंदोलन के अंतर्गत न केवल विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया बल्कि स्कूलों,अदालतों,उपाधियों, सरकारी नौकरियों आदि का भी बहिष्कार हुआ।
  • स्वदेशी आंदोलन की उपलब्धि थी, आत्मनिर्भरता और आत्म शक्ति।

स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव(Influence of indigenous movement)

  • स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिला, 15 अगस्त, 1906 को एक राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना की गई।आचार्य पी.सी.राय ने बंगाल केमिकल्स एवं फार्मास्युटिकल्स की स्थापना की।
  • स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव बंगाल के सांस्कृतिक क्षेत्र में देखने को मिला,बंगला साहित्य के लिए यह समय स्वर्णकाल जैसा था।टैगोर ने इसी समय आमार सोनार बांग्ला नामक गीत लिखा, जो 1971 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना। रवीन्द्रनाथ टैगोर को उनके गीतों के संकलन गीताजंलि के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
  • कला के क्षेत्र में अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने पाश्चात्य प्रभाव से बिल्कुल अलग पूर्णतः स्वदेशी पारस्परिक कला से प्रेरणा लेकर चित्रकारी शुरु की।
  • बहुउद्देशीय कार्यक्रम वाले स्वदेशी आंदोलन ने देश के एक बङे हिस्से को अपने प्रभाव में ले लिया जिसमें जमींदार, शहरी निम्न मध्यमवर्ग, छात्र तथा औरतें शामिल थी।
  • स्वदेशी आंदोलन के समय पहली बार महिलाओं ने परदे से बाहर आकर धरनों और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
  • किसान एवं बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन से ्लग रहा।
  • 1908 तक बंगाल में स्वदेशी आंदोलन की गति धीमी पङ गई क्योंकि इस आंदोलन से जुङे नेता तिलक,अश्विनी कुमार दत्त तथा कृषक कुमार को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया।
  • स्वदेशी आंदोलन ने समाज के उस बङे तबके में राष्ट्रीय भावना को जगाया जो राष्ट्रीयता से पूर्णतः अनभिज्ञ था, स्वदेशी ने सर्वाधिक भारत की सांस्कृतिक विचारधारा को प्रभावित किया।

निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि स्वदेशी आंदोलन साम्राज्यवाद के विरुद्ध पहला सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन था जो भावी संघर्ष का बीज बोकर समाप्त हुआ।

बंगाल विभाजन पर पूर्वी बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर बैमफायल्डे फुल्लर ने मुसलमानों को अपनी चहेती पत्नी के रूप में उल्लेखित किया।

महात्मा गांधी ने लिखा कि – भारत का वास्तविक जागरण बंगाल विभाजन के उपरान्त शुरु हुआ।

बंगभंग के विरुद्ध आन्दोलन

बंगभंग के विरुद्ध बंगाल के बाहर बहुत भारी आंदोलन हुआ। इस आंदोलन में देश के प्रसिद्ध कवियों और साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के वंदे मातरम् गीत को नई बुलंदियाँ प्रदान की। उस समय बंगाल को बाँट देने का अंग्रेजी कुचक्र तो टूटा ही, सारे देश में और विदेशों में इसे असाधारण ख्याति मिली। जर्मन और कनाडा जैसे देश भी इससे प्रभावित हुए।

बंगभंग की समाप्ति

सन् 1911 के 12 दिसम्बर को दिल्ली में एक दरबार हुआ, जिसमें सम्राट् पंचम जार्ज, सम्राज्ञी मेरी तथा भारत सचिव लार्ड क्रू आए थे। इस दरबार के अवसर पर एक राजकीय घोषणा-द्वारा पश्चिम और पूर्वी बंगाल के बँगला भाषी इलाकों को एक प्रांत में लाने का आदेश किया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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