आधुनिक भारतइतिहास

ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति(1858-1905)

1857 ई. की क्रांति की आग ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को भस्मीभूत कर दिया। अब भारत की सत्ता एवं प्रशासन प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश ताज ने ग्रहण कर लिया। 1856 ई. तक कंपनी सरकार ने ब्रिटिश साम्राज्य को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया था तथा महारानी विक्टोरिया की घोषणा में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि भविष्य में भारत में अंग्रेजी राज्य का विस्तार नहीं किया जायेगा।

भारतीय रियासतों पर भी ब्रिटिश सर्वोच्चता काफी अंशों तक स्थापित हो चुकी थी। महारानी की घोषणा में यह भी स्पष्ट कर दिया था कि अंग्रेज अपने साम्राज्य क्षेत्र अथवा अधिकारों का अतिक्रमण भी सहन नहीं करेगी। अतः अब ब्रिटिश सरकार की मुख्य नीति अपने भारतीय साम्राज्य को सुरक्षित रखने की दृष्टि से भारत के पङौसी राज्यों पर अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की थी।

इस नीति की अनुपालना हेतु ब्रिटिश सरकार ने साम्राज्यवादी नीति का सहारा लिया। चूँकि दक्षिण में भारत की सीमाएँ समुद्र और अंग्रेजों की विश्व-श्रेष्ठ नाविक शक्ति द्वारा सुरक्षित थी, अतः भारत की उत्तरी-पश्चिमी तथा उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित अफगानिस्तान और पूर्वी सीमा पर स्थित बर्मा और तिब्बत पर ब्रिटिश प्रभाव स्थापित करना अनिवार्य था। इसीलिए आगे चलकर अंग्रेजों ने बर्मा का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया तथा अफगानिस्तान व तिब्बत पर अपना राजनीतिक नियंत्रण स्थापित कर लिया था।

उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति

भारत में अंग्रेजों ने उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति का प्रारंभ 18 वी. शता. के अंत में किया, क्योंकि उस समय उन्हें पहले नेपोलियन और बाद में अफगानिस्तान के शासक जमानशाह के आक्रमणों की आशंका हुई। किन्तु जमानशाह को उसके सौतेले भाई मोहम्मद ने गद्दी से उतार दिया।

1803 ई. में शाहशुजा के भाई मोहम्मद से गद्दी छीन ली।1809 ई. में शाहशुजा के भाई मोहम्मदशाह ने अफगान गद्दी हथिया ली तथा शाहशुजा को अफगानिस्तान से भगा दिया।शाहशुजा ने भारत में अंग्रेजों की शरण ली।मोहम्मदशाह की सफलता का श्रेय फतेहखाँ को था जो बरकजई वंश का था।

फतेहखाँ के परिवार में उसके बीस भाई थे, जिन्होंने सत्ता के लिए होने वाले संघर्ष में फतेहखाँ की सहायता की। 1818 ई. में इन बरकजई भाईयों ने अफगानिस्तान के अलग-2 क्षेत्रों पर अधिकार करके अहमदशाह अब्दाली के वंशजों को समाप्त क दिया।बाद में बरकजई भाइयों में भी संघर्ष आरंभ हो गया। बरकजई भाइयों में सर्वाधिक योग्य व्यक्ति दोस्त मोहम्मद था, जिसने गजनी और काबुल पर अधिकार किया और अफगानिस्तान के मुख्य भाग पर शासन करने लगा।

अंग्रेजों की अफगान नीति

भारत में कंपनी राज्य का विस्तार दक्षिण और पूर्व से हुआ था। धीरे-2 उनके क्षेत्रों का, पूर्व से पश्चिम तथा दक्षिण से उत्तर की ओर विस्तार होने लगा तथा 19 वी. शता. के मध्य तक कंपनी राज्य की सीमा सतलज नदी तक पहुँच गई। अतः अब कंपनी के समक्ष सीमा सुरक्षा की नई समस्या उत्पन्न हो गयी।

ब्रिटेन की सामुद्रिक शक्ति अत्यंत प्रबल थी, अतः समुद्र की ओर से भारतीय साम्राज्य पर आक्रमण का कोई भय नहीं था। किन्तु उत्तरी-पश्चिमी सीमा से, जिधर से अब तक भारत पर विदेशी आक्रमण हुए थे, खतरे की संभावना बढ गई। अतः अब कंपनी के लिए इस सीमा की ओर ध्यान देना आवश्यक हो गया था।

फ्रांस में नेपोलियन के पतन के साथ ही अंग्रेजों को फ्रांसीसी खतरे से तो मुक्ति मिल गई, किन्तु अब उनके सामने एक नया खतरा उपस्थित हो गया। वह खतरा रूस का था।

यूरोप में रूस और इंग्लैण्ड के मध्य साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हो गई। रूस मध्य एशिया और अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव स्थापित करना चाहता था। अतः अंग्रेजों को भारतीय साम्राज्य पर संकट दिखाई देने लगा।

1813 ई. में रूस ने फारस के साथ संधि कर ली, जिससे अंग्रेजों को यह आशंका हुई कि रूस,फारस के सहयोग से अफगानिस्तान और भारत पर आक्रमण कर सकता है।

अग्रगामी और अकर्मण्यता की नीति

अंग्रेजों की अफगान नीति के निर्धारण में दो विचारधाराएँ प्रमुख हो गयी थी, जिनके जनक थे ग्लैडस्टोन और डिजरैली। ये दोनों राजनीतिज्ञ लगभग अर्द्ध शता. तक छाये रहे और इन्होंने न केवल यूरोपीय राजनीति को ही प्रभावित किया अपितु भारतीय प्रशासन भी इनकी नीतियों के प्रभाव से मुक्त नहीं रह सका।

एक सीमा तक भारत की विदेश नीति का संचालन भी इनके विचारों द्वारा होता रहा, विशेषकर अफगानिस्तान के विषय में। इंग्लैण्ड में एक वर्ग इस विचारधारा का था कि रूस संभवतः भारत पर अफगानिस्तान के मार्ग से आक्रमण करेगा, जिन्हें वहाँ रसो-फोबिया() कहा जाने लगा।अर्थात् स्वप्न में भी उन्हें यह भय बना रहता था कि भारत पर रूस का आक्रमण हो रहा है।

इंग्लैण्ड में एक दूसरा वर्ग इसके विपरीत विचारधारा का था, जिसके अनुसार भारत पर रूस का आक्रमण किसी भी स्थिति में नहीं हो सकता, क्योंकि सेंटपीटर्सबर्ग द्वारा इस प्रकार के युद्ध का संचालन करना संभव नहीं था। अतः भारत में इन दोनों विचारधाराओं से प्रभावित गवर्नर जनरल आते रहे। जो गवर्नर जनरल जिस विचारधारा से प्रभावित होता था उसी के अनुसार अपनी विदेश नीति का संचालन करता । इस प्रकार भारत-अफगान संबंध एक महत्त्वपूर्ण संबंध बन गये।अफगान नीति, किसी भी गवर्नर जनरल की सफलता और असफलता का मापदंड बन गयी।

उत्तर-पूर्वी सीमांत नीति

इस नीति में निम्नलिखित कार्य अंग्रेजों ने किये थे-

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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