1857 की-क्रांतिआधुनिक भारतइतिहास

1857 की क्रांति(1857 kee kraanti )क्या थीःकारण

1857 की क्रांति क्या थी

1857 की क्रांति

1857 की क्रांति(1857 kee kraanti )क्या थीः-

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास निरंतर साम्राज्य विस्तार तथा भारतीयों के आर्थिक शोषण का इतिहास है।अधिक से अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करना और अधिक से अधिक अपने साम्राज्य का विस्तार करना कंपनी का मुख्य लक्ष्य बन गया था।भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना छल,कपट,नीचता एवं शोषण से हुई थी।

अंग्रेजों की राज्य विस्तार लालसा से भारतीय शासकों को यह भय हो गया था कि अब अंग्रेज शीघ्र ही उनकी सत्ता को समाप्त कर देंगे। भारतीय शासकों के भय तथा नागरिकों के असंतोष के कारण 1857 ई. में उस भयानक ज्वालामुखी में भयंकर विस्फोट हो गया, जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता जलकर भस्म हो गई।

1857 की घटना भारतीय इतिहास की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है।अंग्रेजी लेखकों ने इस क्रांति का सबसे मुख्य कारण सैनिक विद्रोह बताया है।अंग्रेजी लेखकों ने सामान्य जनता के क्रांति में दिये गये योगदान की उपेक्षा की है, लेकिन सत्य तो यह है कि अंग्रेजों की प्रतिक्रियावादी नीतियों से भारतीय जनता असंतुष्ट थी।

इसी असंतोष के कारण 1816 में बरेली में,1832-33 में कील में,1848 में कांगङा ,जसवार और दातापुर के राजाओं ने विद्रोह किया और 1855-56 ई. में संथालों का विद्रोह हुआ। यद्यपि अंग्रेजों ने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर इन सारे विद्रोहों का दमन कर दिया, किन्तु इन विद्रोहों ने 1857 ई. की क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। 1857 ई. का विद्रोह अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध सबसे व्यापक एक क्रांति थी।

1857 ई. की क्रांति के कारण निम्नलिखित थे

राजनीतिक कारण-

क्रांति के अधिकांश राजनीतिक कारण डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति से उत्पन्न हुए थे। डलहौजी ने गोद – निषेध सिद्धांत से भारतीय जनता उत्तेजित हो उठी थी।इस सिद्धांत के अंतर्गत विभिन्न भारतीय नरेशों व राजवंशों को समाप्त कर दिया गया। कुछ राज्यों पर कुशासन का आरोप लगाकर उनका अपहरण कर लिया गया। इससे भारतीय नरेश नाराज हुए , लेकिन अंग्रेजों के अनन्य भक्त भी अपने अस्तित्व के प्रति संदेह प्रकट करने लगे।

नरेशों व राजवंशों की समाप्ति का प्रभाव उन पर आश्रित विभिन्न वर्गों पर भी पङा। कर्नाटक व तंजोर के शासकों की उपाधियाँ व पेंशन बंद करके अंग्रेजों ने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी कि यदि भारतीय अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध विद्रोह न करते तो उन्हें मनुष्यत्व गिरा हुआ कहा जाता। झाँसी के अपहरण से यह स्पष्ट हो गया था कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद के समक्ष शासकों के हित सुरक्षित नहीं रह सकते।

मुगल सम्राट के साथ किये गये दुर्व्यवहार से भी जनता क्रुद्ध हो उठी। भारतीयों की दृष्टि में अंग्रेज सैनिक दृष्टि से अजेय समझे जाते थे। किन्तु प्रथम अफगान युद्ध की घटना से भारतीयों के मन में यह बात जम गई कि यदि अफगान अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अंग्रेजों से टक्कर ले सकते हैं तो भारतीय क्यों नहीं ले सकते।

इसी समय यह अफवाह फैली कि रूस क्रीमिया युद्ध का बदला लेने के लिये भारत पर आक्रमण कर रहा है। इससे भारतीय अधिक प्रोत्साहित हुए, क्योंकि उनका विचार था कि जब अंग्रेज,रूस के साथ युद्ध में उलझे हुए होंगे तब उनके विरुद्ध विद्रोह करने पर सफलता मिल सकती है। इन परिस्थितियों में भारतीय उत्साहित हो ही रहे थे कि किसी ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि भारत में अंग्रेजों का राज्य सौ वर्ष बाद समाप्त हो जायेगा।1757 ई. में प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजी राज्य की स्थापना हुई थी और अब 1857 में सौ वर्ष पूरे हो चुके थे। इससे क्रांति का उचित वातावरण तैयार हो गया।

प्रशासनिक कारण-

लार्ड कार्नवालिस ने भारतीयों को अविश्वास की दृष्टि से देखा और उसने भारतीयों को उच्च पदों से वंचित कर दिया। यद्यपि 1833 के चार्टर एक्ट में जाति एवं रंगभेद नीति समाप्त कर कंपनी की सेवा में भारतीयों को लेने की घोषणा की गई थी, किन्तु इस एक्ट की यह धारा कभी कार्यान्वित नहीं की गई। न्यायिक क्षेत्र में भी अंग्रेज भारतीयों से श्रेष्ठ समझे जाते थे तथा भारतीय जजों की अदालतों में उनके विरुद्ध कोई मुकदमा दायर नहीं हो सकता था।

अंग्रेजों ने जो विधि प्रणाली लागू कि वह भारतीयों के लिए बिल्कुल नई थी, जिसे वे ठीक से समझ नहीं पाते थे। इस न्याय प्रणाली में अत्यधिक धन व समय नष्ट होता था और फिर भी अनिश्चितता बनी रहती थी।

भारत में कंपनी की सर्वोच्चता स्थापित होने के साथ ही प्रशासन में एक शक्तिशाली ब्रिटिश अधिकारी वर्ग का विकास हुआ। यह अधिकारी वर्ग अपने आपको भारतीय कर्मचारियों से पूरी तरह अलग रखता था और हर प्रकार से उन्हें अपमानित करता था।भारतीय कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार कुत्तों से भी बदतर था। इतना ही नहीं, वे अंग्रेजों को भारतीयों से मिलने -जुलने तक नहीं देते थे। अंग्रेजों की इस प्रजाति भेदभाव की नीति से भारतीय क्रोधित हो उठे।

सामाजिक कारण-

अंग्रेजों द्वारा भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के प्रयासों का भारतीय सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पङा।पाश्चात्य शिक्षा से तो भारतायों के जीवन में पाश्चात्य व्यक्तिवाद का बीजारोपण हुआ, जिससे भारतीय सामाजिक जीवन की विशेषताएँ ही समाप्त हो गयी। भारतीयों का विचार था कि अंग्रेज सामाजिक नियमों में हस्तक्षेप कर भारतीय सभ्यता को नष्ट करना चाहते थे। रेल,तार आदि के वैज्ञानिक प्रयोगों को भी अशिक्षित जनता नहीं समझ सकी और उसने अपनी सभ्यता और धर्म पर प्रहार समझा।

अंग्रेजों ने सामाजिक दृष्टि से भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार किया। भारतीय रेलगाङी के प्रथम श्रेणी में सफर नहीं कर सकते थे। अंग्रेजों द्वारा संचालित होटल व क्लबों की तख्तियों पर लिखा होता था, कुत्तों और भारतीयों के लिये प्रवेश वर्जित ।

अंग्रेजों ने सुधारों के नाम पर अपनी संस्कृति का प्रचार भी किया। उन्होंने यूरोपीय चिकित्सा विज्ञान को प्रोत्साहन दिया, जो भारतीय चिकित्सा विज्ञान के विरुद्ध था। स्कूल,अस्पताल,दफ्तर और सेना पाश्चात्य के प्रचार के केन्द्र थे। इससे भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की बङी दुर्दशा थी हुई।भारतीयों को यह विश्वास होने लगा कि अंग्रेज भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट कर उन्हें ईसाई बनाना चाहते हैं। अतः भारतीयों के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी और इस घृणा ने 1857 में विद्रोह का रूप धारण कर लिया।

धार्मिक कारण-

अंग्रेजों ने भारत को ईसाइयत के रंग में रंगने का प्रयास किया। 1813के चार्टर एक्ट द्वारा ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म-प्रचार की स्वतंत्रता दी गई। ब्रिटिश संसद में बोलते हुए मेगल्स ने घोषणा की थी कि, परंमात्मा ने भारत का विस्तृत साम्राज्य ब्रिटेन को प्रदान किया है, ताकि ईसाई धर्मपताका भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक लहरा सके। प्रत्येक व्यक्ति को अविलंब ही देश में समस्त भारतीयों को ईसाई धर्म में परिणत करने के महान कार्य को सभी प्रकरा से संपन्न करने में अपनी शक्ति लगा देनी चाहिये। अंग्रेजों की इस नीति के अंतर्गत भारत में ईसाई प्रचारकों को सभी प्रकरा की सुविधा प्रदान की गई।

ईसाई धर्म-प्रचारक बङे उद्दंड थे। वे खुले रूप से हिन्दुओं के अवतारों तथा मुसलमानों के पैगंबरों को गालियाँ देते थे। इससे भाारतीयों में विद्रोह की भावना ने जन्म लिया।

आर्थिक कारण

अंग्रेजों ने जितना भारतीयों का राजनीतिक शोषण किया, उससे भी बढकर आर्थिक शोषण किया। बंगाल में दीवानी का अधिकार प्राप्त करने के बाद कुटीर उद्योगों का विनाश आरंभ हो गया। 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा ब्रिटेन के निजी व्यापारियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति मिल गई । मुक्त व्यापार नीति से इंग्लैण्ड का निर्मित माल अधिकाधिक मात्रा में भारत के बाजारों में आने लगा।फलस्वरूप भारतीय उद्योग नष्ट हो गये। अंग्रेजों ने भारतीय व्यापार, वाणिज्य और कुटीर उद्योग अपने नियंत्रण में ले लिये। अतः भारतीयों में निर्धनता बङी तेजी से बढने लगी। भारत का अत्यधिक धन इंग्लैण्ड जाने लगा।

सैनिक कारण-

अंग्रेजों ने भारतीय सेना की सहायता से ही भारत में अपनी सर्वोच्चता स्थापित की थी। इसलिए कंपनी ने बङी संख्या में भारतीय सैनिकों को अपनी सेवा में रख लिया था। वेलेजली की सहायक प्रथा के फलस्वरूप कंपनी की सेना में भारतीय सैनिकों की असाधारण वृद्धि हुई थी।

सेना में वेतन,भत्ते एवं पदोन्नति के संबंध में भारतीय सैनिकों के साथ भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गयी।जिससे भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह हुआ।

तात्कालिक कारण-

भारतीयों में यह विश्वास दृढ होता जा रहा था कि अंग्रेज भारतीय धर्म,रीति-रिवाजों व संस्कारों को नष्ट करना चाहते हैं। ठीक ऐसे वातावरण में चरबी वाले कातूस की घटना हुई। ब्रिटेन में एक एनफील्ड रायफल का आविष्कारर हुआ था। इस रायफल में विशेष प्रकार का कारतूस प्रयोग में लाया जाता था, जिसको चिकना करने हेतु गाय व सूअर की चर्बी का प्रयोग होता था। इस कारतूस को रायफल में डालेने से पूर्व उसकी टोपी को मुँह से काटना पङता था। इस रायफल का प्रयोग भारत में आरंभ किया गया था।

दमदम शस्त्रागार में एक दिन एक खलासी ने ब्राह्मण सैनिक के लोटे से पानी पीना चाहा, लेकिन उस ब्राह्मण ने इसे अपने धर्म के विरुद्ध मानकर इंकार कर दिया। इस पर खलासी ने व्यंग्य किया कि उसका धर्म तो नये कारतूसों के प्रयोग से समाप्त हो जायेगा, क्योंकि उस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है।

खलासी के व्यंग्य से सत्य खुल गया और अधिक सैनिक भङक गये। 26जनवरी, 1857 को बरहामपुर के सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। बाद में सैनिकों ने आज्ञा का पालन कर लिया, लेकिन केनिंग ने उस सैनिक टुकङी को भंग कर दिया। इससे अन्य सैनिक टुकङी में असंतोष फैल गया।

29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने विद्रोह का झंडा खङा कर दिया तथा अंग्रेज अधिकारियों पर गोली चला दी। इससे एक अंग्रेज अधिकारी की मौत हो गयी। तथा दो घायल हो गये। मंगल पांडे को बंदी बनाकर उसे मौत की सजा दे दी गई। 2मई, 1857 को लखनऊ की अवध रेजीमेंट ने भी इन कारतूसों को प्रयोग करने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप अवध रेजीमेंट को भंग कर दिया गया।

चरबी वाले कारतूसों की खबर मेरठ भी पहुँच गई। वहाँ का अंग्रेज सैनिक अधिकारी कारमाइकेल स्मिथ अत्यंत ही अहमी थी। अतः 24अप्रैल,1857 को वहाँ घुङसवारों की एक सैनिक टुकङी ने जब इन कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया तो इंकार करेने वालों को 5 वर्ष की कारावास की सजा सुना दी तथा 9 मई उन्हें अपराधियों के कपङे पहनाकर बेङियाँ लगा दी।

इतना ही नहीं, कारमाइकेल ने अन्य सैनिकों को अपने साथियों के इस अपमान का बदला लेने के लिए चुनौती दे दी। फिर क्या था, दूसरे दिन 10 मई, 1857 को शाम के 5 बजे मेरठ की एक पैदल सैनिक टुकङी ने विद्रोह कर दिया और बाद में यह विद्रोह घुङसवारों की टुकङी में फैल गया। कारमाइकेल को अपनी जान बचाकर भागना पङा। विद्रोही जेल में घुसे और कैदियों को मुक्त कर दिया। बंदी सैनिकों की बेङियाँ काटकर उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये और जहाँ कहीं अंग्रेज मिले, उन्हें मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात् विद्रोही सैनिक दिल्ली की ओर चल पङे।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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