जैन धर्म के अनुसार संसार के 6 द्रव्य
जैन धर्म में भगवान अरिहंत (जिसे ज्ञान प्राप्त हो), सिद्ध (मुक्त आत्माएँ) को कहा जाता है। जैन धर्म इस ब्रह्मांड की अभिव्यक्ति, निर्माण के लिए जिम्मेदार किसी निर्माता – ईश्वर, शक्ति की धारणा को नहीं मानता। जैन धर्म के अनुसार यह संसार छह द्रव्य से मिलकर बना है। यह संसार हमेशा से था तथा हमेशा रहेगा।
संसार के 6 द्रव्य –
- जीव-
- पुद्गल
- धर्म
- अधर्म
- आकाश
- काल
जीव –
संसार के द्रव्यों के दो तत्व हैं जीव तथा अजीव ।
जीव – जीव शब्द से तात्पर्य है, वह जीवित है या प्राणवान है। जीव अनंत, नित्य तथा अनेक इन्द्रियों वाला कहा गया है।जीव की समस्त क्रियायें उसके किये कर्म के परिणामस्वरूप हैं, उसे कर्ता एवं भोक्ता भी माना गया है। जीव को अनंत ज्ञान , अनंत श्रद्धा, अनंत शान्ति, अनंत वीर्य तथा पूर्ण माना गया है।
जीव दो तरह के होते हैं- मुक्त (मोक्ष) तथा बंध (बधन युक्त)।
बंधन को भी दो भागों में बाँटा गया है-
- त्रस्त(गतिमान) -त्रस्त में दो से पाँच इंद्रियां होती हैं।
- यथावर (गतिहीन)-यथावर जीवों में जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, शरीर आदि अपूर्ण होता है। इनके स्पर्शेन्द्रिय होती हैं ।
अजीव/ जङ तत्व-अजीव ये तत्व जीवन एवं चेतना विहीन होते हैं। इसमें पाँच तत्व आते हैं-
- काल-भिन्न – 2 क्षणों में वर्तमान का रहना काल कहलाता है।
- आकाश – आकाश अनंत है , इसके दो भाग हैं । लोकाकाश(जहाँ गति संभव )तथा अलोकाकाश (जहाँ गति संभव नहीं)।
- पुद्गल – स्पर्श, रूप(वर्ण), रस तथा गंध से मुक्त माना गया है। जङ तत्व को ही पुद्गल कहते हैं,जो नित्य होते हैं। जिससे अनुभव की सभी वस्तुएँ बनी होती हैं।
- धर्म – इस तत्व के कारण गति संभव है। जैसे– मछली का पानी में तैरना । यहाँ पर हम देख सकते हैं कि मछली पानी में तैरती है जबकि पानी उसको तैरना नहीं सिखाता ।
- अधर्म- अधर्म का अर्थ है स्थिरता । द्रव्यों को रखने में अधर्म को सहायक माना गया है। जैसे -जल स्थिर है, लेकिन मछली के लिए जल आवश्यक है।
अतः यहाँ पर मछली का जल में तैरना धर्म तथा जल अधर्म है । जो संसार के लिए दोनों ही तत्व आवश्यक हैं।
Reference : https://www.indiaolddays.com/6-fluid/