आधुनिक भारतइतिहास

आधुनिक भारत में आर्थिक विकास का इतिहास

भारतीय योजना के मुख्य उद्देश्य-

  • उत्पादकता को अधिकतम करना। जिससे राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय के उच्च स्तरों को प्राप्त किया जा सके।
  • समानता एवं न्याय पर आधारित एक समाजवादी समाज की स्थापना और शोषण का अंत करना।
  • आय एवं संपत्ति की असमानता को घटाना।
  • पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में आत्मनिर्भरता और गरीबी निवारण तथा सातवीं योजना में आधुनिकीकरण के उद्देश्य को सम्मिलित किया गया है।

योजना आयोग, जिसका गठन पं.जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित आर्थिक कार्यक्रम समिति की सिफारिशों की अनुशंसा पर 15 मार्च, 1950 को संविधान लागू होने के बाद हुआ, एक संवैधानिकेतर-राजनीतिक संस्था है।

भारतीय संविधान किसने लिखा।

स्वतंत्रता के पूर्व ही आर्थिक नियोजन का सैद्धांतिक प्रयास प्रारंभ हो चुका था।

1938 में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने पं.जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्टीय नियोजन समिति का गठन किया।जिसने देश की आर्थिक समस्याओं को ध्यान में रखकर एक योजना प्रस्तुत की।

अगस्त, 1944 में भारत सरकार ने एक अलग विभाग नियोजन एवं विकास विभाग खोला।

राष्ट्रपिता गांधी की आर्थिक विचारधारा से प्रेरित होकर श्रीमन्नारामण ने 1944 में एक योजना प्रस्तुत की, जिसे गांधीवादी-योजना के नाम से जाना जाता है।

1944 में बंबई के 8 प्रमुख उद्योगपतियों ने मिलकर ए प्लान फार इकोनामिक डेवलपमेंट इन इंडिया नामक एक 15 वर्षीय योजना प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास पर बल देना तथा 15 वर्षों में प्रति-व्यक्ति आय को 65 रु. से बढाकर 130 रु. करना था।

अप्रैल 1945 में एम.एन.राय द्वारा एक साम्यवादी योजना जन-योजना () निर्मित की गयी।

1948 में राष्ट्रीय आयोजन समिति (1938 में गठित) की रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें इस बात पर बल दिया गया, कि समस्त मूल उद्योग एवं सेवाओं खनिज, जैसे-रेल, जलमार्ग तथा सार्वजनिक उपयोगिता वाले उद्योग पर राज्य का स्वामित्व होगा।

जनवरी, 1950 में जयप्रकाश नारायण ने सर्वोदय-योजना के नाम से एक योजना प्रकाशित की।

सन्1950 में राष्ट्रकुल के सदस्य देशों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक नियोजन की एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की जिसे – कोलंबो प्लान ( कोलंबो योजना) कहा गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने 1950 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में योजना आयोग का गठन किया, ताकि देश की मौलिक पूँजी एवं मानवीय संसाधनों की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सके, और इनका अधिक संतुलन एवं प्रभावी प्रयोग किया जा सके।

6 अगस्त, 1952 में आर्थिक आयोजना के लिए राज्यों एवं योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण तैयार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विकास परिषद नामक एक गैर-संवैधानिक संस्था का गठन किया गया। इसके मुख्य कार्य हैं-

  • योजना के संचालन का समय-2 पर मूल्यांकन करना।
  • विकास को प्रभावित करने वाली नीतियों की समीक्षा करना।
  • योजना में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सुझाव देना।
  • योजनाओं को अंतिम रूप प्रदान करना।

1 अप्रैल 1951 को प्रथम पंचवर्षीय योजना प्रारंभ की गयी, जिसमें कृषि के विकास को प्राथमिकता दी गयी।

प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही भाखरानांगल, दामोदरघाटी, हीराकुंड जैसी बहुउद्देशीय नदीघाटी परियोजनाएं चालू की गयी। साथ ही ( 1952 में ) सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय विकास योजना का प्रारंभ किया गया।

प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत सिन्दरी उर्वरक कारखाना(बिहार) की स्थापना की गयी।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना ( 1956-61) में आधारभूत एवं भारी उद्योगों पर विशेष बल के साथ देश के तीव्र औद्योगीकरण को मुख्य लक्ष्य बनाया गया।

तृतीय योजना के समय विदेशी विनियम संकट तथा प्रतिकूल व्यापार शेष के कारण जून, 1966 में रुपये का अवमूल्यन ( 36.5%) करना पङा। जो योजनावधि का पहला अवमूल्यन था।

यह योजना चीन आक्रमण तथा पाकिस्तान आक्रमण के कारण अपने लक्ष्य को हासिल करने में काफी असफल रही, जो सभी योजनाओं में एक अपवाद है।

खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने के लिए 1966 में हरित क्रांति (Green revolution) प्रारंभ की गयी।

निजी एवं सहकारी क्षेत्र का दीर्घकालीन और मध्यकालीन खाद्य की व्यवस्था करने के लिए 1 जुलाई, 1948 को भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (I.F.C.I.) की स्थापना की गयी।

28 सितंबर, 1951 में राज्य वित्त निगम (S.F.C.S.) की स्थापना की गयी।

5 जनवरी, 1955 में निजी क्षेत्र में स्थापित होने वाली औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, विकास एवं उसके आधुनिकीकरण के कार्यों में सहायता देने के लिए भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम लिमिटेड (I.C.I.C.I.) की स्थापना की गयी।

1 जुलाई, 1964 की भारतीय यूनिट ट्रस्ट (U.T.I.) की स्थापन की गयी।

भारत में पहला बैंक सन् 1806 ई. में स्थापित किया गया, इसका नाम- बैंक ऑफ बंगाल था।

भारत में पहला वाणिज्यिक बैंक सन् 1881 में स्थापित किया गया, जिसका नाम अवध कमर्शियल बैंक था।

1 जुलाई, 1955 को गोरवाला समिति की अनुशंसा पर इम्पीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण करके उसका नाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (S.B.I.) कर दिया गया। वर्तमान में स्टेट बैंक देश का सबसे बङा व्यापारिक बैंक है।

पूर्ण रूप से पहला भारतीय बैंक पंजाब नेशनल बैंक था, इसकी स्थापना 1894 में की गयी थी।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत का केन्द्रीय बैंक है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को की गयी थी। इसका मुख्यालय मुम्बई में है। रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण 1 जनवरी, 1949 को किया गया है।

भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना 1 सितंबर, 1956 को की गयी थी।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना 1975 में की गयी। सिक्किम और गोवा को छोङकर देश की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा 6 अप्रैल, 1948 को की गयी, जिसमें निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के लिए स्पष्ट क्षेत्रों का बंटवारा करने वाली पहली औद्योगिक नीति के द्वारा ही देश में मिश्रित एवं नियोजित अर्थव्यवस्था की नींव रखी गयी।

30 अप्रैल 1956 को पूर्व की नीति में व्यापक परिवर्तन करते हुए समाजवादी ढंग के समाज की स्थापना के उद्देश्य से दूसरी औद्योगिक नीति की घोषणा की गयी।

रेल इंजनों के निर्माण हेतु चितरंजन का कारखाना तथा जलपोतों के निर्माण के लिए स्टीम नेवीगेशन कंपनी की स्थापना की गयी।

विदेशी पूँजी के सहयोग से निजी क्षेत्र में अमेरिका की एस्सो तेल कंपनी द्वारा 1954 में ट्राम्बे में एक तेलशोधन कारखाना स्थापित किया गया।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में पेरियार,मच्छकुण्ड, सिलेरू, कुंडा, कोयला नैरीपंगलम्, शोलायार, सबटीगिरी, गांधीसागर, रिहन्द परियोजनाओं को कार्यान्वित किया गया।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ब्रिटिश काल टैक्स तेल कंपनी द्वारा सन् 1957 में विशाखापट्टनम में एक तेलशोधन कारखाना स्थापित किया गया।

हमारी द्वितीय पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत का पुनर्निमाण करना, भारत में औद्योगिक प्रगति की नींव रखना, कमजोर और अपेक्षाकृत अधिकारहीन वर्ग को उन्नति के समान अवसर प्रदान करना तथा देश के सभी क्षेत्रों को संतुलित विकास करना है। – पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा कथित।

इस योजना में एक नवीन प्रवृत्ति घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रारंभ दिखलाई पङता है।

द्वितीय योजना में भारतीय अर्थव्यवस्था में दो ऐसी बुराइयों का श्रीगणेश होता है। जो देश में मुद्रास्फीति के दबावों को बढाने में सर्वाधिक सहायक हुए-

  1. गैर – योजनागत व्ययों में धीरे-2 वृद्धि
  2. घाटे की वित्त व्यवस्था।

इस योजना की असफलता के कारण 10 जून, 1966 को भारतीय मुद्रा का 36.5% अवमूल्यन करना पङा।

नेहरू द्वारा भारत की प्रगति आखिरकार औद्योगीकरण पर ही निर्भर होगी और औद्योगीकरण करना अत्यंत आवश्यक माना है।

समुचित औद्योगिक नीति के लिए एक निश्चित, सुनियोजित तथा प्रगतिशील औद्योगिक नीति की आवश्यकता होती है।

औद्योगिक नीति के द्वारा सरकार विभिन्न उद्योगों के प्रति अपनायी जाने वाली अपनी सामान्य नीतियों की घोषणा करती है, ताकि उद्योग के क्षेत्र में अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा को रोका जा सके। उत्पादन में वृद्धि हो, लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो तथा उनके जीवन स्तर में सुधार आये।

नेहरूजी की औद्योगिकी नीति में टैगोर के प्रति-व्यक्ति को शक्ति सम्पन्न बनाने की संकल्पना का व्यापक रूप नीहित है। दूसरी तरफ भारत एक मजबूत राष्ट्र की श्रेणी में तभी खङा हो सकता था, जब वह विश्व के अन्य विकाशील देशों के समानान्तर खङा हो पाता।

इसके लिए वैज्ञानिक प्रगतिवाद विचारधारा पर आधारित औद्योगिकवाद भारत को विश्व के विकासशील राष्ट्रों के समकक्ष खङा करने का महान आग्रह था।

नेहरू जी के प्रभुत्व काल में राष्ट्र में अनेकों औद्योगिक संस्थान तथा वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ खोली गयी।

नेहरू जी का मानना था कि केवल औद्योगिकीकरण ही वह कार्य है, जिस पर चलकर देश अपने संपूर्ण निर्दिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेगा तथा यही एक ऐसा माध्यम है, जिससे गरीबी को भगा करके जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जा सकता है।

कुचीर उद्योग बोर्ड की स्थापना 1948 ई. में की गयी थी, जिसे प्रथम पंचवर्षीय योजना में तीन पृथक स्वायत्त बोर्डों में विभाजित किया गया-

  1. अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड ( 1952 )
  2. अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ( 1952 )
  3. अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण उद्योग बोर्ड ( 1953)

लघु उद्योग बोर्ड का गठन 1954 में किया गया था, जिसका उद्देश्य लघु उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन देना था।

प्रथम पंचवर्षीय योजना में स्थापित किये जाने वाले प्रमुख उद्योग-

  1. सिन्दरी उर्वरक कारखाना
  2. चितरंजन रेल-निर्माण कारखाना
  3. पानी के जहाज के निर्माण के लिए स्टीमनेवीगेनशन कंपनी
  4. हिन्दुस्तान मशीन टूल्स
  5. इंटीग्रल कोच फैक्ट्री( पेरंबदुर, तमिलनाडु)
  6. हिन्दूस्तान एण्टीबायोटिक्स
  7. नेशनल न्यूज-प्रिंट एंड पेपर मिल
  8. उत्तर प्रदेश सीमेन्ट निगम।

उद्योग अधिनियम 1951 के द्वारा सर्वप्रथम उद्योगों हेतु लाइसेंस होना अनिवार्य कर दिया गया।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में स्थापित किये गये उद्योग थे-

  1. दुर्गापुर इस्पात संयंत्र ( पश्चिम बंगाल ) ब्रिटेन के सहयोग से।
  2. राऊरकेला इस्पात संयंत्र ( उङीसा ) जर्मनी के सहयोग से
  3. भिलाई इस्पात संयंत्र( मध्यप्रदेश वर्तमान में छतीसगढ) रूस के सहयोग से।
  4. टिस्को एवं इस्को का आधुनिकीकरण किया गया।

बोकारो इस्पात संयंत्र की स्थापना चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में रूस के सहयोग से की गयी।

द्वितीय औद्योगिक नीति 1956ई. के द्वारा औद्योगिक क्षेत्र को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में विभाजित किया गया था।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में संयुक्त क्षेत्र एवं राष्ट्रीय क्षेत्र की अवधारणा का उल्लेख किया गया था।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में उद्योगों के विकास को ही प्रमुख लक्ष्य स्वीकार किया गया।

30 अप्रैल, 1956 को नई औद्योगिक नीति घोषित की गयी। जिसमें सरकार ने समाजवादी समाज की स्थापना को अपना मूल उद्देश्य निर्धारित किया। इस औद्योगिक नीति को भारत का आर्थिक संविधान भी कहा जाता है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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