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बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग – जीवन के सभी दुःख दूर करे

महात्मा बुद्ध की प्रमुख शिक्षाओं में से एक शिक्षा अष्टांगिक मार्ग भी है। जो दुःखों से मुक्ति पाने एवं आत्म ज्ञान के साधन के रूप में बताया गया है।

अष्टांग मार्ग के सभी मार्ग सम्यक शब्द से प्रारंभ होते हैं। (सम्यक का अर्थ है – अच्छी या सही)

बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है-दुःख निरोध पाने का मार्ग।

बुझ गए प्रदीप की तरह दुःख का निर्वाण हो जाता है। और, इस निरोध की प्राप्ति का मार्ग आर्यसत्य – आष्टांगिक मार्ग है। इसके आठ अंग हैं-

  1. सम्यक् दृष्टि –चार आर्य सत्य में विश्वास करना।
  2. सम्यक् संकल्प – मानसिक  और नौतिक विकास की प्रति ज्ञा करना।
  3. सम्यक् वचन – हानिकारक बातें और झूठ न बोलना।
  4. सम्यक् कर्मांत बुरे कर्म न करना।
  5. सम्यक् आजीविका – कोई भी हानिकारक व्यापार न करना।
  6.  सम्यक् व्यायाम – अपने आप को स्वस्थ रखने का प्रयास करना।
  7. सम्यक् स्मृति – स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना।
  8.  सम्यक् समाधि – निर्वाण पाना।

इस आर्यमार्ग(अष्टांगिक मार्ग) को सिद्ध कर व्यक्ति मुक्त हो जाता है।

इन 8 अंगों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

  1. प्रज्ञा-(सम्यक दृष्टि,सम्यक संकल्प, सम्यक वाक)
  2. शील– (सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीविका)
  3. समाधि– (सम्यक व्यायाम, सम्यक समाधि, सम्यक स्मृति)

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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