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ग्यासुद्दीन बलबन का इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान

बलबन ( 1266-1286 )-

  • बलबन इल्तुतमिश का दास था तथा इल्तुतमिश ने ग्वालियर को जीत लेने के बाद बलबन को खरीदा था।अपनी योग्यता के आधार पर ही उसने इल्तुतमिश एवं रजिया के समय में अमीर- ए- आखूर का पद प्राप्त किया।
  • बलबन ने अपने आप को फिरदौसी के शाहनामा में वर्णित अफरासियाब वंशज तथा शासन को ईरानी आदर्श के रूप में सुव्यवस्थित किया।
  • नासिरुद्दीन महमूद के साथ ही इल्तुतमिश के शम्सी वंश का अंत हुआ एवं बलबनी वंश का सल्तनत पर अधिकार हो गया। इसका वास्तविक नाम बहाउद्दीन बलबन था।बलबन ने 20 वर्ष तक वजीर की हैसियत से तथा 20 वर्ष तक सुल्तान के रूप में शासन किया।
  • बलबन एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का उपयोग करता था। वह पहला शासक था। जिसने सुल्तान के पद और अधिकारियों के बारे में विस्तृत रूप से विचार प्रकट किये।
  • बलबन भी तुर्कान – ए -चहलगानी का सदस्य था, रजिया के समय अमीर – ए – शिकार का सदस्य था तथा बहरामशाह के समय अमीर – ए – आखूर के पद पर,  तथा अलाउद्दीन मसूदशाह के समय अमीर – ए -हाजिब के पद पर था।नासिरुद्दीन महमूद के समय बलबन नायब – ए – ममलिकात के पद पर था।
  • बलबन ने नवरोज उत्सव शुरू करवाया, जो फारसी (ईरानी) रीति-रिवाज पर आधारित था।
  • बलबन राजपद के दैवी सिद्धांत को मानता था तथा राजा को पृथ्वी पर निभायते खुदायी (ईश्वर की छाया) मानता था।
  • इसने अपने सिक्कों पर खलीफा का नाम खुदवाया । बलबन ने अपने दरबार के नियम और साज-सज्जा में ईरानी शैली का प्रयोग किया।

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बलबन की समस्यायें-

जब बलबन शासक बना तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पङा जो इस प्रकार हैं-

  1. तुर्कान – ए – चहलगानी की महत्वकांक्षा।
  2. सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा स्थापित करना।
  3. मेवातियों व राजपूतों का विद्रोह।
  4. मंगोलों का आक्रमण।

उपर्युक्त दोनों (1,2 ) समस्याओं का समाधान चहलगानी की शक्ति को तोङना था। इसके लिये उसने अनेक कदम उठाये।


समस्याओं का समाधान-

  1. तुर्कान ए चहलगानी की महत्वकांक्षा का दमन- बलबन ने चहलगानी के अनेक विद्रोही अधिकारियों की हत्या करवा दी इसमें उसका भतीजा (शेरखाँ-सुंकर)  भी था। कुछ अधिकारियों को दिल्ली से दूर भेज दिया।
  2. सुल्तान पद की प्रतिष्ठा स्थापित करना – बलबन ने मुस्लिम राजत्व का सिद्धांत दिया ऐसा करने वाला वह भारत का प्रथम मुस्लिम सुल्तान था, उसने सुल्तान पद की प्रतिष्ठा के लिये जिल्ले – इलाही ( अल्लाह का दैवी प्रकाश ) तथा नियाबत – ए – खुदाई (अल्लाह की कृपा ) जैसी उपाधियां धारण की। तथा सुल्तान के पद को पैगंबर के बाद रखा।बलबन के दरबार में शराब पीने व हँसी – मजाक करने पर पाबंदी लगाई। उसने भव्य दरबार का आयोजन किया तथा दरबारी शिष्टाचार के पालन हेतु अमीर – ए- हाजिब को कठोरता से कदम उठाने को कहा।इसने अपने दरबार में सिजदा (घुटनों के बल पर सिर झुकाना ) एवं पैबोस (सुल्तान के पाँव चूमना) प्रथा की शुरुआत की थी।बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए रक्त एवं लौह की नीति अपनाई। बलबन के राजत्व सिद्धांत की दो मुख्य विशेषताएं
    1. सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया गया होता है।
    2. सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।इसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान केवल पैगंबर के बाद है। इसने शासन को ईरानी आदर्श के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया था।
  3. मेवातियों व राजपूतों के विद्रोह का दमन- मेवाती अजमेर क्षेत्र के आस – पास का क्षेत्र था। मेवाती राजपूतों की सहायता से लूटपाट की नीति अपनाते थे। जिससे सल्तनत को आर्थिक हानी तथा कानून व्यवस्था की समस्या से ग्रस्त कर दिया था। बलबन ने इनके खिलाफ रक्त व लौह की नीति अपनाई थी।
  4. बलबन ने दिल्ली से बाहर घने जंगलों को कटाकर चारों दिशाओं में चार किले – जलाली, काम्पिली, पटियाली, भोजपुर बनवाये थे।इन किलों पर अफगान सैनिकों को नियुक्त किया तथा चारों दिशाओं से मेवातियों को घेरकर क्रूरतापूर्ण उनका दमन किया।बलबन ने चहलगानी को संदेश देने के लिये भी अपने कुछ अमीरों को जैसे – मलिक बकबक को सभी के सामने 100 कोङे लगाये।, मलिक हैबत खाँ को साधारण से अपराध पर कठोर दंड दिया। इसी प्रकार बंगाल अभियान में असफल हुये अमीरों मलिक तार्गी, मलिक अमीन खाँ को कठोर दंड दिया। इसी प्रकार बंगाल अभियान में असफल हुये अमीरों  मलिक तार्गी, मलिक अमीन खाँ को कठोर दंड दिया।
  5. बंगाल के विद्रोह का समाधान- बलबन के समय तुगरिल खाँ ने जो बंगाल का इक्तेदार था  व बलबन का दास था , ने वद्रोह किया व स्वतंत्र हो गया। बलबन ने  मलिक अमीन खां को विद्रोह को दबाने भेजा,इसके असफल होने पर अमीन खां को दंडित किया। आगे बलबन ने मलिक तार्गी को भेजा जो तुगरिल से मिल गया। बलबन क्रोधित हुआ तथा स्वयं अभियान किया। यह बलबन का एकमात्र ऐसा अभियान था जब वह दिल्ली से बाहर गया था। बलबन ने क्रूरता से विद्रोह का दमन किया। तुगरिल खां व तार्गी तथा उनके वफादारों का सामूहिक कत्लेआम किया। इसके बाद बलबन ने छोटे पुत्र बुगरा खां को बंगाल का इक्तेदार बनाया तथा इदायत दी कि विद्रोह करने पर उसका भी यही हास्य होगा।
  6. मंगोलों के आक्रमण का समाधान- मंगोल समस्या के समाधान के लिये बलबन ने दोहरी नीति अपनायी।
    • कूटनीति – मंगोल आक्रमण में उपहार सहित अनेक दूत भेजे और मित्रता स्थापित करनी चाही।
    • सैन्य प्रबंध – बलबन ने मंगोलों को रोकने के लिये निम्नलिखित किलों पर अपने दोनों पुत्रों को स्थापित किया-
      1. लाहौर, मुल्तान, दीपालपुर के किलों पर  बङे पुत्र मुहम्मद को बङी सेना के साथ स्थापित किया।
      2. सुनाम – समाना – भटिण्डा के किलों पर छोटे पुत्र बुगरा खां को स्थापित किया।

इन सबके बावजूद मंगोल व्यास नदी तक का क्षेत्र जीतने में सफल हो जाते हैं। 1285 ई. में तमर के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया तथा इसमें शहजादा मुहम्मद मारा गया बलबन ने मुहम्मद को शहीद-ए-आजम की उपाधि दी।

बलबन संगठनकर्ता के रूप में-

  • बलबन ने सल्तनत का संगठन सुचारु रूप से किया था। उसने दीवान-ए-आरिज नामक सैन्य विभाग की स्थापना की। दीवाने – बरीद नामक गुप्तचर विभाग स्थापित किया।

न्यायप्रिय नीति-

  • बलबन ने न्याय पर अत्यधिक बल दिया हालांकि उसने रक्त की शुद्धता जैसी नक्शलवादी नीति अपनाई तथा प्रशासन में केवल उच्च कुल के तुर्की मुस्लमानों को ही सामिल किया।लेकिन आमजनता के लिये वह भेदभाव रहित न्याय करता था। अतः  क्रूर होते हुये भी जनता में लोकप्रिय था।
  • बरनी ने अपने ग्रंथ में बलबन के बारे में लिखा है “जब भी मैं निम्न कुल के आदमी को देखता हूँ, मेरी आँखे गुस्से से लाल हो जाती हैं और हाथ तलवार पर चला जाता है।”
  • ईश्वरी प्रसाद के अनुसार – बलबन उत्तम प्रकार का अभिनेता था। 

बलबन के काल में जागीरों की व्यवस्था-

  •  बलबन ने उन सभी जागीरों की जाँच कराई जो विभिन्न व्यक्तियों की सैनिक सेवा के बदले शासकों द्वारा दी जाती थी।
  • जागीरों से आय एकत्र करने का अधिकार सरकारी कर्मचारियों को दिया गया और नकद धन देने के आदेश दिये गये। किन्तु सैनिकों को वेतन के स्थान पर पहले की भाँति भूमि प्राप्त होती रही। उसके समय में वजीर के पद का महत्त्व घट गया और नायब जैसा कोई अधिकारी न रहा अर्थात् नाइब के पद को खत्म कर दिया।
  • उसने ऐसे सैनिकों को जो सेवा के योग्य नहीं रह गये थे, पेंशन देकर सेवा मुक्त किया।

चालीसा दल का दमन तथा गुप्तचर विभाग की स्थापना-

  • बलबन ने इल्तुतमिश द्वारा बनाये गये चालीस सरदारों के दल को समाप्त किया।
  • बलबन के शासन की सफलता का मुख्य श्रेय उसका गुप्तचर विभाग था। गुप्तचर विभाग की स्थापना सामंतों की गतिविधियों पर निगरानी हेतु की गई थी।

दीवान-ए-आरिज विभाग की स्थापना-

  • बलबन ने पश्चिमोत्तर सीमा पर मंगोलों के आक्रमण से रक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया तथा एक नये सैन्य विभाग दीवान-ए-आरिज की स्थापना की।

लौह एवं रक्त-

  • अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने कठौर लौह एवं रक्त  की नीति का अनुसरण किया।

दरबारी विद्वान-

  • बलबन के दरबार में फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो एवं अमीर हसन रहते थे।
  • अमीर खुसरो ने अपना साहित्यिक जीवन शहजादा मुहम्मद के संरक्षण में शुरु किया था।

बलबन की मृत्यु-

  •  1286 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई।इसकी मृत्यु के बाद इसका पौत्र कैकुबाद उत्तराधिकारी हुआ। यह एक विलासी एवं कामुक व्यक्ति था। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण प्रशासन अराजकता से ग्रस्त हो गया तथा राजदरबार अमीरों की उच्च आकांक्षाओं एवं संघर्षों की गिरफ्त में आ गया।

अमीरों के एक गुट आरिज-ए-मुमालिक मलिक फीरोज (जलालुद्दीन) ने 1290 में गुलाम वंश के अंतिम शासक कैकुबाद की हत्या करके राजसत्ता अधिकृत कर खिलजी वंश की स्थापना की।इस प्रकार दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का अंत हो गया।

डा.ए.हबीबुल्ला ने बलबन के शासनकाल को सुदृढता का युग कहते हुए उसके लिए consalidation शब्द का प्रयोग किया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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