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बंगाल का आधुनिक इतिहास

बंगाल

मुगल कालीन सूबों में बंगाल सबसे धनी प्रांत था अपनी समृद्धि और राजधानी दिल्ली से दूरी के कारण यहां के शासक प्रायः केन्द्रीय सत्ता के विरुद्ध विद्रोह करते रहते थे।औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया था।

मुर्शीदकुली एक साथ बंगाल, बिहार और उङीसा का सूबेदार था।

मुर्शीदकुली खां ने 1704 ई. में बंगाल की राजधानी को ढाका से हटाकर मुर्शिदाबाद में हस्तांतरित किया।मुर्शीदकुली खां ने बंगाल में नई भू-राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत किसानों को तकावी ऋण प्रदान किया तथा बंगाल में इजारेदारी प्रथा को बढावा दिया।

मुर्शीदकुली खां ने स्वतंत्र होने के बाद भी मुगल सम्राट के प्रति निष्ठा जताते हुए उन्हें वार्षिक कर और नजराने भेंट में देता रहता था क्योंकि वह मुगलों का विश्वास अपने ऊपर बनाये रखना चाहता था।

मुर्शीद को बंगाल में नयी जमीदारी पर आधारित कुलीन वर्ग का जनक माना जाता है,उसने व्यापार की गति को भी बढाया।

1726ई. में मुर्शीद कुली खाँ की मृत्यु के बाद शुजाउद्दीन अगला बंगाल का नवाब बना।

शुजाउद्दीन के प्रमुख प्रशासनिक सलाहकारों में शामिल थे- राय ए रायान,आलमचंद (वित्त विशेषज्ञ), जगत सेठ फतहजंग (साहूकार) तथा अलीवर्दी खां और हाजी अहमद खां ।

शुजाउद्दीन ने अलीवर्दी खां को 1739 में बिहार का नायब नाजिम नियुक्त किया । इसी समय शुजाउद्दीन की मृत्यु हो गई।

शुजाउद्दीन के बाद उसका पुत्र आलम-उद-दौला हैदरजंग सरफराज खां बंगाल का नवाब हुआ(13 मार्च,1739)।

सरफराज की प्रशासनिक कार्यों के प्रति निष्क्रियता और अयोग्यता के कारण शीघ्र ही बंगाल में हुई एक क्रांति द्वारा सरफराज को राजसिंहासन और जीवन दोनों का त्याग करना पङा।

अलीवर्दी खां के नेतृत्व में हुई इस क्रांति में हाजी अहमद और जगत सेठ भी शामिल थे।1740 ई. में राज महल के समीप लङे गये गिरिया के युद्ध में रसफराज खां बुरी तरह पराजित हुआ।

बंगाल का अगला नवाब अलीवर्दी खां (1740 से 1756 ई.) हुआ, जो बंगाल का अंतिम शक्तिशाली नवाब सिद्ध हुआ।

आठ वर्ष तक लगातार बंगाल में मराठा आक्रमणों को उस समय विराम मिला जब 1751 ई. में अलीवर्दी खां ने मराठों से एक संधि कर ली।

अलीवर्दी एक योग्य शासक था इसने अपने शासनकाल में भूमि सुधारों के अलावा व्यापार को भी प्रोत्साहित किया।इसने अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाते हुए क्रमशः कलकत्ता और चंद्रनगर की अपनी-2 बस्तियों के किलेबंदी का विरोध किया।

अलीवर्दी खां के शासनकाल के अंतिम दिनों में अंग्रेजों ने कलकत्ता की किलेबंदी प्रारंभ कर दी, दूसरी ओर मराठा आक्रमणों ने भी इस समय नवाब को तंग किया।

1756 ई. में जलशोध की बीमारी से अलीवर्दी खां की मृत्यु हो गई।

अलीवर्दी खांं ने यूरोपियनों के बारे में कहा कि यदि उन्हें न छेङा जाये तो वे शहद देंगी और यदि छेङा जाये तो काट-2 कर मार डालेंगी।

अलीवर्दी की मृत्यु के बाद उसका नाती सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना, जिसके लिए बंगाल का शासन फूलों की सेज नहीं बल्कि कांटों की सेज साबित हुआ।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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