आधुनिक भारतइतिहास

भारत का विभाजन के क्या कारण थे

लार्ड माउंटबेटन ने भारत आने के बाद अनुभव किया कि, कांग्रेस संयुक्त भारत चाहती है। मुस्लिम लीग विभाजित भारत ( पाकिस्तान )चाहती है, अतः दोनों में समझौता असंभव है।

जिन्ना ने सारे देश में गङबङ फैला रखी थी। हजारों लोग मर रहे थे और स्थिति बेकाबू होती जा रही थी। इसलिए माउंटबेटन ने देखा कि, भारत को विभाजित करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है।लेकिन महात्मा गांधी ने कहा था, कि चाहे सारे भारत को आग लग जाये, तो भी पाकिस्तान नहीं बनेगा।

उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था, कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। अतः महात्मा गांधी को पाकिस्तान के लिए सहमत करना असंभव था।

इसलिए माउंटबेटन ने पंडित नेहरू तथा सरदार पटेल को पाकिस्तान की स्थापना के लिए सहमत करने का प्रयत्न किया।

सदार पटेल ने बेगुनाहों के कत्लेआम से पाकिस्तान की स्वीकृति अच्छी समझी और नेहरू ने शेष भारत को संगठित और शक्तिशाली बनाना अच्छा समझा।

माउंटबेटन ने दोनों की सहमति प्राप्त करने के बाद 3 जून, 1947 को भारत विभाजन की योजना प्रकाशित कर दी, जिसे माउंटबेटन योजना कहते हैं।

माउंटबेटन योजना की शर्तें निम्नलिखित थी-

  • भारत को दो अधिराज्यों में बाँट दिदया जायेगा – भारत तथा पाकिस्तान।
  • पंजाब तथा बंगाल की विधान सभाओं के सदस्य अलग-2 हिन्दू बहुमत और मुस्लिम बहुमत वाले जिलों के हिसाब से बैठेंगे। यदि उनमें कोई भी पक्ष प्रांत के बँटवारे का प्रस्ताव पास कर देगा तो उस प्रांत का बँटवारा कर दिया जायेगा।
  • असम के सिलहट जिले में तथा उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत में जनमत संग्रह द्वारा यह निर्णय किया जायेगा, कि वहाँ के नागरिक भारत में मिलना चाहते हैं अथवा पाकिस्तान में।
  • भारत के देशी राज्यों की सर्वोच्चता के अधिकार उन राज्यों को वापिस लौटा दिये जायेंगे।

इस योजना को कांग्रेस ने अपनी 14 जून, 1947 की बैठक में स्वीकार कर लिया।किन्तु जिन्ना की दृष्टि में जो पाकिस्तान दिया गया था वह लंगङा पाकिस्तान था, क्योंकि वह तो सारा बंगाल व असम पूर्वी पाकिस्तान में मिलाना चाहता था। इसी प्रकार सारा पंजाब, उत्तर -पश्चिमी सीमा प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान में शामिल करना चाहता था।

अतः जिन्ना ने लंगङे पाकिस्तान को स्वीकार करने से इंकार कर दिया, किन्तु माउंटबेटन के दबाव के कारण अन्ततः उसे स्वीकार करना पङा।तत्पश्चात् भारत के विभाजन की तैयारी आरंभ हो गयी। पंजाब और बंगाल में जिलों के विभाजन तथा सीमा निर्धारण का कार्य एक आयोग को सौंपा गया, जिसकी अध्यक्षता रेडक्लिफ ने की।

माउंटबेटन योजना को कार्यान्वित करने के लिए ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता विधेयक प्रस्तुत किया गया, जिसे 16 जुलाई, 1947 को पारित कर दिया गया।

इसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिये जायेंगे और ब्रिटिश सरकार उन्हें सत्ता सौंप देगी। जब तक नया संविधान न बन जाय, तब तक दोनों अधिराज्यों की संविधान सभाओं को अपने-2 अधिराज्य के लिए कानून बनाने की अनुमति दे दी गई। संविधान सभाओं को संविधान बनाने की शक्ति के अतिरिक्त व समस्त शक्तियाँ प्रदान की गई, जो 1947 से पहले केन्द्रीय विधान मंडल के पास थी।

भारत स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार भारत का बँटवारा कर दिया गया और 15 अगस्त, 1947 को दोनों को स्वतंत्रता दे दी गई।महात्मा गाँधी विभाजन के कट्टर विरोधी थे। लेकिन कांग्रेस अधिवेशन में माउंटबेटन योजना का समर्थन करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था – मैं विभाजन का आरंभ से ही विरोधी रहा हूँ, किन्तु अब परिस्थिति ऐसी उत्पन्न हो गई है, कि दूसरा कोई रास्ता नहीं है। अब प्रश्न यह उठता है कि किन परिस्थितियों से प्रेरित होकर कांग्रेस ने भारत का विभाजन स्वीकार किया ।

भारत विभाजन के कारण-

साम्प्रदायिक दंगे-

मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान प्राप्त करने के लिए सीधी कार्यवाही शुरू करके साम्प्रदायिक दंगों का सूत्रपात किया था। इन दंगों में भीषण हत्याकांड हुआ और अपार संपत्ति का विनाश हुआ।

अंतरिम सरकार उन दंगों को रोकने में असमर्थ थी, क्योंकि मुस्लिम लीग की प्रांतीय सरकारें भी उपद्रवकारियों की सहायता कर रही थी।

इन दंगों को रोकने तथा बेगुनाह लोगों की हत्याएं रोगने के लिए विभाजन के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।

अंग्रेज शासको के षड्यंत्र-

अंग्रेज प्रशासकों की सहानुभूति मुसलमानों के साथ थी। साम्प्रदायिकता का बीजारोपण अंग्रेजों ने ही किया था।मुसलमानों को विधान मंडलों में अलग स्थान देने के लिए प्रोत्साहित किया।

अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के सदस्य कांग्रेसी मंत्रियों के लिए सिरदर्द बन गये। अंत में पंडित नेहरू तंग आकर कहा कि, हम सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए सिर कटवाने को तैयार हो गया।

सरदार पटेल ने नवंबर,1947 में नागपुर में भाषण देते हुए कहा कि, जब अंतरिम सरकार में आने के बाद मुझे यह पूर्ण अनुभव हो गया कि राजनैतिक विभाग के षड्यंत्रों द्वारा भारत के हितों को बङी हानि पहुँच रही है, तो मुझे विश्वास हो गया कि, जितनी जल्दी हम अंग्रेजों से छुटकारा पा लें उतना ही अच्छा है……..मैंने उस समय महसूस किया, कि भारत को मजबूत और सुरक्षित करने का तरीका है कि शेष भारत संगठित किया जाय।

सरदार पटेल ने कहा कि, हम उस समय ऐसी अवस्था पर पहुँच गये थे, कि यदि हम देश का बँटवारा न मानते तो सब-कुछ हमारे हाथ से चला जाता।

अविलंब स्वतंत्रता के लिए-

कांग्रेस ने देश का विभाजन अविलंब स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भी स्वीकार कर लिया। अंग्रेज हमेशा मुस्लिम लीग का पक्ष लेते रहे। लार्ड वेवल मुस्लिम लीग के बिना संविधान सभा बुलाने को तैयार नहीं हुआ और उसे अंतरिम सरकार में शामिल करने के लिए भारत सचिव के निर्देशों की भी अवहेलना की।

कांग्रेस की त्रुटिपूर्ण नीति-

कांग्रेस सदैव मुस्लिम लीग से समझौता करने को उत्सुक रहती थी, इससे लीग का अनवाश्यक महत्त्व बढ गया और वह समझने लगी, उसके बिना भारत की संवैधानिक समस्या हल नहीं हो सकती।

कांग्रेस ने 1916 में लखनऊ पेक्ट में लीग की बहुत सी बातें मान ली।सी.आर.फार्मूले में पाकिस्तान की माँग काफी सीमा तक मान ली गई। इस फार्मूले के संबंध में बातचीत करने के लिए गांधीजी जिन्ना के पीछे भागते रहे।

14 जून, 1947 को कांग्रेस कमेटी की बैठक में पंडित नेहरू ने कहा, कांग्रेस भारतीय संघ में किसी भी इकाई को बलपूर्वक रखने के विरुद्ध रही है।

सशक्त भारत की इच्छा-

कांग्रेस के नेता मुस्लिम लीग की अडंगा नीति और तोङ-फोङ की नीति से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने अनुभव किया कि मुस्लिम लीग की इस नीति के कारण भारत कभी सशक्त राज्य नहीं बन सकेगा।

जिन्ना की हठधर्मी-

जिन्ना की हठधर्मी के कारण गोलमेज सम्मेलन और वेवल योजना असफल हो गयी और साम्प्रदायिक समस्या का कोई हल नहीं निकल सका।जिन्ना सदैव कांग्रेस को हिन्दू संस्था सिद्ध करने का प्रयास करता रहा।

अतंरिम सरकार की असफलता-

अंतरिम सरकार में लियाकत अली वित्त मंत्री थे, जो कांग्रेस मंत्रियों की योजना में सदैव बाधा उपस्थित करते रहे। कांग्रेस मंत्रियों के विभागों को आवश्यक धन स्वीकृत न करके उन्हें बदनाम करने का प्रयास करते रहे। सरकार का चलना असंभव बना दिया।

माउंटबेटन का प्रभाव-

साम्प्रदायिक दंगों के कारण स्थिति अनियंत्रित होती जा रही थी। इसलिए माउंटबेटन ने अनुभव किया कि भारत को विभाजित करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है। अंग्रेजों ने भारत छोङने की तिथि जून, 1948 की बजाय 15 अगस्त, 1947 घोषित कर दी थी, अतः कांग्रेस के सामने केवल दो विकल्प थे- गृहयुद्ध या पाकिस्तान

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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