इतिहासभक्ति आंदोलनमध्यकालीन भारत

महाराष्ट्र में क्यों हुआ था भक्ति आंदोलन

Bhakti movement in Maharashtr-भक्ति आन्दोलन मध्‍यकालीन भारत के सांस्‍कृतिक इतिहास में एक महत्‍वपूर्ण अवसर  था।यह एक मौन क्रान्ति थी। इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों ने समाज में विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया।

भक्ति आन्‍दोलन के प्रारंभिक प्रतिपादक थे- रामानुज आचार्य 

दक्षिण भारत से उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन को लाने वाले संत रामानंद थे।

भक्ति आंदोलन की विशेषताएं-

  • भक्ति की धारणा का अर्थ एकेश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है।
  • भक्ति पंथ ने उपासना की विधियों के रूप में कर्मकांडों तथा यज्ञों का परित्याग किया।
  • भक्ति आंदोलन समतावादी आंदोलन था जिसने जाति या धर्म पर आधारित भेदभाव का पूर्णतया निषेध किया।
  • भक्ति संतों ने जनसाधारण की सामान्य भाषा ( क्षेत्रीय  भाषा ) में उपदेश दिया,  जिसके कारण हिन्दी, मराठी, बंगाली और गुजराती भाषाओं का विकास हुआ।
  • भक्ति आंदोलन के मूल सिद्धांत रूफी संतों की शिक्षाओं से बहुत मिलते जुलते हैं।
  • यह आन्दोलन न्यूनाधिक पूरे दक्षिणी एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप) में फैला हुआ था।
  • यह लम्बे काल तक चला।
  • इसमें समाज के सभी वर्गों (निम्न जातियाँ, उच्च जातियाँ, स्त्री-पुरुष, सनातनी, सिख, मुसलमान आदि) का प्रतिनिधित्व रहा।

महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन-

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के विकास तथा लोकप्रियता में महाराष्ट्र के संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। महाराष्ट्र में भक्ति पंथ पणढरपुर के मुख्य देवता बिठोवा या विट्ठल के मंदिर के चारों ओर केन्द्रित था, इसलिए यह आंदोलन पण्ढरपुर आंदोलन के रूप में प्रसिद्ध है।

भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में आलवारों एवं नायनारों से हुआ ।दक्षिण में भक्ति  आंदोलन  के नेता शंकराचार्य थे जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे। भक्ति आंदलोन में  चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव का प्रमुख योगदान रहा है।भक्ति आंदोलन की  प्रमुख उपलब्धि मूर्ति पूजा को समाप्‍त करना रहा।

भक्ति आंदोलन के नेता रामानंद ने राम को भगवान के रूप में लेकर इसे केन्द्रित किया।उन्‍होंने सिखाया कि भगवान राम सर्वोच्‍च भगवान हैं और केवल उनके प्रति प्रेम और समर्पण के माध्‍यम से तथा उनके पवित्र नाम को बार-बार उच्‍चारित करने से ही मुक्ति पाई जाती है।

  • महाराष्ट्र का भक्ति आंदोलन मुख्य रूप से दो सम्प्रदायों में विभक्त था-1.) रहस्यवादियों  का प्रथम सम्प्रदाय बारकरी अर्थात् पण्ढरपुर के विट्ठल भग्वान के सौम्य भक्तों के रूप में तथा   2.) दूसरा सम्प्रदाय धरकरी सम्प्रदाय या भगवान राम के भक्त।इस (धरकरी ) सम्प्रदाय के अनुयायी स्वयं को रामदास अवहित करते हैं। 
  • बिठोवा पंथ के तीन महान गुरु ज्ञानेश्वर या ज्ञानदेव, नामदेव तथा तुकाराम थे।
  • निवृत्तिनाथ तथा ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र में रहस्यवादी सम्प्रदाय के संस्थापक थे।ये सम्प्रदाय आगे चलकर विकसित हुआ तथा नामदेव, एकनाथ और तुकाराम के हाथों इसने विभिन्न रूप धारण किये।

भक्ति आंदोलन के परिणाम-

  • भक्ति आन्दोलन के द्वारा हिन्दू धर्म ने इस्लाम के प्रचार, जोर-जबरजस्ती एवं राजनैतिक हस्तक्षेप का मुकाबला किया।
  • भक्ति आंदोलन ने  इस्लाम धर्म को  भी प्रभावित किया।जनता कर्मकांडों तथा मूर्तिपूजा एवं अंधविश्वासों से बाहर आई।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तक तथा उनके सिद्धातों का विवरण निम्नलिखित है-

प्रमुख संत-

  • ज्ञानेश्वर या ज्ञानदेव- महाराष्ट्र के प्रारंभिक भक्त संत ज्ञानेश्वर का अभ्युदय 13वी. शता. में हुआ था। इन्होंने मराठी भाषा में भगवतगीता पर ज्ञानेश्वर का अभ्युदय नामक टीका लिखी जिसकी गणना संसार की सर्वोत्तम रहस्यवादी रचनाओं में की जाती है।इन्होंने मराठी भाषा में अपने विचार और आदर्शों को व्यक्त किया। इनकी अन्य रचनाएं हैं – अम्रतानुभव तथा चंगदेव प्रशस्ति ।
  • नामदेव- नामदेव का जन्म एक दर्जी के परिवार में हुआ था। अपने प्रारंभिक जीवन में , ये डाकू थे। पण्ठरपुर के बिठोबा के परम भक्त थे। बारकरी सम्प्रदाय के रूप में प्रसिद्ध विचारधारा की गौरवशाली परंपरा की स्थापना में इनकी मुख्य भूमिका रही । इनके कुछ गीतात्मक पद्य गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। इन्होंने कुछ भक्ति परक मराठी गीतों की रचना की, जो अभंगों ( अभंग विट्ठल या विठोबा की स्तुति में गाये गये छन्दों को कहते हैं। महाराष्ट्र के वारकरी सम्प्रदाय के संतों ने 13वीं सदी के दौरान समाज में अलख जगाने के जो छंद क्षेत्रीय भाषा में गाये, उन्हें अभंग के नाम से जाना जाता है। )के रूप में प्रसिद्ध है।नामदेव ने कहा था – “एक पत्थर की पूजा होती है, तो दूसरे को पैरों तले रौंदा जाता है। यदी एक भगवान है, तो दूसरा भी भगवान है। “ नामदेव ने दूर-दूर तक यात्रा की और दिल्ली में सूफी संतों के वाद विवाद में भी भाग लिया।
  • एकनाथ- इनका जन्म पैठण ( औरंगाबाद ) में हुआ था। इन्होंने जाति एवं धर्म में कोई भेदभाव नहीं किया। इनकी सह्रदयता की कोई सीमा नहीं थी। इन्होंने प्रभु की पूजा के लिए काफी दूर से लाये गये गोदावरी के पवित्र जल को उस गधे के गले में उङेल दिया  जो प्यास से मर रहा था। इन्होंने पहली बार ज्ञानेश्वरी का विश्वसनीय संस्करण प्रकाशित करवाया। ये बहुसर्जक लेखक थे और भगवत गीता के चार श्लोकों पर लिखी गई इनकी टीका प्रसिद्ध है। हमेशा कीर्तन ( भक्ति गीत ) इनकी दिनचर्या थी।
  • तुकाराम – जन्म से तुकाराम शूद्र थे और शिवाजी के समकालीन थे। इन्होंने शिवाजी द्वारा दिये गये विपुल उपहारों की भेंट को लेने से इन्कार कर दिया। इनकी शिक्षायें अभंगों के रूप में संग्रहीत है, जिनकी संख्या हजारों में थी। तुकाराम ने हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिया तथा बाारकरी पंथ की स्थापना की।
  • रामदास- इनका जन्म 1608ई. में हुआ था। इन्होंने 12 वर्षों तक पूरे भारत का भ्रमण किया तथा अन्ततः कृष्णा नदी के तट पर चफाल के पास बस गये जहाँ इन्होंने एक मंदिर की स्थापना की। ये शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु थे। इन्होंने अपनी अति महत्त्वपूर्ण रचना दासबोध में आध्यात्मिक जीवन के समन्वयवादी सिद्धांत के साथ विविध विज्ञानों एवं कलाओं के अपने विस्तृत ज्ञान को संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया है।
  • शंकरदेव(1449-1568 ई. ) – ये मध्यकालीन असम के महानतम धार्मिक सुधारक थे। इनका संदेश विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के प्रति पूर्ण भक्ति पर केन्द्रत था। एकेश्वरवाद इनकी शिक्षाओं का सार है। इनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय एक शरण सम्प्रदाय के रूप में प्रसिद्ध है। इन्होंने सर्वोच्च देवता की महिला सहयोगियों  ( जैसे लक्ष्मी, राधा , सीता आदि ) को मान्यता प्रदान नहीं की। शंकरदेव के सम्प्रदाय में भागवत पुराण या श्रीमद् भागवत को गुरुद्वारों में ग्रंथ साहिब की भाँति इस सम्प्रदाय के मंदिरों की वेदी पर श्रद्धापूर्वक प्रतिष्ठित किया। शंकर मूर्तिपूजा एवं कर्मकांड दोनों के विरोधी थे। ये अकेले कृष्ण मार्गी वैष्णव संत थे जो मूर्ति के रूप में कृष्ण की पूजा के विरोधी थे। इनके धर्म को सामान्यतया महापुरुषीय धर्म के रूप  में जाना जाता है।
  • नरसी ( नरसिंह ) मेहता- नरसी मेहता गुजरात के एक प्रसिद्ध संत थे। इन्होंने राधा और कृष्ण के प्रेम का चित्रण करते हुए गुजराती में गीतों की रचना की । ये गीत सुरत संग्राम में संकलित किये गये हैं। महात्मा गाँधी के प्रिय भजन वैष्णवजन तो तेनो कहिए के रचयेता नरसी मेहता थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/bhakti-movement-in-maharashtra/ ‎

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