आधुनिक भारतइतिहास

ब्रिटिश काल में मुद्रा व्यवस्था तथा बैंक व्यवस्था कैसी थी

ब्रिटिश काल से पूर्व भारत में विनिमय प्रायः वस्तुओं के आदान-प्रदान से होता था। ईस्ट इंडिया कंपनी(East India Company) के समय भी कुछ समय तक भूमि का लगान प्रायः अनाज के माध्यम से ही चुकाया जाता रहा। किन्तु शीघ्र ही अंग्रेजों द्वारा मुद्रा के माध्यम से भुगतान की प्रथा लागू कर दी गयी।

इस प्रथा से आरंभ में किसानों को असुविधा और हानि का सामना करना पङा, क्योंकि उन्हें उपज सस्ते भाव में बेचनी पङती थी और लगान चुकाना पङता था। किन्तु इस मुद्रा व्यवस्था के कारण देश में विनिमय बङा आसान हो गया।

देश के आर्थिक जीवन में बैंकों का सदैव महत्त्व रहा है। प्रारंभ में यहाँ साहूकार वर्ग बैंकों का कार्य करता था। यह साहूकार वर्ग विभिन्न प्रकार का व्यापार करते थे, उत्पादन का कार्य करते थे तथा ऋण देने का काम भी करते थे। प्रमुख व्यापारिक नगरों और मंडियों में इनकी आढते होती थी, जिनके द्वारा वे अपना वाणिज्य-व्यवसाय करते थे।

ये देश के विभिन्न भागों में हुंडियों द्वारा रुपयों का भुगतान करते थे। 18 वी. शता.में तो स्वयं ईस्ट इंडिया कंपनी भी अपने ऋण का भुगतान करने हेतु देशी साहूकारों का आश्रय लेती रही।भारत में आधुनिक बैंक व्यवस्था का प्रादुर्भाव 18 वी. शता. में बंबई(Bombay) और कलकत्ता(Calcutta) में विद्यमान अंग्रेजी एजेन्सियों के बैंकों से हुआ।

ये बैंक अपने नोट प्रचलित करते थे और कंपनी के व्यापार में सहायता करते थे। इसके बाद प्रेसीडेन्सी बैंक स्थापित हुए। सर्वप्रथम कलकत्ता में 1806 में बैंक ऑफ बंगाल(Bank of bengal),1840 में बैंक ऑफ बाम्बे (Bank of bambay)तथा 1843 में बैंक ऑफ मद्रास (Bank of Madras)स्थापित हुए।1862 के पूर्व तक ये बैंक ईस्ट इंडिया कंपनी को ऋण देते थे और अंग्रेज व्यापारियों को आर्थिक सहायता देने के साथ नोट भी चलाते थे।

किन्तु 1862 में नोट चलाने के अधिकार से वंचित कर उन्हें प्रांतों के विभिन्न नगरों में सरकारी खजाने का कार्य सौंपा गया। आगे चलकर 1921 में तीनों प्रेसीडेन्सी बैंकों को मिलाकर इम्पीरियल बैंक की स्थापना की गई। 1836 से एक केन्द्रीय बैंक स्थापित करने का विचार चल रहा था।

1913 में चेम्बरलेन कमीशन और बाद में हिल्टन यंग कमीशन ने इस पर गंभीरता से विचार कर एक विशिष्ट केन्द्रीय बैंक स्थापित करने का सुझाव दिया। फलस्वरूप 1924 में भारत की व्यवस्थापिका सभा ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट स्वीकृत किया, जिसके अनुसार भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध(Second World War) के बाद बैंकों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती गई।

अतः हम कह सकते हैं कि ब्रिटिश शासनकाल में भारत के आर्थिक जीवन में यद्यपि युगांतकारी परिवर्तन हुए, किन्तु अंग्रेजों का प्रमुख लक्ष्य भारत का औपनिवेशिक शोषण था। अतः भारत के आर्थिक ढाँचे में इस प्रकार परिवर्तन किये गये कि वह इंग्लैण्ड की अर्थव्यवस्था का पोषण करता रहे।

किन्तु अंग्रेजों के इन प्रयत्नों से अप्रत्यक्ष रूप से भारत के आधुनिकीकरण (Modernization)का श्रीगणेश हो गया, यद्यपि अंग्रेजों का यह लक्ष्य नहीं था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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