प्राचीन भारतइतिहासबौद्ध काल

बौद्ध धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

बौद्ध धर्म के उदय के महत्वपूर्ण कारण-

वैदिक कालीन सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था में कठोरता, भेदभाव तथा यज्ञ व कर्मकांड स्थापित हो चुका था। इसी दौरान (6 शता.ई.पू.) लोहे का कृषि में व्यापक उपयोग होने के कारण कृषि उत्पादन में विस्तार हुआ। कृषि अधिशेष बढा, कृषि के विस्तार ने पशुओं के महत्व को भी बढा दिया, जबकि वैदिक व्यवस्था में यज्ञ के नाम पर बङी मात्रा में पशु हत्या हो रही थी।

इसी समय द्वितीय नगरीकरण की शुरुआत के साथ वाणिज्य – व्यापार की शुरुआत हुयी । वैश्यों की आर्थिक स्मृद्धि बढी। महाजनपदों के विकास के साथ स्थाई सेना व पेशेवर नौकरशाही का विकास हुआ। इससे राजा की शक्ति में वृद्धि हुई।

राजनीतिक व आर्थिक शक्ति के विकास ने क्रमशः सामाजिक उपेक्षाओं को जगाया अर्थात् दोनों वर्ण (वैश्य एवं शूद्र) व्यवस्था में अपनी स्थिति को लेकर असंतुष्ट थे।

अतः जब नये धर्मों(बौद्ध एवं जैन) का उदय हुआ तो बङी मात्रा में वैश्यों और शूद्रों ने इन धर्मों को प्रश्रय दिया।

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बौद्ध धर्मः शिक्षायें एवं सिद्धांत

दुःख

दुःख समुदाय

दुःख निरोध

दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (दुःख निवारण का मार्ग)।

  • दुःख को हरने वाले तथा तृष्णा का नाश करने वाले अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं। जिन्हें मज्झिम प्रतिपदा अर्थात् मध्यम मार्ग भी कहते हैं।
  • अष्टांगिक मार्ग के तीन मुख्य भाग हैं- प्रज्ञा ज्ञान, शील तथा समाधि। इन तीन प्रमुख भागों के अंतर्गत जिन आठ उपायों की प्रस्तावना की गई है वे इस प्रकार हैं-

सम्यक् दृष्टि

सम्यक् संकल्प

सम्यक् वाणी

सम्यक् कर्मान्त

सम्यक् आजीव

सम्यक् व्यायाम

सम्यक् स्मृति

सम्यक् समाधि

  • अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का कल्याण मित्र कहा गया है।
  • बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है – निर्वाण प्राप्ति।
  • निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना अर्थात् जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। यह निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है, किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है।
  • महात्मा बुद्ध ने दस शीलों के अनुशीलन को नैतिक जीवन का आधार बताया है।
  • जिस प्रकार दुःख समुदाय का कारण जन्म है उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है। इस अज्ञानता रूपी चक्र को प्रतीत्य समुत्पाद कहा जाता है।
  • प्रतीत्य समुत्पाद ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी सम्पूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तंभ है। प्रतीत्य समुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है- प्रतीत्य(किसी वस्तु के होने पर) समुत्पाद (किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति)।
  • प्रतीत्य समुत्पाद के 12 क्रम हैं, जिसे द्वादश निदान कहा जाता है जिसमें संबंधित हैं-

जाति, जरामरण – भविष्य काल से संबंधित

अविद्या, संस्कार, – भूत काल से संबंधित

विज्ञान, नाम- रूप, – वर्तमान काल से संबंधित

स्पर्श, तृष्णा, वेदना, – वर्तमान काल से संबंधित

षडायतन, भव, उत्पादन – वर्तमान काल से संबंधित

  • प्रतीत्य समुत्पाद में ही अन्य सिद्धांत जैसे – क्षण – भंगुरवाद तथा नैरात्मवाद आदि समाहित हैं।
  • बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी है, वास्तव में बुद्ध ने ईश्वर के स्थान पर मानव प्रतिष्ठा पर ही बल दिया है।
  • बौद्ध धर्म अनात्मवादी है इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है। यह पुनर्जन्म में विश्वास करता है। अनात्मवाद को नैरात्मवाद भी कहा जाता है।
  • बौद्ध धर्म ने जाति तथा वर्ण व्यवस्था का विरोध किया था।
  • बौद्ध संघ का दरवाजा हर जातियों के लिए खुला था । स्रियों के अधिकारों को भी संघ में प्रवेश का अधिकार प्राप्त था।
  • संघ की सभा में प्रस्ताव (नत्ति)का पाठ होता था। प्रस्ताव पाठ को अनुसावन कहते थे। सभा की वैध कार्यवाही के लिए न्यूनतम संख्या (कोरम) 20 होती थी।
  • संघ में प्रविष्ट होने को उपसम्पदा कहा जाता था।
  • बौद्ध संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था । संघ में चोर, हत्यारों, ऋणी व्यक्तियों, राजा के सेवक, दास तथा रोगी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित था।
  • बौद्धों के लिए महीने के 4 दिन अमावस्या, पूर्णिमा तथा दो चतुर्थी दिवस उपवास के दिन होते थे।
  • अमावस्या, पूर्णिमा तथा दो चतुर्थी दिवस को बौद्ध धर्म में उपोसथ के नाम से जाना जाता था।
  • बौद्धों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौंहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
  • बौद्ध धर्म में बुद्ध पूर्णिमा के दिन का इसलिए महत्व है, क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति तथा महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
  • महात्मा बुद्ध से जुङे 8 स्थान – लुम्बिनी, गया. सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, संकास्य, राजगृह तथा वैशाली को बौद्ध ग्रंथों में अष्टमहास्थान नाम से जाना गया है।

इन धार्मिक सम्प्रदायों ने उपनिषदों द्वारा तैयार वैधानिक पृष्ठभूमि के आधार पर पुरातन वैदिक ब्राह्मण धर्म के अनेक दोषों पर प्रहार किया अतः बौद्ध धर्म को तथा अन्य सम्प्रदायों को सुधार वाले आंदोलन भी कहा गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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