मध्यकालीन भारतइतिहासभक्ति आंदोलन

चैतन्य महाप्रभु

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चैतन्य ( 1486-1533ई. )- चैतन्य का जन्म 1486ई. में नवद्वीप या नदिया (बंगाल) में हुआ था। चैतन्य का वास्तविक नाम विश्वंभर था पर बाल्यावस्था में इनका नाम निमाई था। शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत इन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की गई। चैतन्य भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक थे।

इन्होंने वैष्णवों के गौङीय संप्रदाय की आधारशिला रखी तथा जाँति-पाँति व ऊँच-नीच की भावना से दूर रहने की शिक्षा दी इन सबके अलावा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया। चैतन्य के बारे में जानकारी  वृंदावनदास द्वारा रचित चैतन्य भागवत नामक ग्रंथ से मिलती है।

गौरवर्ण का होने के कारण इन्हें गौरांग, गौर हरि आदि नामों से भी जाना जाता है।

चैतन्य  अपनी मां का बहुत मान करते थे। माता की आज्ञा और आग्रह से उन्होंने पंडित सनातन मिश्र की कन्या विष्णुप्रिया से विवाह कर लिया।

चैतन्य को बंगाल में आधुनिक वैष्णवाद, जिसे गौडीय वैष्णव धर्म कहा जाता है का संस्थापक माना जाता है। भक्त कवियों में चैतन्य एक मात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध नहीं किया। उनके दार्शनिक सिद्धांत वेदांत की अद्वैतवाद की ही शाखाएं थी।

चैतन्य ने लगभग सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। वे वृन्दावन भी गये जहाँ उन्होंने कृष्ण भक्ति सम्प्रदाय को पुर्नस्थापित किया।

उङीसा नरेश प्रताप रुद्र गजपति उनके शिष्य थे। उनके संरक्षण में चैतन्य स्थायी रूप से पुरी में रहे और वहीं इनका देहावसान हुआ।

चैतन्य ने ईश्वर को कृष्ण या विष्णु का अवतार माना है तथा इन्हें गौरांगमहाप्रभु के नाम से पूजते हैं। चैतन्य ने भक्ति में कीर्तन को मुख्य स्थान दिया। चैतन्य के अधिकांश शिष्य निम्नजाति के थे जिनमें प्रमुख शिष्य हरिदास थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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