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चक्रवर्ती राजगोपालाचारी योजना(सी.आर.फार्मूला) क्या था

राजगोपालाचारी योजना

सी.राजगोपालाचारी मद्रास प्रांत के प्रभावशाली नेता थे। भारत छोङो आंदोलन के पूर्व उन्होंने भारत की साम्प्रदायिक समस्या का हल निकालने के लिए एक योजना तैयार की थी, जिसमें आत्मनिर्णय के अधिकार के नाम से मुसलमानों की पाकिस्तान की माँग स्वीकार कर ली गयी थी।

कांग्रेस के नेताओं ने इसे बहुत बुरा माना तथा इस प्रश्न पर राजगोपालाचारी से तीव्र मतभेद हो गया।अतः 1943 में उन्होंने कांग्रेस से अपना त्यागपत्र दे दिया।1942 के आंदोलन में मुस्लिम लीग से समझौता किये भारत में राजनीतिक गतिरोध को दूर नहीं किया जा सकता। जेल से छूटने के बाद गांधीजी ने इस समस्या के समाधान हेतु जिन्ना से भी बातचीत करना आवश्यक समझ, ताकि इस समस्या का कोई समाधान निकल सके।

इसीलिए 10 जुलाई, 1944 को राजगोपालाचारी ने अपनी योजना प्रकाशित की, जो सी.आर.फार्मूला के नाम से विख्यात हुई।

सी.आर.फार्मूला (C.R. Formula)की मुख्य बातें निम्नलिखित थीं-

  • मुस्लिम लीग भारतीय स्वतंत्रता की माँग का समर्थन करेगी और कांग्रेस को संक्रमण काल में अस्थायी सरकार बनाने में अपना पूर्ण सहयोग देगी।
  • युद्ध के बाद भारत के उत्तर-पूर्व तथा उत्तर-पश्चिम में मुस्लिम बहुमत वाले प्रदेशों की सीमा निर्धारित करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया जायेगा। इन प्रदेशों में किसी व्यावहारिक मताधिकार के आधार पर यह तय करने के लिए जनमत लिया जायेगा, कि ये प्रदेश भारत से अलग होना चाहते हैं या नहीं।
  • यदि मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्र भारत से अलग होने का निर्णय करते हैं, तो उनका राज्य अलग बन जायेगा और दोनों राज्यों के बीच प्रतिरक्षा, संचार और आवागमन के साधनों के संबंध में एक संधि होगी।
  • ये शर्तें तभी लागू होंगी, जब ब्रिटेन भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान कर देगा।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी योजना पर सितंबर, 1944 में गांधीजी व जिन्ना के बीच वार्ता आरंभ हुई।जिन्ना ने मुख्य रूप से तीन कारणों से इस फार्मूले को अस्वीकृत कर दिया।

जिन्ना द्वारा राजगोपालाचारी योजना को अस्वीकार करने के कारण-

  1. इस योजना में मुसलमानों को अपूर्ण, अंगहीन तथा दीमक लगा हुआ पाकिस्तान दिया गया, क्योंकि वह तो संपूर्ण बंगाल, असम, सिंध, पंजाब और उत्तरी-पश्चिमी प्रांत व बलूचिस्तान चाहता था।
  2. इसमें जनमत संग्रह में गैर मुसलमानों को भी भाग लेने की अनुमति दे दी गई थी, जबकि जिन्ना केवल मुसलमानों को मताधिकार देना चाहता था।
  3. इसमें प्रतिरक्षा, संचार और आवागमन के साधनों के संबंध में संयुक्त व्यवस्था का प्रस्ताव था, जिसे जिन्ना मानने को तैयार नहीं था।

अतः इन सभी बातों को लेकर सी.आर.फार्मूले के संबंध में वार्ता असफल रही।

इस वार्ता के असफल होने से जिन्ना को अत्यधिक फायदा हुआ।गांधीजी की जिन्ना से बातचीत करना उनकी राजनैतिक भूल थी, क्योंकि अब देश का विभाजन अधिक चर्चा का विषय बन गया।

गांधीजी के जिन्ना के पीछे भागने और उससे प्रार्थनाएँ करने से जिन्ना का अखिल भारतीय महत्त्व बढ गया। इतना ही नहीं, गांधीजी ने ही जन्ना को कायदे आजम ( बङा नेता) कहना शुरू किया।

इस प्रकार गांधीजी ने उसको बङा नेता मानकर मुसलमानों की दृष्टि से उसे अत्यधिक महत्त्व प्रदान कर दिया। मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्रों के नेताओं ने अब जिन्ना के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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