मध्यकालीन भारतसूफीमत

सम्प्रदाय क्या था एवं सूफी सम्प्रदाय के संस्थापक ( चिश्ती सम्प्रदाय )

What is Community – एक ही धर्म की अलग अलग परम्परा या विचारधारा मानने वाले वर्गों को सम्प्रदाय कहते है। सम्प्रदाय हिंदूबौद्ध, ईसाई, जैनइस्लाम आदि धर्मों में  हैं। सम्प्रदाय के अन्तर्गत गुरु-शिष्य परम्परा चलती है जो गुरु द्वारा प्रतिपादित परम्परा को पुष्ट करती है।

सूफी सम्प्रदाय तथा उसके संस्थापक-

चिश्ती संप्रदाय-

  • सैय्यद मुहम्मद हाफिज के अनुसार चिश्ती भारत का सर्वप्रथम प्राचीन सूफी सिलसिला है। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती सन् 1192 ई. में ( 12वी. शता. ) शिहाबुद्दीन गोरी की सेना के साथ भारत में आये और बाद में इन्होंने चिश्तियां परंपरा की नींव डाली। भारत में इन्होंने बहुत से हिन्दू रीति रिवाजों को अपना लिया। चिश्तियों की प्रकृति उदार थी। ईश्वर प्रेम और मानव की सेवा उनके प्रमुख सिद्धांतों में से थे। इस सिलसिले के सूफीसंत हिन्दू योगियों की भाँति जीवन व्यतीत करते थे। वे अद्वैतवाद के परंपरागत नियमों में विश्वास रखते थे तथा निजी संपत्ति के खिलाफ थे। वे समा में विश्वास रखते थे। मुइनुद्दीन चिश्ती  ने अजमेर में अपना निवास स्थान बनाया। उनकी समाधि अजमेर में ख्वाजा साहब के नाम से प्रसिद्ध दरगाह  है। उनके बाद ख्वाजा बख्तियार काकी सुल्तान इल्तुतमिश के समकालीन थे। उन्होंने ही बाबा फरीद को चिश्तियां परंपरा में दीक्षित किया था। शेख फरीदुद्दीन गंज- ए – शंकर ( 1175-1265 ई. ) इसी सिलसिले के थे जो सिक्ख परंपरा में बाबा फरीद के रूप में प्रसिद्ध थे। बाबा फरीद के कारण चिश्तियां सिलसिले को भारत में लोकप्रियता प्राप्त हुई।

बाबा फरीद का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रचनाओं से है जो गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। बाबा फरीद बलबन का दामाद था। चिश्ती संतों में सबसे प्रसिद्ध निजामुद्दीन औलिया ( 1238-1325ई. ) और नासिरुद्दीन चिराग- ए – दिल्ली थे। ये संत जनता के निम्न वर्गों से जिनमें हिन्दू भी शामिल थे, मुक्त रूप से मिलते – जुलते थे।उत्तर भारत के अग्रणीय सूफी संत शेख निजामुद्दीन औलिया थे। वे तुगलक सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के समकालीन थे, जिसने औलिया की अतिशय लोकप्रियता से भयभीत होने के कारण उन्हें दिल्ली छोङने का आदेश दिया था। शेख निजामुद्दीन औलिया के सबसे प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे। खुसरो अपने पीर ( गुरु ) निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु का समाचार जानने के दूसरे दिन ही प्राण त्याग दिये। उसे उसी स्थान पर दफनाया गया।शेख निजामुद्दीन के उदार एवं सहिष्णु दृष्टिकोण के कारण उन्हें महबूब-ए- इलाही ( ईश्वर के प्रेमी ) की लोकप्रिय उपाधि मिली।सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने  ( औलिया की इच्छा के विरुद्ध  मुझे अपनी कब्र पर कोई स्मारक नहीं चाहिए, मुझे खुले और विस्तृत मैदान में विश्राम करने दिया जाय।) दिल्ली में उनका मकबरा बनवाया। निजामुद्दीन औलिया ने योग की प्राणायाम की पद्दति इस हद तक अपनायी कि उन्हें योगी सिद्ध कहा जाने लगा।

नासिरुद्दीन चिराग- ए- दिल्ली एक चमत्कारी संत थे उन्होंने तौहिद – ए – वजूदी की रचना की। इनकी मृत्यु के साथ ही चिश्ती सिलसिलों का पहला दौर समाप्त हो जाता है। चिराग-ए-दिल्ली के उत्तराधिकारी सैयद मुहम्मद गेसूदराज बहमनी सल्तनत की स्थापना हो जाने के बाद कर्नाटक में गुलबर्गा में आकर स्थायी रूप से बस गये। दुखियों एवं दरिद्रों के प्रति गेसूदराज के प्रेम तथा मानव अधिकारों की रक्षा करने के कारण उन्हें बंदानवाज (ईश्वर के प्राणियों के हितैषी ) की उपाधि प्राप्त की।चिश्ती सम्प्रदाय से प्रभावित होकर बंगाल के शासक हुसैनशाह ने अपना प्रसिद्ध सत्यपीर आंदोलन प्रारंभ किया।

इस प्रकार कुतुबुद्दीन बख्तियार , शेख बुहरानुद्दीन गरीब ने रखी थी जो निजामुद्दीन चिराग-ए-दिल्ली, बाबा फरीद, बुहरानुद्दीन गरीब तथा गेसूदराज आदि चिश्ती सम्प्रदाय के प्रमुख संत थे।

दक्षिण में चिश्ती सिलसिले की नींव शेख बुहरानुद्दीन गरीब ने रखी थी जो निजुमुद्दीन औलिया के शिष्य थे। उन्होंने दौलताबाद को अपना स्थायी निवास स्थान बनाया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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