इतिहासपाषाण कालप्राचीन भारत
ताम्रपाषाण बस्तीयाँ
- ताम्रपाषाण बस्तीयाँ – नीचे लिखि सभी संस्कृतियाँ गंगा – यमुना दोआब से मिली हैं।
- गैरिक मृदभांड (OCP) – हङपा सभ्यता के समकालीन है लेकिन संबंधित नहीं।
- काले एवं लाल मृदभांड (BRW) – हङपा सभ्यता के समकालीन है लेकिन संबंधित नहीं।
- चित्रित धूसर (PGW) – सैंधव सभ्यता के परवर्ती / बाद के काल की है।
- ताम्र संचय /ताम्र निधान – यह भी हङपा सभ्यता के बाद की है।
- काले पॉलिशदार मृदभांड ( NBPW) – सैंधव सभ्यता के बाद की है।
- गैरिक मृदभांड संस्कृति (OCP) – कालक्रम 2400-1800 ई. पू.
- स्थल – अंतरंजीखेङा , झिंझाना , लालकिला , बहादराबाद , अंबरबेली , आलमगीरपुर
- प्रथम बार इसका साक्ष्य बदायूं के पास रिसौली ( यू.पी.) एवं बिजनौर के पास राजपुरपरशु से 1953 में प्राप्त हुई।
- यह संस्कृति गंगा – यमुना दोआब में स्थित है। जो एक ताम्रपाषाण संस्कृति थी।
- यहाँ पर कच्ची ईंटों के मकान वर्गाकार , गोलाकार मकान प्राप्त हुए हैं , जिनका आंगन मिट्टी से ढका जाता था।
- मकानों के निर्माण में सरगण्डों का उपयोग किया गया है।
- काले एवं लाल मृदभांडों की संस्कृति (BRW) – 2400 ई.पू.- 2शता ई.पू.)
- यह संस्कृति सर्वाधिक समय और सर्वाधिक क्षेत्रफल पर रही है। यह पश्चिम में लाख बवार से पूर्व में पाण्डुरजोरढी (बंगाल) तक तथा उत्तर में रोपङ से दक्षिण में आदिचन्नानूर तक फैली हुई है।
- विशेषता – इस संस्कृति के मृदभांड अंदर से एवं किनारों का बाहरी भाग काला जबकी बाहरी भाग लाल रंग से रंगा हुआ है।
- इस संस्कृति का प्रथम स्थल अतरंजीखेङा है। अतरंजीखेङा से काले मृदभांडमिले हैं तथा इस संस्कृति से पहले की संस्कृति गैरिक मृदभांड संस्कृति के साक्ष्य भी मिले हैं।
- प्रश्न-
- कथन– हङपा संस्कृति के अन्य समकालीन संस्कृतियों से व्यापक व्यापारिक संबंध थे।
- कारण– कांस्ययुगीन सभ्यताएँ विस्तृत विनिमय नेटवर्क से प्रतिपादित थी।
- उत्तर – कथन व कारण दोनों सही हैं।
- ताम्र संचय / निधान संस्कृति -(2200- 1800 ई.पू.)
- स्थल – 1822ई. में कानपुर के बिठुर नामक स्थल को प्रथम स्थल के रूप में प्राप्त किया ।
- अन्य स्थल – गुंगेरिया (म.प्र.) यहाँ से सर्वाधिक ताम्र उपकरण लगभग 424 उपरण प्राप्त हुए हैं।तथा यहाँ से चाँदी के पत्तर भी प्राप्त हुए हैं।
- गुंगेरिया – से 85 स्थलों की खोज हो चुकी है जिनमें से 30 स्थलों की खुदाई की गई है।
- सइपई (म.प्र.) – यहाँ से गैरिक मृदभांड संस्कृति के भी साक्ष्य मिले हैं अत: कुछ इतिहासकार ताम्र संचय संस्कृति का संबंध गैरिक मृदभांड संस्कृति से जोङते हैं।
- चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति (PGW)- 1600-900 ई.पू. यह संस्कृति वैदिक काल के समकालीन है।
- इस संस्कृति का प्रथम साक्ष्य अहिछत्रपुर (उ.प्र.) से 1963 में मिला है।
- अन्य स्थल – हस्तिनापुर, भगवानपुर (हरियाणा), दधिरी, कटपालन, नागर, जाखेङा( उ.प्र.), रोपङ(पंजाब), बुखारी (हरियाणा)
- कुल 750 स्थल प्रकाश में आये हैं जिनमें से 75 स्थलों की ही खुदाई संभव हुई है।
- हस्तिनापुर गंगा – यमुना में स्थित एक मात्र चित्रित धुसर संस्कृति का स्थल है , जहाँ से लौह उपकरण प्राप्त नहीं हैं। अन्य सभी स्थलों से ताम्र उपकरणों के साथ-साथ लौहे के उपकरण भी प्राप्त हुए हैं।
- जाखेङा से लौहे की हंसिया और कुदाल प्राप्त हुई हैं।
- हस्तिनापुर से चावल एवं अतरंजीखेङा से गेहूँ व जौ के साक्ष्य मिले हैं। इन दोनों स्थलों के अलावा अन्य किसी भी चित्रित धूसर मृदभांड स्थल से अनाज के साक्ष्य नहीं मिले।
- उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड (NBPW) – 1100 – 400 ई.पू.
- 1930 ई. में प्रथम स्थल तक्षशिला की खोज हुई।
- अब तक 1500 स्थल खोजे गए जिसमें से 70 स्थलों की खुदाई हो चुकी है।
- यह संस्कृति अनिवार्य रूप से लोहे से जुङी हुई है। ( ताँबा + लौहे के उपकरण भी प्राप्त हुए हैं)
- यह संस्कृति आगे द्वितीय नगरीकरण (600ई.पू.) से जुङ गई । अर्थात इस ताम्र पाषाण संस्कृति के परवर्ती स्थलों से घेरेदार कुँए, पक्की ईंटे एवं नगरों से संबंध था।