इतिहासआधुनिक भारतदयानंद सरस्वती

दयानंद सरस्वती द्वारा किये गये सुधार के कार्य

दयानंद सरस्वती के कार्य

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में गुजरात में हुआ था। ये अंग्रेजी भाषा से अनभिज्ञ थे तथा पाश्चात्य सभ्यता व ईसाई धर्म से भी अप्रभावित थे। उनका उद्देश्य हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित करना था तथा हिन्दू धर्म की बुराइयों को निकालना था। दयानंद सरस्वती ने हिन्दू धर्म में सुधार करने के लिए सामाजिक सुधार,धार्मिक सुधार, साहित्यिक एवं शैक्षणिक सुधार से संबंधित कार्य किये जिनका विवरण निम्नलिखित है-

सामाजिक सुधार के कार्य-

भारतीय समाज में जाति व्यवस्था शताब्दियों से प्रचलित रही है। इस जाति प्रथा ने यदि एक ओर हिन्दू धर्म की रक्षा की तो दूसरी ओर हिन्दुओं के राजनीतिक एवं सामाजिक पतन के लिए भी उत्तरदायी रही। प्राचीन वर्ण-व्यवस्था जन्म पर आधारित थी, जिसकी स्वामी दयानंद ने कटु आलोचना की। उनके अनुसार समाज में किसी व्यक्ति को जन्म के आधार पर उच्च स्थान पर पहुँचने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने छुआछूत तथा समुद्र -यात्रा-निषेध के विरुद्ध आवाज बुलंद की तथा जाति-प्रथा का खंडन किया।

वैदिक काल के सामाजिक ढाँचे के आधार पर आर्य समाज ने स्त्रियों को समाज में उच्च स्थान दिलाने का प्रयत्न किया। वैदिक काल में स्त्रियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने तथा सामाजिक जीवन में भाग लेने का पूरा अधिकार था। अतः आर्य समाज ने स्त्री-शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया। समाज में स्त्रियों की दशा अत्यंत ही शौचनीय थी। इसका कारण बहु-विवाह प्रथा तथा बाल-विवाह प्रथा थी। वैदिक काल में ये प्रथाएँ प्रचलित नहीं थी, अतःसमाज में स्त्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था । इसलिए आर्य समाज ने बाल-विवाह, बहु-विवाह,पर्दा -प्रथा का घोर विरोध किया तथा विधवा-विवाह एवं स्त्री-शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने 16 वर्ष से कम आयु की लङकियों के विवाह बंद करने की बात कही। आर्य समाज ने सती-प्रथा को पाप तथा क्रूरता बतलाया और समाज में स्त्रियों की समानता पर बल दिया।स्वामी दयानंद सरस्वती ने तो यहां तक कहा कि वेदों के अध्ययन का अधिकार स्त्रियों को उतना ही है, जितना पुरुषों को। प्रचलित हिन्दू मान्यता के अनुसार यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार स्त्रियों को भी है।

शुद्धि आंदोलन-

आर्य समाज ने शुद्धि आंदोलन को जन्म दिया। शुद्धि से अभिप्राय उस संस्कार से है, जिसमें गैर-हिन्दुओं, अछूतों, दलित वर्गों तथा ईसाई व मुसलमान बनाये हुए हिन्दुओं को पुनः हिन्दू धर्म में स्वीकार कर लिया जाता था। आर्य समाज के प्रयत्नों का ही परिणाम है कि आज तक लाखों हिन्दुओं को जो मुसलमान और ईसाई बन गये थे, शुद्ध करके उन्हें पुनः हिन्दू धर्म में वापस बुला लिया गया है तथा वे पूर्ण रूप से समाज में सम्मान का उपभोग कर रहे हैं। आर्य समाज ने हिन्दू समाज में संगठन का बीजारोपण किया, जिससे हिन्दू समाज में आत्मविश्वास एवं आत्म-सम्मान की भावना जागृत हुई।

धार्मिक सुधार कार्य-

आर्य समाज ने मूर्तिपूजा,कर्मकांड,बलिप्रथा,स्वर्ग और नरक की कल्पना तथा भाग्य में विश्वास का विरोध किया। उसने वेदों की श्रेष्ठता का दावा किया तथा वेदों के आधार पर ही हवन,यज्ञ,मंत्रोच्चारण,कर्म आदि पर बल दिया।उनका मानना था कि ईश्वर निराकार है, अतः मूर्तिपूजा निरर्थक है। उन्होंने अनेकेश्वरवाद और अवतारवाद का विरोध किया। स्वामी दयानंद ने अपने भाषण में पौराणिक रूढियों एवं मान्यताओं की निंदा की। उन्होंने हिन्दुओं के मोक्ष का समर्थन किया तथा बताया कि ईश्वर की उपासना,अच्छे कर्म और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। वेदों की व्याख्या उन्होंने इस प्रकार की जिससे कि वेद वैज्ञानिक,सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतों के स्त्रोत माने जा सकते हैं। आर्य समाज का यह दृढ विश्वास था कि कोई भी ऐसा ज्ञान नहीं है, जो हम वेदों से प्राप्त नहीं कर सकते। अतः हमें इस्लाम और ईसाई धर्म या पाश्चात्य सभ्यता की ओर देखने की आवश्यकता नहींं है। वेदों की श्रेष्ठता के आधार पर आर्य समाज ने हिन्दू धर्म को इस्लाम और ईसाई धर्म के आक्रमणों से बचाने में सफलता प्राप्त की। आर्य समाज ने ने केवल हिन्दू धर्म की रक्षा की बल्कि ईसाई धर्म के ढोंग और पाखंडों पर भी भीषण प्रहार किया तथा हिन्दू धर्म की कुरीतियों का जनाजा निकाला। उसने मृतकों के श्राद्ध का विरोध किया और कहा कि भोजन कराके अथवा दान देकर परलोक में मृतक व्यक्तियों को सब कुछ पहुँचाने की कल्पना मूर्खतापूर्ण है। स्वामी दयानंद सरस्वती किसी धर्म से घृणा नहीं करते थे, किन्तु जहाँ पाखंड,ढोंग,असत्य,दंभ और आडंबर देखते तो उनकी धज्जियाँ उङाये बिना चैन नहीं मिलता था। उन्होंने हिन्दुओं को अपने प्राचीन धर्म,गौरवपूर्ण सत्याता और आदर्श का स्मरण करा कर उन्हें स्वावलंबी बनाने की चेष्ठा की।

साहित्यिक एवं शैक्षणिक सुधार के कार्य-

स्वामी दयानंद सरस्वती ने तथा उनके अनुयायियों एवं उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने साहित्यिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये। स्वामी दयानंद ने अपने ग्रंथ हिन्दी में लिखकर राष्ट्र-भाषा के विकास में योगदान दिया। स्वामी दयानंद संस्कृत के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रसार करना था, अतः उसने प्राचीन आश्रम व्यवस्था को पुनः स्थापित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया। उसने शिक्षा की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली को प्रचलित किया, जहाँ विद्यार्थी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए गुरु के आश्रम में विद्या – अध्ययन कर सकें। आर्य समाज ने ही मैकाले की माया से मुग्ध भारतीयों की मोह -निद्रा को भंग किया। उस समय हिन्दुओं में नारी-शिक्षा के विरुद्ध वातावरण व्याप्त था तथा स्त्रियों को पढाना समाज में अनुचित माना जाता था और वेदों को पढना-पढाना स्त्रियों के लिए वर्जित था। स्त्रियों में कठोर पर्दा-प्रथा भी स्त्रियों की शिक्षा में बाधक थी।

स्वामी दयानंद सरस्वती ने तथा उनके अनुयायियों एवं उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने साहित्यिक एवं शैक्षणिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किये। स्वामी दयानंद ने अपने ग्रंथ हिन्दी में लिखकर राष्ट्र-भाषा के विकास में योगदान दिया। स्वामी दयानंद संस्कृत के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रसार करना था, अतः उसने प्राचीन आश्रम व्यवस्था को पुनः स्थापित करते हुए उसके अध्ययन और अध्यापन हेतु बल दिया। उसने शिक्षा की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली को प्रचलित किया, जहाँ विद्यार्थी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए गुरु के आश्रम में विद्या – अध्ययन कर सकें। आर्य समाज ने ही मैकाले की माया से मुग्ध भारतीयों की मोह -निद्रा को भंग किया। उस समय हिन्दुओं में नारी-शिक्षा के विरुद्ध वातावरण व्याप्त था तथा स्त्रियों को पढाना समाज में अनुचित माना जाता था और वेदों को पढना-पढाना स्त्रियों के लिए वर्जित था। स्त्रियों में कठोर पर्दा-प्रथा भी स्त्रियों की शिक्षा में बाधक थी।

राष्ट्रीय सुधार के कार्य-

भारतवासियों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने में भी आर्य समाज का महत्त्वपूर्ण जोगदारन रहा है। आर्य समाज द्वारा किये गये सामाजिक और धार्मिक सुधारों का परिणाम यह हुआ कि भारतीयों में परोक्ष रूप से आत्मविश्वास और स्वाभिमान का विकास हुआ। भारतीयों में आत्मविश्वास और स्वावलंबन का विकास अंग्रेज प्रशासकों को कैसे पसंद आ सकता था। अतः कुछ अंग्रेज लेखकों,अधिकारियों एवं ईसाई धर्म-प्रचारकों ने आर्य समाज के संबंध में उल्टे-सीधे प्रचार किये। वेलेण्टाइन शिरोल ने बताया कि आर्य समाज का उद्देश्य सुधार की अपेक्षा हिन्दू धर्म को विदेशी प्रभाव से मुक्त करना था। शिरोल के इन आरोपों का प्रत्युतर लाला लाजपतराय ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ द आर्य समाज में बङे प्रभावशाली ढंग से दिया है।

वस्तुतः आर्य समाज ने भारत के प्राचीन गौरव की चर्चा करते हुए स्वावलंबन के विकास को प्रोत्साहन दिया। इससे राष्ट्रीयता और स्वराष्ट्र प्रेम की भावना को बल मिला। स्वामी दयानंद सरस्वती के एक जीवनी लेखक ने लिखा है कि दयानंद का एक मुख्य लक्ष्य राजनीतिक संवतंत्रता था। वास्तव में वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया। वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा स्वदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना तथा विदेशी वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया। वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा स्वीकार किया।

दयानंद ने वेदकालीन भारत को इसलिए गौरवमय बताया कि उस समय भारत में स्वराज्य था। बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपतराय, गोपालकृष्ण गोखले आदि जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया, आर्य समाज से प्रभावित थे। आर्य समाज ने परस्पर अभिवादन करने हेतु विख्यात नमस्ते शब्द का प्रचलन किया, जो आज न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय है।

स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु के बाद उनके आंदोलन के विकास को धक्का लगा,क्योंकि कुछ विषयों पर मतभेद हो जाने के कारण 1892 में आर्य समाजियों के दो दल बन गये,किन्तु प्रत्येक दल ने अपनी पद्धति एवं विचारधारा के आधार पर इस आंदोलन को शक्तिशाली बनाया। लाला हंसराज के नेतृत्व में वैदिक सिद्धांतों के साथ पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार किया गया, तो महात्मा मुंशीराम ने हरिद्वार के पास गुरुकुल कांगङी की स्थापना की। यह देश का पहला विश्वविद्यालय था, जहाँ राष्ट्र भाषा हिन्दी के माध्यम से उच्च शिक्षा सफलतापूर्वक दी गई। महात्मा मुंशीराम ही आगे चलकर श्रद्धानंद के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने आर्य समाज के शुद्धि आंदोलन को लोकप्रिय बनाने का अथक प्रयास किया।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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