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द्वितीय विश्व युद्ध

प्रथम विश्व युद्ध(First world war) (1914-18) के कारण यूरोप में जो अस्थिरता बन गयी थी, वहीं से दूसरे विश्व युद्ध(Second world war) की शुरुआत हो गयी थी। वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध के समय कुछ देशों को मिली पराजय उनके बीच हुई सन्धियाँ और परिस्थिति के अनुसार बने नियम ज्यादा समय तक नहीं चल सके ।

आर्थिक और राजनीतिक रूप से अस्थिर जर्मनी(Germany) में सत्ता बढ़ाने के लिए, एडॉल्फ हिटलर(Hitler) और उनके राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी ने देश को फिर से स्थायी किया और विश्व में अपना प्रभुत्व बढ़ाने जैसी अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इटली और जापान के साथ संधि पर हस्ताक्षर किए।

ग्रेट ब्रिटेन को जर्मनी पर आक्रमण करने की तब प्रेरणा मिली, जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण किया (1सितंबर 1939 ) और इस तरह से द्वितीय विश्व युद्ध की औपचारिक शुरुआत हो गई ।

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ( dviteey vishv yuddh ke kaaran )

पेरिस की शांति वार्ता  ( peris kee shaanti sandhi)

जर्मनी, ऑस्ट्रिया और कई अन्य देश भी पेरिस की संधि से खुश नहीं थे, क्योंकि इसके अनुसार उन्हें हथियारों का उपयोग बंद करना था।

आर्थिक मुद्दे ( aarthik mudde )

प्रथम विश्व युद्ध ने कई देशों की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाला था, हालांकि यूरोपियन आर्थिक अवस्था 1920 तक बहुत ही अच्छी स्थिति में थी, लेकिन यूनाइटेड स्टेट में आये परिवर्तन ने यूरोप में भी मंदी का दौर ला दिया था।

ऐसी खराब आर्थिक स्थिति में कम्युनिज्म और फासिज्म ने अपनी शक्तियाँ बढा ली थी।

नेशनलिज्म (Nationalism)

प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप में देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ा था, वो भी विशेषकर उन देशों में जो युद्ध में हार गये थे।

डिक्टेटरशिप (Dictatorships)

राजनीतिक अस्थिरता और प्रतिकूल आर्थिक स्थिति के कारण कुछ देशों में  डिक्टेटरशिप बढने लगा। जिनमें भी जर्मनी, इटली, जापान और सोवियत संघ मुख्य थे।

द्वितीय विश्व युद्ध का भारत पर प्रभाव

1 सितंबर,1939 को जर्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड ने 3 सितंबर, 1939 को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

अंग्रेजों ने कहा – इस युद्ध द्वारा प्रत्येक राष्ट्र के शोषण का अंत होगा और प्रत्येक जाति को आत्मनिर्णय का अधिकार होगा। इसके तुरंत बाद लार्ड लिनलिथगो ने केन्द्रीय विधान मंडल, प्रांतीय विधान मंडल अथवा मंत्रिमंडलों से परामर्श किये बिना भारत को भी इंग्लैण्ड के साथ युद्ध में शामिल कर लिया।

कांग्रेस ने गवर्नर-जनरल की इस कार्यवाही को सर्वथा अनुचित बताया।

10 अक्टूबर,1939 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई, जिसमें माँग की गई,कि ब्रिटिश सरकार यह घोषणा करे कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को स्वतंत्र कर दिया जायेगा।

तत्काल भारतीय मामलों पर अधिक से अधिक नियंत्रण दे दिया जायेगा। कांग्रेस की इस माँग के बावजूद 17 अक्टूबर,1939 को लार्ड लिनलिथगो ने युद्ध के बाद भारत को अधिराज्य स्थिति देने की घोषणा की।

इस घोषणा से किसी को भी तसल्ली नहीं हुई। महात्मा गाँधी ने कहा, कांग्रेस ने रोटी माँगी थी, परंतु इसको पत्थर मिले।

22 अक्टूबर,1939 को कांग्रेस कार्य समिति ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें ब्रिटिश सरकार के रवैये के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए काँग्रेसी मंत्रिमंडलों को त्यागपत्र देने को कहा।

8 प्रांतों के कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दे दिया। इन सभी प्रांतों में गवर्नर-जनरल से संविधान की विफलता घोषित करके धारा 93 के अनुसार प्रांतों का शासन गवर्नरों को सौंप दिया और प्रांतीय स्वराज्य का अंत कर दिया।

प्रांतों में उत्पन्न संवैधानिक गतिरोध का परिणाम यह निकला कि, लार्ड लिनलिथगो जिन्ना की सहायता की तरफ अधिक झुकने लगा।

इससे मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ और मार्च, 1940 में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग प्रस्तुत की।

इधर अंतर्राष्ट्रीय स्थिति बङी तेजी से बदलती जा रही थी। जर्मनी ने जून,1940 तक अनेक देशों पर विजय प्राप्त कर ली थी।

ब्रिटेन पर बङी तेजी से हवाई हमले आरंभ कर दिये थे।इससे अंग्रेजों को भारी खतरा उत्पन्न हो गया था। इस अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा, हम ब्रिटेन की बर्बादी में अपनी आजादी तलाश नहीं करते। काँग्रेस ने 7 जुलाई, 1940 को पूना में एक प्रस्ताव पास कर, दो शर्तों पर ब्रिटिश सरकार को सहायता देने का वचन दिया।

पहली शर्त यह थी कि युद्ध के बाद भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कर दिया जाय और दूसरी यह कि केन्द्र में सभी मुख्य राजनैतिक दलों को मिलाकर तुरंत एक अंतरिम सरकार स्थापित की जाय।

इसी समय इंग्लैण्ड में राजनीतिक परिवर्तन आया। चेम्बरवेल के स्थान पर चर्चिल प्रधानमंत्री तथा लार्ड जेटलैंड के स्थान पर एमरी भारत सचिव बन गये।

उनकी भारत के प्रति सहानुभूति बिल्कुल नहीं थी। किन्तु गंभीर अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को देखते हुए गवर्नर जनरल को भारतीय नेताओं से बातचीत करके संतुष्ट करने की आज्ञा दी गई।

अतः गवर्नर जनरल ने 8 अगस्त,1940 को एक घोषणा की, जिसमें कहा कि युद्ध के बाद एक ऐसी समिति नियुक्त की जायेगी, जो पूर्णतया राष्ट्रीय होगी और वह भारत के भावी संविधान की रूपरेखा तैयार करेगी।

गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी समिति में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने का आश्वासन दिया गया।

युद्ध संबंधी मामलों में सलाह देने के लिए एक युद्ध परामर्श समिति स्थापित करने को कहा गया, जिसमें देशी रियासतों तथा भारत के राष्ट्रीय जीवन के सभी प्रमुख तत्त्वों को शामिल करने की व्यवस्था थी।

काँग्रेस ने इस घोषणा को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि पूना प्रस्ताव में उल्लिखित शर्तों का पालन इस घोषणा में नहीं किया गया।

इसके विपरीत इस घोषणा में अप्रत्यक्ष रूप से यह कह दिया गया कि मुस्लिम लीग की स्वीकृति के बिना भारत में कोई संवैधानिक परिवर्तन नहीं किया जायेगा।

इस प्रकार बहुमत को अल्पमत की दया पर छोङ दिया गया। यह घोषणा राष्ट्रीय हितों के सर्वथा प्रतिकूल थी।

अतः कांग्रेस ने सरकार का विरोध करने के लिए व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया, जिसमें देशवासियों को युद्ध में सरकार की सहायता न करने की अपील की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध के दुष्परिणाम

  • इस युद्ध की जो सबसे बड़ी हानि सामने आई वो थी जन-हानि।
  • अमेरिका का नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने को मानव सभ्यता के  इतिहास सबसे क्रूर, विनाशकारी और दर्दनाक घटना माना गया हैं। जिसका परिणाम कई पीढ़िया भुगत चुकी हैं और कई भुगतने वाली हैं, इस कारण इसके बाद इस पर पूरी तरह रोक लगाई गयी।लेकिन फिर भी युद्ध के दौरान कुल  12 मिलियन जवानों को मार गिराया गया, जबकि 25 मिलियन नागरिक भूख, बिमारी इत्यादि कारणों से मारे गये।24 ,मिलियन लोग इस युद्ध में घायल और विकलांग हुए।यूएस द्वारा जापान में बम गिराने के कारण 160,000 जन-हानि हुयी.  इस तरह दूसरा विश्व युद्ध हर दृष्टि से  मानव जाति के लिए भयंकर विनाशकारी युद्ध सिद्ध हुआ।

मार्शल प्लान (The Marshall Plan)

इस घोषणा के बाद यूएस के विदेश मंत्री जॉर्ज मार्शल ने विक्टिम देशों को सपोर्ट करने के लिए प्लान बनाया. जिसे मार्शल प्लान कहां जाता हैं, इस योजना के अंतर्गत यूएस ने यूरोपियन देशों को क्षति-पूर्ति के लिए 12.5 बिलियन डॉलर दिए थे. 17 से ज्यादा देशों में खाद्य सामग्री,कृषि और ट्रांसपोर्ट इत्यादि के लिए पुनर्निर्माण किया गया।

इस योजना से 18 देशों को खाद्य, मशीनरी और अन्य सामानों में 13 अरब डॉलर की राशि मिली.

दुसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में यूएसएसआर ने काउंसिल ऑफ़ म्यूच्यूअल असिस्टेंस की स्थापना की, जिससे यूरोपियन देशों को आर्थिक सहायता मिल सके. इस प्लान का यूएसएसआर (USSR) के विदेश मंत्री मोलोटोव ने प्रस्ताव दिया था, जिससे उनका व्यापार और आर्थिक स्थिति का स्तर सुधर सके।

द्वितीय विश्व युद्ध के एक महीने के बाद 24 अक्टूबर 1945 के दिन यूनाइटेड नेशन की स्थापना की गयी थी।नेशन के इस लीग की स्थापना वर्ल्ड वॉर को रोकने के लिए की गयी थी, लेकिन ये असफल रही।

इसलिए 4 साल बाद फ्रेंक्लिन रूजवेल्ट और विन्सन चर्चिल ने अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किये, और यूएन की स्थापना की इस संस्था का मुख्य उद्देश्य विश्व शान्ति कायम करना था और तबाही से बचाना था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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