जैन धर्म के ग्यारह गणधरों के नाम
गणधर जैन दर्शन में प्रचलित एक उपाधि है।गणधर वह व्यक्ति होता है, जो धर्म के गण को धारण करता है। अर्थात इन्हें तीर्थंकर के शिष्य भी कहा जा सकता है। गणधर को द्वादश अंगों में पारंगत होना आवश्यक है।प्रत्येक तीर्थंकर के अनेक गणधर होते थे।
महावीर स्वामी ने अपने जीवन काल में एक संघ की स्थापना की जिसमें 11 प्रमुख अनुयायी सम्मिलित हुए ये ही 11 अनुयायी गणधर कहलाये थे।इस संघ के अध्यक्ष महावीर स्वामी थे।
महावीर स्वामी के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई । अंतिम गणधर जो महावीर स्वामी के बाद तक जीवित था उसका नाम सुधर्मण है। महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद संघ का अध्यक्ष सुधर्मण ही बना। इन गणधरों के अधीन महावीर स्वामी ने अपने शिष्यों को धर्मप्रचार के लिए भेजा।
11 गणधरों के नाम,गौत्र,स्थान इस प्रकार हैं-
- इंद्रभूति गौतम (गोर्वरग्राम)
- अग्निभूमि गौतम (गोर्वरग्राम)
- वायुभूमि गौतम (गोर्वरग्राम)
- मंडिकपुत्र वशिष्ठ मौर्य (सन्निवेश)
- व्यक्त भारद्वाज कोल्लक (सन्निवेश)
- सुधर्मण अग्निवेश्यायन कोल्लक (सन्निवेश)
- भौमपुत्र कासव मौर्य (मिथिला)
- अकंपित गौतम (मिथिला)
- अचलभ्राता हिभाण (कोसल)
- मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक (सन्निवेश)
- प्रभास कौंडिन्य (राजगृह)
ये सभी गणधर ब्राह्मण थे। इससे पता चलता है कि महावीर स्वामी के समय में ब्राह्मणों में ही वैचारिक क्रांति का आरंभ हुआ था।
Reference :https://www.indiaolddays.com/