आधुनिक भारतइतिहासगोपाल कृष्ण गोखले

गोपाल कृष्ण गोखले के आर्थिक विचार क्या थे

गोखले भारत के औद्योगिक विकास(industrial development) के लिए सदैव इच्छुक रहे। स्वदेशी वस्तुओं के प्रोत्साहन के समर्थक थे, किन्तु वे बहिष्कार की नीति द्वारा स्वदेशी का विस्तार हितकारी नहीं मानते थे।

उनकी दृष्टि में भारत के लिए स्वदेशी की नीति अपनाने के साथ पूँजी, आर्थिक उद्यम की तकनीकी तथा उद्योगों संबंधी ज्ञान को प्राप्त करना भी आवश्यक था। उनका मानना था कि भारतीय उद्योगों की स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि स्वदेशी वस्तुओं तथा औद्योगिक जानकारी का परित्याग कर हम अपना स्वतंत्र आर्थिक अस्तित्व प्राप्त कर सकें।

उनके विचार में उचित मानसिक दृष्टिकोण का विकास करके ही हम विदेशी आयात पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। उपयोगी वस्तुओं का भारत में उत्पादन न होने तक विदेशी माल का बहिष्कार केवल नारों तक ही सीमित रहने वाला है।

गोखले का यह दृष्टिकोण यथार्थवादी था। आज भी, जबकि भारत में अत्यधिक औद्योगिक विकास हो चुका है, विदेशी वस्तुओं के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ है।

तस्करी के माध्यम से चोरी-छिपे विदेशी वस्तुओं के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ है। तस्करी के माध्यम से चोरी-छिपे विदेशी वस्तुओं का भारत में आना यह सिद्ध करता है कि हमें अपनी मानसिक स्थिति का देशीकरण करने की नितांत आवश्यकता है।

गोखले उदारवादी होते हुए भी उन्मुक्त व्यापार तथा कम से कम हस्तक्षेप की नीति के पक्षपाती नहीं थे।वे जानते थे कि उन्मुक्त व्यापार की नीति से आर्थिक दृष्टि से निर्बल देशों का व्यापार चौपट हो जायेगा।

वे अंग्रेजों की भाारत के प्रति दुर्भावनापूर्ण आर्थिक नीति के तीव्र आलोचक थे। अंग्रेजों ने जिस प्रकार से भारत के कुटीर उद्योगों पर कुठाराघात किया था उसी के कारण भारत विदेशों से तैयार माल आयात करने के लिए विवश हुआ।

गोखले इस बात से भलीभाँति परिचित थे कि अंग्रेजों ने भारत को कृषि प्रधान देश बनाकर तैयार माल आयात करने वाली मंडी बना दिया है।

अतः गोखले ने भारत में उचित आर्थिक संरक्षण की नीति को अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था। किन्तु वे पूर्ण संरक्षण के पक्ष में नहीं थे।

उनका उद्देश्य था कि भारतीय उद्योगों को उचित संरक्षण तो प्रदान किया जाय किन्तु यह कार्य प्रशासन की उन्मुक्त व्यापार नीति के अनुरूप हो।

ऐसा होने पर भारत भी अपनी औद्योगिक क्षमता का स्वतंत्रतापूर्वक विकास कर सकेगा। वे अनियंत्रित व्यापार तथा अनुचित संरक्षण के विरुद्ध थे।

वे राष्ट्रीय शक्ति तथा स्वावलंबन के विकास के साथ-2 राजकीय संरक्षण में भारत के नये उद्योगों का इतना विकसित देखना चाहते थे कि वे अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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