गोपाल कृष्ण गोखले के सामाजिक विचार
यद्यपि गोखले ने तिलक की भाँति समाज सुधार आंदोलन में भाग नहीं लिया।किन्तु वे सच्चे समाज सुधारक थे।वे रूढिवादिता के प्रबल विरोधी थे।भारत में प्रचलित जाति व्यवस्था को वे प्रगति के मार्ग में बाधक मानते थे।दलित जातियों के उत्थान के वे प्रबल समर्थक थे। छुआछूत तथा भेदभाव का अंत करने के लिए गोखले ने भारतीयों को सामाजिक संकीर्णता से बाहर निकलने का आह्वान किया।
उन्होंने केवल भारत में ही नहीं बल्कि अफ्रीका (Africa)की रंग-भेद की नीति की कटु आलोचना की। उनकी मान्यता थी कि जब तक भारत में छुआछूत की समस्या का निवारण नहीं कर लिया जाता तब तक भारत द्वारा समान अधिकारों की माँग अर्थहीन है।
दक्षिण अफ्रीका (South Africa)में भारतीय जिन अधिकारों की माँग कर रहे थे उन्हीं अधिकारों को, भारत के सवर्ण पिछङी एवं दलित जातियों को देने में सकुचाते थे।इस प्रकार को दोहरी सामाजिक नीति से भारत का हित नहीं हो सकता।
वे सामाजिक संकीर्णता को त्यागकर व्यापक दृष्टिकोण से सामाजिक समस्याओं का हल ढूँढ रहे थे।वे अपने आपको हिन्दू कहलाने के स्थान पर भारतीय कहलाना पसंद करते थे।
वे धार्मिक सहिष्णुता को सामाजिक एकता का प्रमुख आधार मानते थे।हिन्दू और मुसलमानों के मध्य मधुर सामाजिक संबंधों की स्थापना उनका प्रमुख उद्देश्य था।
वे हिन्दू लीग और मुस्लिम लीग दोनों को ही राष्ट्र-विरोधी मानते थे। उनके विचारों का भारत-राष्ट्र न तो हिन्दू था और न मुस्लिम था। वे धर्मनिरपेक्षता तथा सहिष्णुता के उपासक थे। वे पृथक् प्रतिनिधित्व के कट्टर विरोधी थे।
भारत में विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक समुदायों के बीच अविश्वास के लिए कोई स्थान नहीं था। गोखले मानववादी थे। उनके मन में किसी भी धार्मिक समुदाय अथवा राष्ट्रीयता के प्रति द्वेष नहीं था।
Reference : https://www.indiaolddays.com/