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थियोसॉफिकल सोसायटी एवं एनी बेसेन्ट का इतिहास

थियोसॉफिकल सोसायटी एवं एनी बेसेन्ट

थियोसॉफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) एक अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था थी। थियोसॉफी सभी धर्मों में निहित आधारभूत ज्ञान है लेकिन यह प्रकट तभी होता है जब वे धर्म अपने-अपने अन्धविश्वासों से मुक्त हों।वास्तव में यह एक दर्शन है जो जीवन को बुद्धिमत्तापूर्वक प्रस्तुत करता है और हमें यह बताता है की ‘न्याय’ तथा ‘प्यार’ ही वे मूल्य है जो संपूर्ण विश्व को दिशा प्रदान करते है| इसकी शिक्षाएंमानव के अन्दर छुपी हुई आध्यात्मिक प्रकृति को उद्घाटित करती हैं|

‘थियोसोफी ग्रीक भाषा के दो शब्दों “थियोस” तथा “सोफिया” से मिलकर बना है जिसका अर्थ हिंदू धर्म की “ब्रह्मविद्या”, ईसाई धर्म के ‘नोस्टिसिज्म’ अथवा इस्लाम धर्म के “सूफीज्म” के समकक्ष किया जा सकता है। कोई प्राचीन दर्शन, जो परमात्मा के विषय में चर्चा करे, सामान्यत: थियोसॉफी कहा जा सकता है।

थियोसॉफीकल सोसाइटी की स्थापना-

‘थियोसॉफी सोसाइटी’ की स्थापना मैडम ब्लावात्सकी और कर्नल अल्कॉट द्वारा 1875 ई में न्यूयॉर्क में की गयी थी ,लेकिन भारतीय समाज एवं संस्कृति में इस दर्शन की जड़ें 1879 ई में ही पनपनी शुरू हुईं |भारत में इसकी शाखा मद्रास प्रेसीडेंसी में स्थापित हुई जिसका मुख्यालय अड्यार में था| भारत में इस आन्दोलन का प्रचार-प्रसार एनी बेसेंट द्वारा किया गया था।

थियोसॉफी निम्नलिखित तीन सिद्धांतो पर आधारित थी:

1.विश्ववंधुत्व की भावना

2.धर्मं एवं दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन

3.अव्याख्यायित रहस्यमयी नियमों को समझने के लिए प्राकृतिक नियमों का अनुसन्धान‘थियोसॉफिस्त’ सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे|वे धर्मान्तरण के खिलाफ थे और अंतःकरण की शुध्दता तथा पंथ रहस्यवाद में विश्वास रखते थे|थियोसॉफिकल सोसाइटी भारत में हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान का अभिन्न अंग थी,जिसने कुछ सीमा तक सामाजिक सौहार्द्र की भी स्थापना की।

एनी बेसेंट के अनुसार “हिन्दू धर्मं के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है।हिन्दू धर्म वह जमीन है जिस पर भारत की जड़ें जमी हुई है और उससे अलग होने पर भारत वैसा ही हो जायेगा जैसे किसी पेड़ को उसके स्थान से उखाड़ दिया जाये|”

‘थियोसॉफिस्तों’ ने जाति एवं अछूत व्यवस्था के उन्मूलन का भी प्रयास किया तथा आत्मसात्वीकरण के दर्शन में विश्वास प्रकट किया| वे सामाजिक रूप से अस्वीकार्य वर्गों को शिक्षित कर उनकी परिस्थितियों में सुधार लाना चाहते थे|इसीलिए एनी बेसेंट ने अनेक शिक्षा समितियां स्थापित कीं और आधुनिक शिक्षा की वकालत की| शिक्षा,दर्शन एवं राजनीति उन कुछ विषयों में शामिल थे जिन पर ‘थियोसॉफिकल सोसाइटी’ ने कार्य किया|

थियोसॉसोफिकल सोसाइटी’ के मुख्य बिंदु-

  • थियोसॉसोफिकल ‘सोसाइटी’ के अनुसार चिंतन-मनन, प्रार्थना एवं श्रवण के माध्यम से ईश्वर एवं व्यक्ति के अंतःकरण के मध्य एक विशिष्ट सम्बन्ध की स्थापना की जा सकती है।
  • ‘थियोसॉसोफिकल सोसाइटी’ ने पुनर्जन्म एवं कर्म जैसी हिन्दू मान्यताओं को स्वीकार किया और उपनिषद, सांख्य,योग एवं वेदांत दर्शनों से प्रेरणा ग्रहण की|
  • इसने प्रजाति,जाति,रंग एवं लालच जैसे भेदों से ऊपर उठकर विश्वबंधुत्व का आह्वाहन किया।
  • सोसाइटी प्रकृति के अव्याख्यायित नियमों और मानव के अन्दर छुपी हुई शक्ति की खोज करना चाहती थी।
  • इस आन्दोलन ने पाश्चात्य प्रबोधन के माध्यम से हिन्दू आध्यात्मिक ज्ञान की खोज करनी चाही |
  • इस सोसाइटी ने हिन्दुओं के प्राचीन सिद्धांतों तथा दर्शनों का नवीनीकरण किया और  उनसे सम्बंधित विश्वासों को मजबूती प्रदान की|
  • आर्य दर्शन व धर्मं का अध्ययन तथा प्रचार किया |
  • इस सोसाइटी का मानना था कि उपनिषद परमसत्ता,ब्रह्माण्ड व जीवन के सत्य का उद्घाटन करते है|
  • इसका दर्शन इतना सार्वभौम था कि धर्म के सभी रूपों तथा उपासना के सभी प्रकारों की प्रशंसा करता था |
  • सोसाइटी ने आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विमर्शों के अतिरिक्त अपनी अनुसन्धान तथा साहित्यिक गतिविधियों द्वारा हिन्दुओं के जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया|
  • इसने हिन्दू धर्म-ग्रंथों का प्रकाशन एवं अनुवाद भी किया |
  • सोसाइटी ने सुधारों को प्रेरित किया और उन पर कार्य करने के लिए शिक्षा-नीतियाँ तैयार कीं|

इस सोसायटी की स्थापना सभी प्राच्य धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने के उद्देश्य से की गई थी। सोसायटी ने हिन्दू धर्म को विश्व का सर्वाधिक गूढ़ एवं आध्यात्मिक धर्म माना।थियोसॉफी हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक दर्शन, उसके कर्मसिद्धांत तथा आत्मा के पुनर्जन्म सिद्धांत का समर्थन करती है।

यह सोसायटी जात-पात, समुदाय या लिंगभेद किए बिना मनुष्य के सार्वभौमिक बंधुत्व का प्रचार करती थी। साथ ही भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव की भावना को विकसित करने में भी इस आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका रही।1872 में सोसायटी का अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय अड्यार, मद्रास में खोला गया।

एनी बेसेन्ट कौन थी-

डॉ॰ एनी बेसेन्ट (Dr. Annie Besant) का जन्म लन्दन शहर में हुआ।  एनी बेसेन्ट थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुईं। उनके अन्दर एक शक्तिशाली अद्वितीय और विलक्षण भाषण देने की कला निहित थी। अत: बहुत शीघ्र उन्होंने अपने लिये थियोसोफिकल सोसायटी की एक प्रमुख वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को थियोसोफी की शाखाओं के माध्यम से एकता के सूत्र में बाधने का आजीवन प्रयास किया।

डॉ एनी बेसेन्ट  अग्रणी आध्यात्मिक, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला थीं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं।

1888 में आयरलैंड की एनी बेसेंट थियोसॉफिकल सोसाइटी की सदस्य बनीं । उनका भारत आगमन 1893 में हुआ। ऑल्काट की मृत्यु के बाद 1907 में वह सोसायटी की अध्यक्षा भी बनीं।भारत में शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए एनी बेसेंट ने 1898 में बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की स्थापना की जो मदनमोहन मालवीय के प्रयासों से 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बन गया।

सन् 1906 तक इनका अधिकांश समय वाराणसी में बीता। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिन्दू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्रीय पुनर्जागरण का कार्य प्रारम्भ किया।

भारत के लिये राजनीतिक स्वतंत्रता आवश्यक है इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने 1916 ‘होमरूल आन्दोलन’ संगठित करके उसका नेतृत्व किया।

एनी बेसेंट एक प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली लेखिका भी थीं|थियोसॉफिकल सोसाइटी के दृष्टिकोण को प्रसारित करने के लिए “द न्यू इंडिया” एवं “कॉमन वील” नाम के दो पत्रों का प्रकाशन भी उनके द्वारा किया गया|हालांकि थिओसोफिकल आन्दोलन का प्रभाव सामान्य-जन की तुलना में बौद्धिक वर्ग पर अधिक पड़ा, फिर भी उसने उन्नीसवीं सदी में अपनी एक पहचान बनायीं|

20 सितम्बर 1933 को उनकी मृत्यु हो गई। आजीवन वाराणसी को ही हृदय से अपना घर मानने वाली बेसेन्ट की अस्थियाँ वाराणसी लाई गयीं और शान्ति-कुंज से निकले एक विशाल जन-समूह ने उन अवशेषों को ससम्मान सुरसरि को समर्पित कर दिया।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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