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होमरूल लीगआंदोलन क्या था

होम रूल लीग आन्दोलन (homerul league movement)अखिल भारतीय होम रूल लीग, एक राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन(National political organization) था जिसकी स्थापना 1916 में बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak)द्वारा भारत में स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मांग का नेतृत्व करने के लिए “होम रूल” के नाम के साथ की गई थी। भारत को ब्रिटिश राज में एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करने के लिए ऐसा किया गया था। 

इस आंदोलन को चलाने का श्रेय श्रीमती एनी बेसेन्ट(Annie Besant) तथा तिलक को दिया जाता है। श्रीमती एनी बेसेन्ट आयरलैण्ड(Ireland) की रहने वाली थी और भारत में थियोसोफकल सोसायटी(Theosophical Society) की प्रमुख कार्यकत्री थी।

वह भारत को वैसा ही स्वराज्य अथवा होमरूल दिलाना चाहती थी, जैसा कि ब्रिटिश साम्राज्य के दूसरे उपनिवेशों को प्राप्त था। वह कहती थी कि बुद्धि और दूरदर्शिता का तकाजा है कि वह भारत को होमरूल देकर संतुष्ट करे।

डॉ. जकारिया के मतानुसार, उसकी योजना उग्रवादी राष्ट्रीय व्यक्तियों को क्रांतिकारियों के साथ इक्ट्ठा होने से रोकने की थी।वह भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वराज्य दिलाकर संतुष्ट रखना चाहती थी।

इसलिए एक ओर तो उसने कांग्रेस के दोनों दलों में मेल करवाने का प्रयत्न किया तो दूसरी ओर एक ऐसा संवैधानिक आंदोलन आरंभ किया, जिससे कि भारतीय राजनीति में क्रांतिकारियों का प्रभाव न बढ सके।

1914 में वह काँग्रेस में शामिल हो गयी।अपने उद्देश्यों का प्रचार करने के लिए उसने 2 फरवरी,1914 में कामन वील नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र तथा उसके छः महीने बाद न्यू इंडिया नामक दैनिक समाचार-पत्र अंग्रेजी में निकालना प्रारंभ किया।

1914 में तिलक छः वर्ष की कैद काटकर मुक्त होकर आये थे। उनके मुक्त होकर आने से लोगों में प्रसन्नता की लहर दौङ गई और राष्ट्रीय विचारधारा पुनः प्रबल हुई।दिसंबर,1915 में एनी बेसेन्ट ने काँग्रेस से होमरूल के संबंध में एक योजना बनाने को कहा, किन्तु 1सितंबर,1916 तक कोई योजना न बन सकी।

अतः एनी बेसेन्ट ने स्वयं सितंबर, 1916 में मद्रास के गोखले हॉल में होमरूल लीग की स्थापना की।इधर दिसंबर,1915 में तिलक ने पूना में बंबई,मध्य प्रांत और बरार के राष्ट्रवादियों की एक सभा बुलाई और इसकी एक समिति ने अप्रैल,1916 में बेलगाँव प्रांतीय काँफ्रेंस के अवसर पर इंडियन होमरूल लीग की स्थापना रखी।

इस प्रकार तिलक ने होमरूल लीग पहले स्थापित की किन्तु इन दोनों में पर्याप्त सहयोग था।तिलक का कार्यक्षेत्र महाराष्ट्र और मध्य भारत था और शेष भारत में आंदोलन संचालित करने का दायित्व एनी बेसेन्ट का था।

थियोसोफिकल सोसाइटी की शाखाएँ प्रायः प्रत्येक प्रांत और जिले में थी, इसलिए एनी बेसेण्ट को इससे बङा लाभ हुआ।

1917 में होमरूल आंदोलन बङी तेजी से चला और घर-2 में इसकी आवाज गूँजने लगी। ब्रिटिश सरकार युद्ध के दौरान ऐसे आंदोलन को सहन करने वाली नहीं थी। अतः सरकार ने तिलक पर अनेक पाबंदियाँ लगा दी।

कुछ समय बाद तिलक के दिल्ली व पंजाब में घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया।एनीबेसेण्ट तथा होमरूल आंदोलन की लोकप्रियता अत्यधिक बढ गई।

एनीबेसेण्ट को छुङाने के लिए स्थान-2 पर सभाएँ होने लगी।विवश होकर सरकार ने एनी बेसेन्ट को छोङ दिया।1917 में वह काँग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई। अतः भारत सचिव 20 अगस्त,1917 को घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार की नीति धीरे-2 भारत में स्वायत्त शासन स्थापित करने की है।इस घोषणा के बाद एनी बेसेन्ट ने अपना होमरूल आंदोलन समाप्त कर दिया।

इसके बाद एनी बेसेन्ट राजनीति से अलग-थलग पङ गई, क्योंकि 1919 के बाद उसने प्रत्येक मामले में सरकार का समर्थन करना आरंभ कर दिया।

अप्रैल,1919 में पुलिस द्वारा भारतीयों पर गोली चलाना और रोलेक्ट एक्ट पारित करना उचित बताया।1919 के सुधारों में कुछ परिवर्तन चाहने वाला एक शिष्ट-मंडल इंग्लैण्ड भेजा गया, किन्तु एनी बेसेंट ने इसका विरोध किया।

उसने तो गाँधीजी के असहयोग आंदोलन(Non-Cooperation Movement) का भी विरोध किया। अतः उसकी राजनीति में केवल चार वर्षों तक (1914-17) महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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