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नील विद्रोह कहाँ हुआ था

नील विद्रोह

नील विद्रोह(1859-60)

नील विद्रोह(neel-rebellion) किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् 1859में किया गया था।यह विद्रोह 1857 की क्रांति के बाद किया गया सबसे पहला संगठित विद्रोह था।

अंग्रेज अधिकारी बंगाल व बिहार के रैय्यतों से भूमि लेकर बिना पैसे दिये ही रैय्यतों को नील की खेती करने को मजबूर करते थे, जबकि किसान अपनी उपजाऊ जमीन पर चावल की खेती करना चाहते थे।

इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया।

नील की खेती करने से इंकार करने वाले किसानों को नील बागान मालिकों के दमनचक्र का सामना करना पङता था।

1859 में उत्पीङित किसानों ने अपने खेतों में नील न उगाने का निर्णय  लेकर बागान(नील) मालिकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

नील विद्रोह की पहली घटना बंगाल के नदिया जिला में स्थित गोविंदपुर गांव में सितंबर,1859 में हुई।स्थानीय नेता दिगंबर विश्वास और विष्णु विश्वास के नेतृत्व में किसानों ने नील की खेती बंद कर दी।

1860 तक नील आंदोलन नदिया,पावना,खुलना,ढाका,मालदा,दीनाजपुर आदि क्षेत्रों में फैल गया।किसानों की एकजुटता के कारण बंगाल में 1860 तक सभी नील कारखाने बंद हो गये।

नील विद्रोह को बंगाल के बुद्धिजीवियो,प्रचार माध्यमों, धर्म प्रचारकों और कहीं-कहीं छोटे जमींदारों और महाजनों का भी सहयोग प्राप्त हुआ।

बंगाल के बुद्धिजीवी वर्ग ने अखबारों में अपने लेख द्वारा तथा जनसभाओं के माध्यम से विद्रोह के प्रति अपने समर्थन को व्यक्त किया। इसमें हिन्दू पैट्रियाट के संपादक हरिश्चंद्र मुखर्जी की विशेष भूमिका रही।

नील बागान मालिकों के अत्याचार का खुला चित्रण दीनबंधु मित्र ने अपने नाटक नील दर्पण में किया है।

इस विद्रोह या आंदोलन के सफल होने के पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण था किसानों में अनुशासन, एकता,संगठन तथा सहयोग की भावना।

नील विद्रोह भारतीय किसानों का पहला सफल विद्रोह था, कालांतर में भारत के स्वाधीनता संघर्ष में यह सफलता प्रेरणा बन गई।

नील आयोग का गठन (31 मार्च, 1860 ई.)

1860 में नील आयोग के सुझाव पर जारी की गई सरकारी अधिसूचना जिसमें उल्लेख था  कि रैय्यतों को नील की खेती करने के लिए बाध्य नहीं किया जाये तथा यह सुनिश्चित किया जाये कि सभी प्रकार के विवादों का निपटारा कानूनी तरीके से किया जाये। इसका आंदोलन पर गहरा प्रभाव पङा, जिससे आंदोलनकारियों को एक बङी सफलता मिली।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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