इतिहासजैन धर्मप्राचीन भारत

जैन धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

जैन धर्म भारत का सबसे प्राचीन धर्म है। जैन धर्म का अर्थ है- जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म। जो जिन के अनुयायी हैं , उन्हें जैन कहते हैं। जिन शब्द का अर्थ है- “जीतने वाला” अर्थात जिसने अपने मन, वाणी, तथा अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान प्राप्त कर पूर्णज्ञान प्राप्त किया, उन्हें ही जिनेश्वर या जिन कहा जाता है। 

जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है। जैन धर्म के अनुसार इस सृष्टि या किसी भी जीव का कोई निर्माण कर्ता नहीं है। सभी जीव अपने कर्मों का फल भोगते हैं। जैन धर्म में ईश्वर को सृष्टिकर्त्ता नहीं माना गया। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता का उल्लेख करने वाला स्रोत वैदिक साहित्य  है।


जैन धर्म की विशेषताएं-

  • जैन परंपरा के अनुसार इस धर्म में 24 तीर्थंकर हुए।इनमें प्रथम ऋषभदेव हैं।23 वें तीर्थंकर पाशर्वनाथ हैं । 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए।
  • किन्तु 23 वें तीर्थंकर  को छोङकर पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की ऐतिहासकता के बारे में जानकारी आधी अधूरी ही है।
  • पाशर्वनाथ का काल महावीर स्वामी से 250 ई.पू. माना जाता है। इनके अनुयायीयों को निर्ग्रंथ कहा जाता है। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार पाशर्वनाथ को 100 वर्ष की आयु में सम्मेद पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ था।
  • पाशर्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रत हैं –
    1. सत्य
    2. अहिंसा
    3. अपरिग्रह
    4. अस्तेय।
  • महावीर का जन्म वैशाली के निकट कुण्डग्राम के ज्ञातृक कुल के तथा वज्जि संघ के प्रधान सिद्धार्थ के घर 540 ई.पू. में हुआ था, इनकी माता त्रिशला (लिच्छवी गणराज्य की राजकुमारी) थी, जो चेटक की बहिन थी।  तथा इनकी पत्नी यशोदा थी।
  • यशोदा से उत्पन्न महावीर की पुत्री प्रियदर्शना थी जिसका विवाह जामालि नामक क्षत्रिय से हुआ,जो महावीर का प्रथम शिष्य था।
  • 30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृह त्याग दिया था।
  • 12 वर्ष तक कठोर तपस्या तथा साधना के बाद 42 वर्ष की आयु में महावीर को जुम्भियग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर साल के वृक्ष के नीचे कैवल्य (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई।
  • कैवल्य प्राप्त हो जाने के बाद महावीर स्वामी को केवलिन, जिन (विजेता), अर्ह (योग्य) एवं निर्ग्रंथ (बंधन रहित) कहा गया।
  • महावीर स्वामी की मृत्यु पावा में 72 वर्ष की आयु में 468 ई.पू, में हुई थी।
  • बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ – नाथपुत्त कहा गया है।
  • जैन ग्रंथ आचारांग सुत्त में महावीर की तपश्या तथा कायाक्लेश का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
  • पाशर्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रतों में महावीर ने 5 वां महाव्रत (ब्रह्मचर्य) जोङा।
  • जैन धर्म में निर्वाण जीव का अंतिम लक्ष्य है, कर्म फल का नाश तथा आत्मा से भौतिक तत्व हटाने से निर्वाण संभव है।
  • जैन धर्म से संबंधित हैं-

(i)आस्रव ः कर्म का जीवन की ओर प्रवाह

(ii)संवर ः जब कर्म का प्रवाह जीव की ओर रुक जाये

(iii)निर्जरा ः अवशिष्ट कर्म का जल जाना अर्थात पहले से विद्यमान कर्मों का क्षय

(iv)बंधन ः कर्म का जीव के साथ संयुक्त हो जाना

  • जैन दर्शन के अनुसार यह संसार 6 द्रव्यों से मिलकर बना है-
    1. जीव
    2. पुद्गल (भौतिक तत्व)
    3. धर्म
    4. अधर्म
    5. आकाश
    6. काल
  • जैन धर्म में पांच प्रकार के ज्ञान को परिभाषित किया गया है-
    1. मति ः इन्द्रिय जनित ज्ञान
    2. श्रुति ः श्रवण ज्ञान
    3. अवधि ः दिव्य ज्ञान
    4. मनःपर्याय ः अन्य व्यक्तियों के मन मस्तिषक का ज्ञान
    5. कैवल्य ः पूर्ण ज्ञान (निर्गंथ एवं जितेन्द्रियों को प्राप्त होने वाला ज्ञान)
  • भिक्षुओं के लिए पंच महाव्रत की व्यवस्था जैन धर्म में बताई गई है-
    1. अहिंसा महाव्रत
    2. सत्य महाव्रत
    3. अस्तेय महाव्रत(चोरी न करना)
    4. अपरिग्रह महाव्रत
    5. ब्रह्मचर्य महाव्रत
  • गृहस्थों के लिए पंच अणुव्रतों की व्यवस्था है-
    1. अहिंसा अणुव्रत
    2. सत्य अणुव्रत
    3. अस्तेय अणुव्रत
    4. अपरिग्रह अणुव्रत
    5. ब्रह्मचर्य अणुव्रत
  • जैन धर्म के अनुसार ज्ञान के तीन स्रोत हैं-
    1. प्रत्यक्ष ज्ञान
    2. अनुमान लगाना
    3. तीर्थंकरों के वचन
  • जैन धर्म के त्रिरत्न हैं –
    1. सम्यक श्रद्धा
    2. सम्यक ज्ञान
    3. सम्यक आचरण
  • मोक्ष के बाद जीवन आवागमन के चक्र से छुटकारा पाया जा सकता है। ऐसा व्यक्ति अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य, अनन्त सुख की प्राप्ति कर लेता है, इन्हें जैन शास्रों में अनन्त चतुष्टय कहा जाता है।
  • स्यादवाद (अनेकांतवाद) अथवा सप्तभंगीनय को ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत कहा जाता है।
  • महावीर ने अपने जीवन काल में एक संघ की स्थापना की जिसमें 11 प्रमुख अनुयायी सम्मिलित थे, जिन्हें गणधर कहा गया है।
  • महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई, महावीर के बाद केवल सुधर्मण ही जीवित था।
  • जैन धर्म में देवताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है किन्तु उवका स्थान स्थान जिन से नीचे रखा गया है।
  • जैन धर्म संसार की वास्तविकता को स्वीकार करता है पर सृष्टिकर्ता के रूप में ईश्वर को नहीं स्वीकारता है।
  • जैन धर्म में अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है। इसमें कृषि एवं युद्ध में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
  • जैन धर्म पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करता है, उनके अनुसार कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है।
  • जैन धर्म में सल्लेखना से तात्पर्य है- उपवास द्वारा शरीर का त्याग।  सुखपूर्वक शोकरहित होकर मृत्यु का वरण ही सल्लेखना है।ई.पू. तीसरी शता. में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में सल्लेखना विधि द्वारा ही अपने शरीर का त्याग किया था।अशोक के स्तंभ लेखों में भयंकर अपराधियों को भी यह प्रक्रिया अपनाने की व्यवस्था प्रशासनिक तौर पर की गई।
  • आधुनिक काल में सल्लेखना को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं विनोबा भावे जैसे महापुरुषों द्वारा व्यापक समर्थन मिला।
  • कालांतर में जैन धर्म दो समुदायों में विभक्त हो गया-
    1. तेरापंथी (श्वेतांबर)
    2. समैया (दिगंबर)




  • भद्रबाहु एवं उनके अनुयायियों को दिगंबर कहा गया, ये दक्षिणी जैनी कहे गये।
  • स्थलबाहु एवं उनके अनुयायियों को श्वेतांबर कहा गया।
  • श्वेतांबर सम्प्रदाय के लोगों ने ही सर्वप्रथम महावीर एवं अन्य तीर्थंकरों की पूजा आरंभ की, ये श्वेत वस्र धारण करते थे।
  • राष्ट्रकूट शासकों के समय में दक्षिणी भारत में जैन धर्म का विशेष प्रचार हुआ।
  • गुजरात तथा राजस्थान में जैन धर्म 11 वी. तथा 12 वी. शता. में अधिक लोकप्रिय हुआ।
  • जैनों के उत्तर भारत में दो प्रमुख केन्द्र उज्जैन तथा मथुरा थे।
  • दिलवाङा के जैन मंदिरों में जैन तीर्थंकर आदिनाथ, नेमिनाथ के प्रसिद्ध हैं।
  • खजुराहो में पाशर्वनाथ, आदिनाथ के मंदिर हैं।
  • जैन परंपरा के अनुसार अरिस्टनेमि भागवत धर्म के वासुदेव कृष्ण के समकालीन थे।
  • जैन धर्म में उसके संस्थापक एवं जितेन्द्रिय तथा ज्ञान प्राप्त महात्माओं की उपाधि तीर्थंकर है, अब तक 24 तीर्थंकर हुए हैं, अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी थे, जिनका मूल नाम वर्द्धमान था।
  • जैन तीर्थंकरों के प्रतीक निम्न हैं-
    • ऋषभदेव (आदिनाथ) ः वृषभ
    • शान्तिनाथ ः हिरण
    • पाशर्वनाथ ः सर्पफण
    • महावीर ः सिंह
  • वैदिक मंत्रों में (ऋग्वेद)केवल दो तीर्थंकरों ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख मिलता है।
  • जैन संघ के सदस्य चार वर्गों में विभक्त थे-
    1. भिक्षु
    2. भिक्षुणी
    3. श्रावक
    4. श्राविका
  • महावीर के दिये मौलिक सिद्धांत 14 प्राचीन ग्रंथों में संकलित हैं जो पूर्व कहलाते हैं।
  • जैन मठों को बसादी (बसादिस) कहा जाता है।
  • महावीर के 11 प्रमुख शिष्यों को गंधर्व कहा जाता है, गंधर्व का शाब्दिक अर्थ है- विद्यालयों के प्रधान।
  • जैन धर्म ग्रंथ अर्द्ध मागधी भाषा में लिखे गये हैं।
  • जैन धर्म में तप एवं अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है।
  • जैन धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ कल्पसूत्र संस्कृत में लिखा गया है।
  • जैन धर्म ने वेदों की प्रमाणिकता नहीं मानी तथा वेदवाद का विरोध किया।
  • जैन दर्शन सांख्य दर्शन से समानता रखता है।
  • महावीर की मृत्यु के बाद जैन संघ का प्रथम अध्यक्ष सुधर्मन था।
  • दक्षिण भारत में जैन धर्म को संरक्षण देने वाले राज्य थे –
    • गंग
    • कदंब
    • चालुक्य
    • राष्ट्रकूट
  • खारवेल के हाथीगुंफा अभलेख, खंडकगिरि, उदयगिरि गुफाओं में जैन धर्म के अवशेष प्राप्त होते हैं।
  • राजाओं में उदयन, बिम्बिसार, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, खारवेल जैन धर्म के समर्थक तथा संरक्षक थे।
  • राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष जैन संयासी बन गया था, उसने रत्नमालिका नामक ग्रंथ की रचना की।
  • चंपा के शासक दधिवाहन की पुत्री चंदना महावीर की पहली महिला भिक्षुणी थी।
  • प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की मृत्यु अट्ठावय (कैलाश पर्वत) पर हुई थी।
  • जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पाशर्वनाथ काशी नरेश अश्वसेन के पुत्र थे।
  • पाशर्वनाथ की प्रथम अनुयायी उनकी माता वामा तथा पत्नी प्रभावती थी।
  • ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की।
  • गोशाल महावीर स्वामी के प्रथम सहयोगी बने।
  • जैन धर्म के अनुसार सृष्टि का निर्माता ईश्वर नहीं है, अपितु सृष्टि का निर्माण 6 द्रव्यों -जीव, पुद्गल (भौतिकतत्व), धर्म, अधर्म, आकाश, काल से मिलकर हुआ है।
  • स्यादवाद का अर्थ है-शायद है भी और नहीं भी।
  • जैन धर्म के स्यादवाद को ही सप्तभंगी का सिद्धांत भी कहते हैं।
  • पहली जैन सभा पाटलिपुत्र में 300 ई.पू. में स्थूलभद्र और सम्भूति विजय के नेतृत्व में हुई।इसी सभा के बाद जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया, जो श्वेतांबर (जो सफेद कपङे पहनते हैं) तथा दिगंबर (जो एकदम नग्नावस्था में रहते हैं )के नाम से जाने गये।
  • चौथी शता. के अंत में दक्षिण बिहार में भयंकर अकाल पङा तब जौनों का एक भाग भद्रबाहु के नेतृत्व में मैसूर चला गया तथा स्थूलबाहु के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में रह गया।
  • दूसरी जैन सभा 513 ई. में वल्लभी(गुजरात) में देवर्धि क्षमा श्रवण की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।
  • मौर्यतर काल में मथुरा जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था।
  • विष्णु पुराण तथा भागवत पुराण में ऋषभदेव का उल्लेख नारायण अवतार के रूप में मिलता है।
  • आचारांग सूत्र – महावीर स्वामी के कठोर तपश्चर्या एवं कायाक्लेश का बङा ही रोचक विवरण प्रस्तुत किया गया  है।
  • महावीर स्वामी का सबसे पहला शिष्य या सबसे पहला संयासी शिष्य मक्खलिपुत्त गोशाल था , जिसने 6 वर्ष बाद आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की तथा महावीर स्वामी को छोङ दिया।
  • महावीर स्वामी का सबसे पहला गृहस्थ शिष्य उपालि था जो राजगृह में शिष्य बना था।
  • महावीर स्वामी का विरोध जामालि तथा तीसगुप्त ने किया था।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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