इतिहासजैन धर्मप्राचीन भारत

जैन धर्म के त्रिरत्न

त्रिरत्न एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- तीन रत्न।

पालि भाषा में इसे ति-रतन लिखा जाता है। इसे त्रिद्द या त्रिगुण शरण भी करते हैं, जो बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के तीन घटक हैं।

जैन धर्म के तीन रत्न , जिसे रत्नत्रय भी कहते हैं। इनको सम्यक दर्शन (सही दर्शन), सम्यक ज्ञान तथा सम्यक चरित्र के रूप में मान्यता प्राप्त है। इनमें से किसी का भी अन्य दो के बिना अलग अस्तित्व नहीं हो सकता तथा आध्यात्मिक मुक्ति के लिए तीनों आवश्यक हैं।

जैन धर्म के त्रिरत्न – सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक आचरण।

सम्यक ज्ञान – सत्य तथा असत्य का ज्ञान ही सम्यक ज्ञान है।

सम्यक दर्शन – यथार्थ ज्ञान के पर्ति श्रद्धा ही सम्यक दर्शन है।

सम्यक चरित्र (आचरण) – अहितकर कार्यों का निषेध तथा हितकारी कार्यों का आचरण ही सम्यक चरित्र है।

बौद्ध धर्म के त्रिरत्न – बुद्ध, धम्म, संघ।

बुद्ध-जो जागृत एवं महाज्ञानी हैं।

धम्म – जो बुद्ध की शिक्षाएं हैं।

संघ – बौद्ध भिक्षुओं एवं बौद्ध उपासकों का संघटन।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!