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खिलाफत आंदोलन के प्रमुख कारण क्या थे

तुर्की का सुल्तान विश्व के मुसलमानों का खलीफा (धार्मिक नेता) समझा जाता था।प्रथम विश्व युद्ध (First world war)में तुर्की जर्मनी (Germany)का साथ देते हुए इंग्लैण्ड(England) के विरुद्ध लङा।

भारतीय मुसलमानों को यह आशंका थी कि यदि तुर्की हार गया तो उसके टुकङे-2 कर दिये जायेंगे। खलीफा की समस्त शक्तियाँ समाप्त कर दी जायेंगी।

5 जनवरी, 1918 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉयड जार्ज (Lloyd George)ने भारतीय मुसलमानों को आश्वासन दिया कि तुर्की साम्राज्य को भंग नहीं किया जायेगा तथा खलीफा की प्रतिष्ठा को क्षति नहीं पहुँचाई जायेगी।

खिलाफत आंदोलन( khilaaphat aandolan ) का प्रमुख कारण

प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की मित्र देशों के विरुद्ध लङ रहा था, युद्ध के समय ब्रिटिश राजनीतिज्ञों को वचन दिया था कि वे तुर्की साम्राज्य को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचायेंगे लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की साम्राज्य का विघटन करने का निश्चय किया, जिससे भारतीय मुसलमानों की सहानुभूति तुर्की के प्रति हो गई।

सेर्वे की संधि ( serve kee sandhi )

अतः युद्ध काल में भारतीय मुसलमानों ने अंग्रेजों को भरपूर सहयोग दिया। युद्ध के पश्चात् 10 अगस्त,1919 को सेर्वे की संधि हुई, जिसके अनुसार तुर्की साम्राज्य को भंग कर दिया गया।सुल्तान को कुस्तुन्तुनिया में नजरबंद कर दिया गया।

खिलाफत आंदोलन( khilaaphat aandolan ) का प्रारंभ

भारतीय मुसलमानों ने खिलाफत आंदोलन आरंभ किया।मौलाना मोहम्मद अली और शौकत अली इस आंदोलन के प्रभावशाली नेता थे।

गाँधीजी ने इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता का स्वर्ण अवसर समझा।अतः गाँधीजी ने इस आंदोलन का समर्थन किया। 24 नवंबर, 1919 को दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन हुआ, जिसमें गाँधीजी को अध्यक्ष चुना गया। गाँधीजी ने परामर्श दिया कि यदि अंग्रेज तुर्की की समस्या का उचित हल न निकालें तो असहयोग एवं बहिष्कार की नीति अपनाई जाय।

अतः 20 मई, 1920 को खिलाफत समिति ने गाँधीजी के असहयोग कार्यक्रम को स्वीकार कर लिया।डॉ.पट्टाभि सीतारमैया के शब्दों में- खिलाफत, पंजाब की भूलों और अपर्याप्त सुधारों की त्रिवेणी से असंतोष का पानी किनारे के ऊपर बह चला और उसके संगम ने राष्ट्रीय असंतोष की धारा को एक नवीन रूप से व्यापक एवं गतिशील बना दिया।

खिलाफत आंदोलन( khilaaphat aandolan ) से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • सितंबर,1920 में कलकत्ता में हुए काँग्रेस के अधिवेशन का प्रमुख मुद्दा जलियाँवाला बाग कांड और खिलाफत आंदोलन (Khilafat movement) था।
  • हकीम अजमल खान,डा. मुख्तार अहमद अंसारी,मौलाना अल हसन,अब्दुल वारी,मौलाना अब्दुल कलाम आजाद,मोहम्मद अली, शौकत अली आदि तुर्की के समर्थक थे।
  • अली बंधुओं (मोहम्मद अली और शौकत अली) ने अपने पत्र कामरेड में तुर्की एवं इस्लामी की परंपराओं के प्रति सहानुभूति व्यक्त की।
  • तुर्की साम्राज्य के विभाजन के विरुद्ध शुरू हुए खिलाफत आंदोलन ने उस समय अधिक जोर पकङ लिया जब उसमें गाँधी जी ने हिस्सेदारी की।
  • सितंबर,1920 में लाला लाजपतराय की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुए काँग्रेस के विशेष अधिवेशन में काँग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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