आधुनिक भारतइतिहास

लार्ड डलहौजी(Lord Dalhousie) द्वारा अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय की नीति

लार्ड डलहौजी

1801 के बाद अवध के नवाबों ने आरंभ से ही कंपनी को संतुष्ट रखने का प्रयास किया था। जब 1801 ई. की संधि से अवध का बहुत बङा भाग कंपनी ने अपने अधिकार में कर लिया, तब भी किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं किया गया। कंपनी को दी जाने वाली नियमित वार्षिक धनराशि के अलावा समय-2 पर अवध से अतिरिक्त आर्थिक सहायता की माँग की जाती रही, और अवध उन माँगों को भी पूरा करता रहा। फिर भी, अवध के नवाब को समय-2 पर शासन-व्यवस्था को सुधारने की चेतावनी दी जाती रही, जबकि संपूर्ण शासन-व्यवस्था कंपनी के अधिकारियों के सुझावानुसार ही चलती थी।1837 ई. में मुहम्मदअली अवध का नवाब बना। उसके साथ कंपनी ने एक और संधि कर की। इसके अनुसार नवाब को अपनी छोटी सी सेना भी भंग करनी पङी।संयोग से इसके बाद कंपनी का ध्यान अफगानिस्तान,सिंध और पंजाब की तरफ लगा रहा और कुछ समय के लिए अवध बचा रहा।

लार्ड डलहौजी ने भारत आते ही अवध को हस्तगत करने का निश्चय कर लिया। वह एक साम्राज्यवादी गवर्नर-जनरल था। कलकत्ता से पंजाब तक अंग्रेजों का शासन स्थापित हो चुका था। परंतु अवध का बङा राज्य कलकत्ता और लाहौर के बीच आवागमन में बाधा उपस्थित करता था। इस कारण अवध को हङपकर संपूर्ण उत्तर भारत पर सीधे अधिकार करने की योजना को पूरी करने के लिए आधार ढूँढने पङे। इसके लिए कुशासन का आधार ही उपयुक्त समझा गया। परंतु इस आधार को तैयार करने में उसे सात वर्ष का समय लग गया।

वाजिद अलीशाह-

1847 ई. में वाजिदअलीशाह अवध का नया नवाब बना। उसे आरंभ से ही अंग्रेज अधिकारियों ने प्रशासन की तरफ ध्यान देने की चेतावनी देना शुरू कर दिया था। परंतु नवाब ने अपना प्रशासनिक उत्तरदायित्व अपने अधिकारियों पर छोङ दिया और स्वयं आमोद-प्रमोद तथा विलासिता में डूबता गया। वस्तुतः वाजिदअलीशाह यह समझता रहा कि जब तक वह कंपनी सरकार के प्रति निष्ठावान बना रहेगा, उसे किसी प्रकार के संकट का सामना नहीं करना पङेगा। उसे गवर्नर-जनरल डलहौजी की योजना की भनक अंतिम समय तक भी नहीं मिल पाई थी।

अवध के संबंध में कोई कार्यवाही करने के पूर्व डलहौजी ने उसके विरुद्ध लिखित साक्ष्य एकत्र करने का निश्चय किया ताकि वह अपने कार्य का औचित्य सिद्ध कर सके। इसके लिए अवध में नियुक्त अंग्रेज रेजीडेन्टों को विस्तृत रिपोर्ट भेजने को कहा गया। अंग्रेज अधिकारियों ने भी ऐसी ही रिपोर्ट तैयार की, जिससे गवर्नर-जनरल प्रसन्न हो सके और वह अपनी सरकार के उच्चाधिकारियों के सामने बतौर साक्ष्य के उन रिपोर्टों को प्रस्तुत कर सके।

कर्नल स्लीमैन की रिपोर्ट

1848ई. में स्लीमैन को अवध में अंग्रेज रेजीडेन्ट नियुक्त किया गया। उसने अपनी रिपोर्ट में बहुत अधिक बढा-चढाकर अवध के कुशासन का विवरण दिया। स्लीमैन की रिपोर्ट के अनुसार अवध में चारों तरफ अव्यवस्था फैली हुई थी।जिसे उसने अराजकता की संज्ञा दी। कुशासन का सारा दोष नवाब वाजीदअलीशाह के सिर पर डाला गया। स्लीमैन के शब्दों में वह कभी दरबार में उपस्थित ही नहीं होता था। उसने रिपोर्ट में सुझाव दिया कि शासन-व्यवस्था में सुधार लाने के लिए कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है। फिर भी, कर्नल स्लीमैन अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाये जाने के पक्ष में नहीं था। उसका मानना था कि इस प्रकार की कार्यवाही से ब्रिटिश प्रतिष्ठा को गहरा आघात लग सकता है।स्लीमैन की इस दलील से डलहौजी को अपनी योजना को थोङे दिनों के लिए स्थगित करनी पङी। किन्तु उसने चालाकी से काम किया। न तो स्लीमैन की रिपोर्ट पर किसी प्रकार की कार्यवाही की और न ही वाजिदअलीशाह को कुशासन के बारे में कोई चेतावनी ही दी गई।

परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि डलहौजी ने अपनी योजना में किसी प्रकार का परिवर्तन कर लिया था। 1853 में उसने एक पत्र में लिखा था कि, अवध का राजा अहंकारी होता जा रहा है।जाने से पूर्व उसे निगल जाने में मुझे संतोष मिलेगा। उसी वर्ष उसने कंपनी के नियंत्रक मंडल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड को लिखे पत्र में भी इसी प्रकार के विचार प्रकट किये।

ओट्ररम की रिपोर्ट

कर्नल स्लीमैन की रिपोर्ट से डलहौजी का काम नहीं बन पाया, परंतु वह निराश नहीं हुआ। 1854 ई. में उसने एक अन्य अंग्रेज अधिकारी जनरल ओट्ररम को अवध में नया रेजीडेन्ट नियुक्त किया। जनरल ओट्ररम ने अपनी नियुक्ति के कुछ महीने बाद ही 1855 ई. में अवध की शासन-व्यवस्था के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी जिसमें नवाब एवं उसके शासकीय अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाये गये तथा अवध के कुशासन को अतिश्योक्ति के साथ प्रस्तुत किया गया। इस रिपोर्ट से डलहौजी का काम बन गया। उसने रिपोर्ट के तथ्यों को तोङ-मरोङकर संचालक-मंडल को रिपोर्ट भेज दी और उसे अवध में कार्यवाही करने की अनुमति मिल गई।

डलहौजी की चालें

डलहौजी अन्तःकरण से अवध को हङपना चाहता था, किन्तु प्रगट में वह ऐसा प्रदर्शित करना नहीं चाहता था। अतः सर्वप्रथम यह निर्णय लिया गया कि 1801 ई. की संधि को भंग कर दिया जाय। इस संधि में नवाब ने उचित ढंग से शासन करने का आश्वासन दिया था। परंतु विगत 50 वर्षों में इस शर्त का पालन नहीं किया जा रहा था। अतः इस संधि को भंग कर वाजीदअलीशाह के साथ एक नयी संधि करने का निश्चय किया गया। नयी संधि के अनुसार अवध के नवाब की माँग की गई कि वह प्रशासन का सारा कार्य कंपनी को सौंप दे। उसे केवल औपचारिक अधिकार दिये गये। वास्तव में डलहौजी यह दिखाना चाहता था कि वह अवध को हङपना नहीं चाहता केवल वहाँ का प्रशासन-कार्य अंग्रेजों के अधीन लाना चाहता है। ताकि लोगों को स्वच्छ प्रशासन मिल सके और यह कंपनी का दायित्व भी है।

वाजिदअलीशाह को नई संधि पसंद नहीं आई। क्योंकि वह नाममात्र का नवाब बने रहने को तैयार नहीं था। फिर भी, उसने निष्क्रिय विरोध के अलावा कोई कदम नहीं उठाया और डलहौजी से मिलने कलकत्ता चला गया। शायद गवर्नर-जनरल को दया आ जाये। परंतु डलहौजी ने एक घोषणा जारी करके अवध के राज्य को कंपनी राज्य में शामिल कर लिया। डलहौजी का मुख्य तर्क यह था कि सर्वोपरि सत्ता की हैसियत से कंपनी अवध में व्याप्त कुशासन को एक मूकदर्शक की भाँति सहन नहीं कर सकती । इस प्रकार,अवध के राज्य का विलय हो गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!