दिवसमार्च

महावीर जयंती 29 मार्च

धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर या वर्धमान महावीर की जयंती हर साल दुनिया भर में पूरे हर्षोल्‍लास के साथ मनाई जाती है। जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने लोगों को समझाया कि अपना नजरिया बदलो तभी दुनिया अच्छी लगेगी। अगर आपके नजर में खराबी है तो आप अच्छे-खासे वस्त्र वाले इंसान को भी बिना कपड़े वाला ही समझेंगे।
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महावीर स्वामी का जन्म-

भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की 13वीं तिथि को हुआ था।
इसी वजह से जैन धर्म को मानने वाले इस दिन को महावीर जयंती के रूप में मनाते हैं।
इस बार यह जयंती 29 मार्च के दिन गुरुवार को आयी है।

तीर्थंकर के रूप में महावीर स्वामी-

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं जिनमें भगवान महावीर स्वामी को जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर के रूप में पूजा जाता है।
इनके बचपन का नाम वर्धमान था।
महावीर ने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका– इन चार तीर्थों की स्थापना की इसलिए यह तीर्थंकर कहलाए। यहां तीर्थ का अर्थ लौकिक तीर्थों से नहीं बल्कि अहिंसा, सत्य आदि की साधना द्वारा अपनी आत्मा को ही तीर्थ बनाने से है।
महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है, जिसमें जैन धर्म के अनुयायी हिस्सा लेते हैं।

महावीर स्वामी के द्वारा दिये गये सिद्धांत-

महावीर के तीन आधारभूत सिद्धांत हैं- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्तवाद हैं। ये युवाओं को आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में सुकून की राह दिखाते हैं। महावीर की अहिंसा केवल शारीरिक या बाहरी न होकर, मानसिक और भीतर के जीवन से भी जुड़ी है। दरअसल, जहां अन्य दर्शनों की अहिंसा समाप्त होती है, वहां जैन दर्शन की अहिंसा की शुरुआत होती है। महावीर मन-वचन-कर्म, किसी भी जरिए की गई हिंसा का निषेध करते हैं।

कठोर साधना-

बचपन में महावीर का नाम वर्धमान था, उन्होंने तीस वर्ष की उम्र में राजमहल का सुख-वैभवपूर्ण जीवन त्याग कर तपोमय साधना का रास्ता अपना लिया। इन्होंने कठोर तप से सभी इच्छाओं और विकारों पर काबू पा लिया इसलिए वर्धमान अब महावीर कहलाने लगे। ज्ञान की प्राप्ति के बाद महावीर जन-जन के कल्याण प्रयास में जुट गए।

अहिंसा का सिद्धांत-

महावीर जयंती को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। महावीर स्वामी ने अहिंसा तथा अपरिग्रह का संदेश दिया था। उनका मानना था कि जीवों की रक्षा करना मात्र ही अहिंसा नहीं है। उनके अनुसार अहिंसा वह है जिसमें किसी की मदद की जाये । यदि हम किसी की मदद करने में सक्षम हैं लेकिन मदद नहीं कर रहे तो वह हिंसा होगी।

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