मध्यकालीन भारतइतिहासमराठा साम्राज्य

मराठा राज्य और संघ का इतिहास

मराठा

17 वी. शता. में मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही देश में स्वतंत्र राज्यों का जो सिलसिला आरंभ हुआ उनमें राजनीतिक दृष्टि से सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य मराठों का था।

आरंभिक इतिहासकारों के अनुसार मराठों के उत्कर्ष में उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति,औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीतियों और उनके परिणामस्वरूप हिन्दू जागरण, मराठा संत कवियों का धार्मिक आंदोलन आदि महत्वपूर्ण कारक थे।

ग्रांट डफ के अनुसार 17 वी. शता.के उत्तरार्द्ध में मराठों का उदय आकस्मिक अग्निकांड की भाँति हुआ।

मराठों के मूल प्रदेश पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण प्रायः मुस्लिम राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहे।इस क्षेत्र पर बीजापुर तथा गोलकुंडा के बहमनी सुल्तानों का अधिकार नाममात्र का ही था।

शिवाजी के उदय से पूर्व भी मराठों को प्रशासनिक और सैनिक क्षेत्रों में विशेष स्थान प्राप्त था। बहुत से मराठा सिपहसालार तथा मनसबदार के रूप में बहमनी राज्य और उसके उत्तराधिकारी बीजापुर और अहमदनगर राज्य में नौकरी करते थे।

अहमदनगर के मलिक अंबर ने मराठों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये तथा युद्ध और प्रशासन दोनों में उनकी सर्वोत्तम प्रतिभा और सहयोग का उपयोग किया।

शिवाजी(1627-1680ई.)-

20 अप्रैल 1627 ई. को पूना के निकट शिवनेर के दुर्ग में शिवाजी का जन्म हुआ।उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था।

शिवाजी के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव उनकी माता जीजाबाई तथा संरक्षक एवं शिक्षक दादा कोंणदेव का पङा।इनके गुरु का नाम समर्थ रामदास था।

1637ई. में शाहजी भोंसले ने अपने पुत्र शिवाजी तथा पत्नी जीजाबाई सहित पूना की अपनी पैतृक जागीर की देखभाल का दायित्व बीजापुर के एक पूर्व अधिकारी एवं अपने विश्वासपात्र मित्र दादा जी कोंणदेव को सौंपकर कर्नाटक चले गये।

आरंभ में शिवाजी का उद्देश्य एक संवतंत्र राज्य की स्थापना करना था।

शिवाजी ने हिन्दू पद पादशाही अंगीकार किया गाय और ब्राह्मणों की रक्षा का व्रत लिया और हिन्दुत्व-धर्मोद्धारक की उपाधि धारण की।

शिवाजी में हिन्दू धर्म की रक्षा की भावना थी। परंतु उनका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक था।उसका मूल उद्देश्य मराठों की बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित करके महाराष्ट्र (दक्षिण भारत) में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था।

सर्वप्रथम शिवाजी ने 1643ई. में बीजापुर के सिंहगढ के किले पर अधिकार किया। तत्पश्चात 1646ई. में उन्होंने तोरण पर अधिकार कर लिया।

1656ई. में शिवाजी की महत्वपूर्ण विजय जावली की थी।जावली एक मराठा सरदार चंद्रराव मोरे के अधिकार में था।अप्रैल 1656ई. में उसने रायगढ के किले पर कब्जा कर लिया।

1657ई. में शिवाजी का पहली बार मुकाबला मुगलों से हुआ, जब वह बीजापुर की तरफ से मुगलों से लङा।इसी समय शिवाजी ने जुन्नार को लूटा।कुछ समय पश्चात मुगलों के उत्तराधिकार युद्ध का लाभ उठाकर उसने कोंकण पर भी विजय प्राप्त की।

शिवाजी के इस विस्तारवादी नीति से बीजापुर शासक सशंकित हो उठा, उसने शिवाजी की शक्ति को दबाने तथा उसे कैद करने के लिए 1659 ई. में अपने योग्य सरदार अफजल खाँ के नेतृत्व में एक सैनिक टुकङी भेजी।

ब्राह्मण दूत कृष्ण जी भाष्कर ने अफजल खाँ का वास्तविक उद्देश्य शिवाजी को बता दिया।

शिवाजी और अफजल खाँ की मुलाकात प्रतापगढ के दक्षिण में स्थित पार नामक स्थान पर हुई, जहाँ पर शिवाजी ने 2नवंबर,1659ई. में उसकी हत्या कर दी।

1660ई. में मुगल शासक औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को शिवाजी को समाप्त करने के लिए दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया।शाइस्ता खाँ ने बीजापुर राज्य से मिलकर शिवाजी को समाप्त करने की योजना बनाई।

15अप्रैल 1663ई. में शिवाजी रात्रि में चुपके से पूना में प्रवेश कर शाइस्ता खाँ के महल पर आक्रमण कर दिया।इस आक्रमण के कारण मुगल सेना को काफी क्षति पहुंची तथा शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

1664ई. में शिवाजी ने सूरत पर धावा बोल दिया। यह मुगलों का एक महत्वपूर्ण किला था।उसने चार दिन तक लगातार नगर को लूटा।

औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ के असफल होने पर शिवाजी को कुचलने हेतु आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा।वह बङा चतुर कूटनीतिज्ञ था उसने समझ लिया था कि बीजापुर को जीतने के लिए शिवाजी से मैत्री करना आवश्यक है। अतः पुरंदर के किले पर मुगलों की विजय और रायगढ  की घेराबंदी के बावजूद उसने शिवाजी से संधि कर ली।

जून 1665ई. पुरंदर की संधि के अनुसार-

  • शिवाजी को चार लाख हूण वार्षिक आय वाले तेईस किले मुगलों को सौंपने पङे,उसके पास सिर्फ बारह किले थे।
  • मुगलों ने शिवाजी के पुत्र शंभा जी को पंचहजारी एवं उचित जागीर देना स्वीकार कर लिया।
  • शिवाजी ने बीजापुर को स्वीकार कर शिवाजी के लिए फरमान एवं खिलअत भेंट किया।
  • 1666ई. में शिवजी जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आगरा आये,पर उचित सम्मान न मिलने पर दरबार से उठकर चले गये औरंगजेब ने उन्हें कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा। परंतु चतुराई से शिवाजी आगरे के किले से फरार हो गये।
  • कुछ दिन बाद शिवाजी ने औरंगजेब के पास पत्र भेजा कि यदि वह उसे (शिवाजी) क्षमा कर दे तो वह अपने पुत्र शंभा जी को युवराज मुअज्जम की सेवा में भेज सकता है।
  • औरंगजेब ने शिवाजी के इस समझौते को स्वीकार कर शिवाजी को राजा की उपाधि प्रदान की तथा उसके पुत्र शंभा जी को बरार में एक मनसब और जागीर दी।
  • 1670ई. में शिवाजी का मुगलों से पुनः युद्ध आरंभ हो गया।पुरंदर की संद्धि द्वारा खोये गये अपने अनेक किलों को शिवाजी ने पुनः जीत लिया। इन किलों में कोंडाना किला सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था।शिवाजी ने इस किले का नाम सिंहगढ रखा।
  • 1670ई. में शिवाजी ने तीव्रगति से सूरत पर पुनः आक्रमण किया और उसे लूटा तथा मुगलों से चौथ की मांग की।
  • 14जून 1674ई. को शिवाजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट से अपना राज्याभिषेक रायगढ में करवाया तथा छत्रपति की उपाधि धारण की।
  • शिवाजी का अंतिम महत्त्वपूर्ण अभियान 1677ई. में कर्नाटक अभियान था। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य बीजापुर के आदिलशाही राज्य पर अधिकार करना था।इसके लिए उन्होंने गोलकुंडा के दो ब्राह्मण मंत्रियों मदन्ना एवं अखन्ना के माध्यम से गोलकुंडा के सुल्तान के साथ एक गुप्त संधि की।
  • इस अभियान में शिवाजी ने जिंजी,मदुराई,बेल्लूर आदि तथा कर्नाटक एवं तमिलनाडु के लगभग 100किलों को जीत लिया।जिंजी को उन्होंने अपने इस भाग(दक्षिण भाग) की राजधानी बनाई।
  • शिवाजी का संघर्ष जंजीरा टापू के अधिपति अबीसीनाई सीदियों से भी हुआ।सीदियों पर अधिकार करने के लिए उसने नौ सेना का भी निर्माण किया था।परंतु वह पुर्तगालियों से गोआ तथा सीदियों से चौल और जंजीरा को न  छीन सके।
  • सीदी पहले अहमदनगर के आधिपत्य को मानते थे परंतु 1636ई. के पश्चात वे बीजापुर की अधीनता में आ गये।
  • शिवाजी के लिए जंजीरा को जीतना अपने कोंकण प्रदेश की रक्षा के लिए आवश्यक था। 1669ई. में शिवाजी ने दरिया-सारंग के नेतृत्व में अपने जल बेङे को जंजीरा पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
  • अपने अंतिम समय में शिवाजी ने एक बार फिर बीजापुर को मुगलों के विरुद्ध सहायता दी। 12अप्रैल, 1680ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

मैं शिवाजी को हिन्दू प्रजाति का अंतिम रचनात्मक प्रतिभा -संपन्न व्यक्ति और राष्ट्र निर्माता मानता हूँ।  (जदुनाथ सरकार)

शिवाजी का प्रशासन-

शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था अधिकाशतःदक्षिणी राज्यों और मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था से प्रभावित थी।जिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था।

राजा या छत्रपति –

  • यह प्रभुत्व संपन्न निरंकुश शारक था अंतिम कानून निर्माता, प्रशासकीय प्रधान, न्यायाधीश और सेनापति था।
  • शासन का वास्तविक संचालन अष्टप्रधान नामक 8 मंत्री करते थे।जिसका कार्य राजा को परामर्श देना मात्र था।इसे किसी भी अर्थ में मंत्रिमंडल नहीं कहा जा सकता था।
  • प्रत्येक मंत्री राजा के प्रति उत्तरदायी था तथा उसके सचिवों के रूप में कार्य करता था। सामान्यतः मंत्रियों का कार्य शिवाजी के निर्देशों का पालन करना और उनके अपने विभागों की निगरानी करना माात्र था।

पेशवा अथवा मुख्य प्रधान –

  • यह राजा का प्रधानमंत्री होता था । इसका कार्य संपूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना था।राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्यों की देखभाल भी करता था। सरकारी पत्रों तथा दस्तावेजों पर राजा के नीचे अपनी मुहर लगाता था।

अमात्य अथवा मजमुआदार-

  • यह वित्त एवं राजस्व मंत्री होता था।इसका मुख्य कार्य आय-व्यय के सभी लेखों की जाँच कर उस पर हस्ताक्षर करना होता था।

वाकिया नवीस अथवा मंत्री-

  • राजा के दैनिक कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाहियों का विवरण रखता था। (वर्तमान गृहमंत्री)

शुरु-नवीस अथवा सचिव-

  • राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य देखना तथा परगनों के हिसाब की जाँच करना आदि।

दबीर या सुमंत –

  • यह विदेश मंत्री होता था।

सेनापति अथवा सर-ए-नौबत-

  • सेना की भर्ती, संगठन, रसद आदि का प्रबंध इसके प्रमुख कार्य थे।

पंडितराव-

  • विद्वानों और धार्मिक कार्यों के लिए दिये जाने वाले अनुदानों का दायित्व निभाता था।

न्यायाधीश-

  • यह मुख्य न्यायाधीश होता था(राजा के बाद)।इसके अधिकार क्षेत्र में राज्य के समस्त दीवानी तथा फौजदारी के मामले आते थे।

विभागीय दायित्वों के निष्पादन के साथ-2तीन मंत्रियों – पेशवा,सचिव तथा मंत्री (वाकिया नवीस)को बङे प्रांतों का प्रभारी बनाया जाता था। अष्ठप्रधान में पंडितराव और न्यायाधीश के अतिरिक्त सभी मंत्रियों को अपने असैनिक कर्तव्यों के अतिरिक्त सैनिक कमान संभालनी पङती थी।

चिटनिस (पत्राचार लिपिक) मुंशी भी महत्त्वपूर्ण अधिकारी था जो एक प्रकार से सचिव का कार्य करते थे।

शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रांतों में विभक्त किया था।प्रत्येक प्रांत राज प्रतिनिधि (वायसराय) के अधीन होता था।जो राजा की मर्जी पर बना रहता था।

प्रांतों (सूबों) को परगनों और तालुकों में विभाजित किया गया था।परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते हैं।

स्वराज प्रदेश सीधे शिवाजी के अधीन था।

जागीर प्रथा समाप्त कर दी गई थी तथा अधिकारियों को नकद वेतन प्रदान किया जाता था।

सेना

शिवाजी ने एक नियमित तथा स्थायी सेना रखी।सेना का मुख्य भाग पैदल और घुङसवार सेना थी।

घुङसवार सेना दो भागों में विभक्त थी-

  1. बरगीर– वे घुङसवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से घोङे और शस्र दिये जाते थे।
  2. सिलेदार– ये स्वतंत्र सैनिक होते थे।जो अपना अस्र-शस्र स्वयं रखते थे।

पच्चीस अश्वारोहीयों की एक टुकङी होती थी।

25घुङसवार –एक हवलदार के अधीन होते थे।

5हवलदार-एक जुमलादार के अधीन होते थे।

10जुमलादार- एक हजारी के अधीन होते थे।

5हजारी- एक पंचहजारी के अधीन होते थे।

पंचहजारी सर-ए-नौबत के अधीन होते थे।सर-ए-नौबत संपूर्ण घुङसवार सेना का प्रधान होता था।

शिवाजी की सेना में मुसलमान सैनिक भी होते थे।

मराठा सैन्य व्यवस्था के विशिष्ट लक्षण थे। किले-किले में तीन अधिकारी होते थे-हवलदार,सर-ए-नौबत, सबनीस हवलदार।सर-ए-नौबत मराठा तथा सबनीस ब्राह्मण होते थे।

सबनीस(ब्राह्मण)नागरिक(असैनिक) और राजस्व प्रशासन देखता था।रसद और सैनिक सामग्री की देखभाल कारखाना नवीस करता था।

विश्वासघात को रोकने के लिए शिवाजी ने प्रत्येक सेना में भिन्न-2जातियों के सैनिक रखे थे।सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था।

वास्तव में पहाङी दुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्र,जो हवलदार के अधीन होते थे, शिवाजी की प्रशासनिक इकाई थे।हवलदार के नेतृत्व में विभिन्न जातियों के सैनिकों की भर्ती करके दुर्गसेना का गठन किया जाता था।

शिवाजी ने कोलाबा में एक जहाजी बेङे का भी निर्माण करवाया जो दो कमानों में बँटी हुई थी।एक दरिया सारंग(मुसलमान) तथा दूसरी नायक (हिन्दू) के अधीन रहती थी।

मावली सैनिक शिवाजी के अंगरक्षक थे।मावली एक पहाङी लङाकू जाति थी।

पागा घुङसवार सेना का एक नियमित संगठन था।

राजस्व प्रशासन-

शिवाजी की राजस्व व्यवस्था अहमदनगर राज्य में मलिक-अंबर द्वारा अपनायी गई रैयतवाङी प्रथा पर आधारित थी।

शिवाजी ने भूमि को ठेके पर देने की प्रथा को त्याग दिया। भूमि की पैमाइश के आधार पर उत्पादन का अनुमान लगाया जाता था।आरंभ में शिवाजी ने पैदावार का 33प्रतिशत लगान वसूल करवाया। परंतु बाद में स्थानीय करों तथा चुंगियों को माफ करने के बाद इसे बढाकर 40 प्रतिशत कर दिया।

राजस्व नकद या वस्तु (जजिया) के रूप में चुकाया जा सकता था।नये इलाके बसाने को प्रोत्साहन देने के लिये किसानों को लगान मुक्त भूमि प्रदान की जाती थी।

शिवाजी के निर्देशानुसार सन्1679ई. में अन्नाजी दत्तों ने एक विस्तृत भू सर्वेक्षण करवाया जिसे परिणामस्वरूप एक नया राजस्व निर्धारण हुआ।

लगान व्यवस्था के लिए शिवाजी का राज्य 16प्रांतों में बांटा गया था।प्रांतों को तरफ  और मौजों में बाँटा गया था। तरफ का प्रधान कारकून कहलाता था।और प्रांत का अधिकारी सूबेदार कहलाता था।

गाँव के प्राचीन पैतृकअधिकारी को पाटिल और जिले के देशमुख या देशपांडे होते थे।भूमि की पैमाइश  रस्सी के स्थान पर काठी या जरीब से किया जाता था।खेतों का विवरण रखने के लिए भू-स्वामियों से कबूलियत ली जाती थी।

राज्य कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए तकाबी ऋण देकर तथा बेकार भूमि पर खेती करने के लिये पहले कोई कर न लेकर प्रोत्साहित करते थे।

चौथ तथा सरदेशमुखी-

मराठा कराधान प्रणाली में दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कर – चौथ और सरदेशमुखी। चौथ के विषय में इतिहासकारों में एकमत नहीं है।

रानाडे के अनुसार-चौथ सैन्य कर था, जो तीसरी शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा  प्रदान करने के बदले में वसूल किया जाता था।

सरदेसाई-चौथ विजित क्षेत्रों से वसूल किया जाने वाला कर था।

जदुनाथ सरकार –यह मराठा आक्रमण से बचने के एवज में वसूल किया जाता था।

सरदेशमुखी– यह आय का 10प्रतिशत या 1/10अंश के रूप में होता था, जो एक अतिरिक्त कर था।

शिवाजी के अनुसार देश के वंशानुगत सरदेशमुख (प्रधान मुखिया) होने के नाते और लोगों के हितों की रक्षा करने के बदले उन्हें सरदेशमुखी लेने का अधिकार है।

ईश्वरी प्रसाद- देसाइयों तथा देशमुखों का मुखिया सरदेशमुख कहलाता था।

न्याय प्रशासन-

न्याय प्रशासन पुराने किस्म का ही था।गाँव के अपराधिक मामलों की सुनवाई पटेल किया करता था।जो आज के तहसीलदार के समान होता था।

दीवानी और फौजदारी के मामलों की अपील की सुनवाई ब्राह्मण न्यायाधीश करते थे।उनके निर्णय प्राचीन स्मृतियों के आधार पर किये जाते थे।

अपील की अंतिम अदालत हाजिर-मजलिस थी जो संभवतः शिवाजी की मृत्यु के बाद समाप्त हो गयी थी।

राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र को शिवाजी द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया और मुगलों से स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखा।उसने (ताराबाई) रायगढ,सतारा तथा सिंहगढ आदि किलों को मुगलों से जीत लिया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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