इतिहासउत्तर भारत और दक्कन के प्रांतीय राजवंशमध्यकालीन भारत

मध्यकालीन भारत के बंगाल का इतिहास क्या था

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दिल्ली सल्तनत का सर्वाधिक विस्तार 14वीं शता. के प्रारंभ में मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में हुआ।दिल्ली सल्तनत के विघटन की प्रक्रिया दक्षिण भारत से प्रारंभ हुई जब मदुरा ( मावर) के तुगलक गवर्नर जलालुद्दीन अहसान शाह ने विद्रोह कर दिया और 1333-34ई. में ( मुहम्मद बिन तुगलक के समय ) स्वतंत्र मदुरा सल्तनत की स्थापना की। इसी के बाद 1336ई. में हरिहर एवं बुक्का बंधुओं ने ऐतिहासिक विजय नगर साम्राज्य की स्थापना की। विजय नगर की स्थापना के एक दशक बाद तुगलक अमीरान -ए – सादाह ने विद्रोह कर दिया और 1346ई. में दक्कन में वहमनी साम्राज्य की स्थापना की।

Note : सम्पूर्ण सल्तनत काल में उङीसा तथा कश्मीर दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र रहा। 

बंगाल-

सल्तनतकालीन उत्तर भारतीय प्रांतों में सबसे अधिक विद्रोह बंगाल में हुए। 1279ई. में तुगरिल के विद्रोह के बाद बुगरा खाँ ने इस प्रांत में एक वंश की स्थापना की, जो वास्तव में दिल्ली से स्वतंत्र राज्य करता था। गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल  पर दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण को बनाए रखने के लिए बंगाल को तीन प्रशासकीय संभागों में विभाजित किया जिनकी राजधानियाँ थी- लखनौती ( उत्तरी बंगाल ), सोनार गाँव ( पूर्वी बंगाल) और सतगाँव ( दक्षिण बंगाल )।

मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में बंगाल दिल्ली सल्तनत में 1338ई. अलग हो गया था। उत्तर बंगाल में अलाउद्दीन अलीशाह स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया तथा अपनी राजधानी लखनौती से पाण्डुआ  स्थानान्तरित की। किन्तु 1345ई. में अलाउद्दीन अलीशाह का एक सरदार इलियास खाँ ने सम्पूर्ण बंगाल पर अधिकार कर लिया और सुल्तान शम्सुद्दीन इलियास शाह के नाम से गद्दी पर बैठा।

इलियास शाह एक लोक प्रिय शासक था।उसकी बहुत सी उपलब्धियाँ हैं । उसके शासन काल में फिरोज तुगलक ने प्रथम बार बंगाल पर आक्रमण किया।फिरोज तुगलक ने पाण्डुआ के नगर वासियों को अपने पक्ष में में करने के लिए मलिकों, धर्मशास्त्रियों तथा अन्य योग्य व मंद लोगों को मुक्त  हस्त से भ-अनुदान प्रदान किये परंतु उसका यह प्रयास विफल हो गया। इस असफलता का कारण सम्भवतः इलियास की लोकप्रियता थी।

सिकंदरशाह ( 1357-1389ई.)-

इसके शासन काल में फिरोज तुगलक ने बंगाल को पुनः प्राप्त करने के लिये दूसरी बार आक्रमण किया पर उसे निराश होकर लौटना पङा। 1368ई. में इसने पाण्डुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण कराया।

गयासुद्दीन आजमशाह ( 1389-1409ई.)-

यह अत्यंत लोकप्रिय शासक था। वह प्रसिद्ध कवि हाफिज से पत्र व्यवहार करता था।इसकी न्यायप्रियता तथा विदेशों से संबंध  प्रसिद्ध हैं। उसने चीनी सम्राट के दरबार में एक दूतमंडल भेजा था। चीनी सम्राट ने भी बदले में उसके पास दूत मंडल और उपहार भेजे थे।

शमसुद्दीन अहमदशाह ( 1431-1435ई.)-

इसके शासनकाल में जौनपुर के इब्राहीम शर्की ने बंगाल पर आक्रमण किया । 1431-32ई. में एक चीनी दूतमंडल इसके दरबार में भी आया था।

रुकनुद्दीन बारबकशाह (1459-1474ई. )-

इसने अपनी सेना में अरब सैनिकों को नियुक्त किया था। सुल्तान बारबक बंगाली साहित्य का महान संरक्षक था। उसने श्री कृष्ण विजय नामक ग्रंथ के रचयिता मालधर बसु को संरक्षण प्रदान किया और उन्हें गुणराज खान की उपाधि तथा उसके पुत्र को सत्यराज खान की उपाधि से सम्मानित किया।कृत्तिवास ने रामायण का बंगला में अनुवाद किया जिसे बंगाल का बाइबिल कहा जाता है। काशीराम ने प्रथम बंगला भाषी महाभारत की रचना की। यह कार्य बंगाल के शासक नुसरतशाह के समय में हुआ।

फरिश्ता के अनुसार बारबकशाह हिन्दुस्तान का सर्वप्रथम शासक था जिसके पास अत्यधिक संख्या में अबीसीनियन दास थे जिसमें कुछ को उँच्चे पद भी मिले हुए थे।

अलाउद्दीन हुसैनशाह ( 1493-1519ई.)-

बंगाल के मुस्लिम शासकों में श्रेष्ठ और विख्यात अलाउद्दीन हुसैन शाह को माना जाता है। उसने कानून एवं व्यवस्था को फिर से लागू किया और हिनदूओं को उँच्चे-2 पद देकर एक उदार नीति अपनायी। उसका वजीर एक विद्वान हिन्दू था। गोपीनाथ बसु उसका मंत्री , मुकुन्ददास चिकित्सक, केशव क्षत्री प्रधान अंगरक्षक, अनूप टकशाल अधीक्षक आदि थे।

दो विद्वान भाई रूप और सनातन जो पवित्र वैष्णव माने जाते थे उनके प्रमुख अधिकारी थे। 1494ई. में उसने खलीफतुल्ला की उपाधि धारण की। उसने गौङ के स्थान पर इकदला को अपनी राजधानी बनाया।

उसने लोदीयों द्वारा पराजित जौनपुर के शर्की सुल्तान को शरण प्रदान की। हुसैन शाह एक ज्ञानी एवं बुद्धिमान पुरुष था। उसके शासनकाल में बंगाल साहित्य का सबसे अधिक विकास हुआ।हिन्दुओं के प्रति विशेष उदारता के कारण उसे कृष्ण का अवतार नृपति तिलक और जगत भूषण आदि उपाधियाँ प्रदान की गई।

नुसरत शाह ( 1519-1532ई.)-

बाबर के समय बंगाल का शासक नुसरत शाह था। बाबर ने उसे घाघरा के युद्ध में पराजित किया था। वह वास्तुकला तथा साहित्य का संरक्षक था। गौङ में सोना मस्जिद तथा कदम रसूल मस्जिद बनवायी तथा महाभारत का बंगला में अनुवाद करवाया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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