आधुनिक भारतइतिहास

माउंटबेटन योजना क्या थी

22 मार्च,1947 को भारत के 34 वें और अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन भारत आये, जिनका एक मात्र उद्देश्य था, अतिशीघ्र भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देना।

लारी कालिन्स एवं लापियर की पुस्तक Freedom at Midnight में माउन्टबेटन को भारतीयों के बीच ऐसे महान राजनयिक तथा छबीले राजकुमार के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिससे अपने आकर्षक व्यक्तित्व और चतुराई से भारतीय प्रायद्वीप की समस्याओं को पलक झपकते ही हल कर दिया।

माउंटबेटन ने 15 अगस्त,1947 को भारतीयों को सत्ता सौंपने का दिन निर्धारित किया।

लगभग दो महीने की बातचीत के बाद बेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विभाजन ही एकमात्र विकल्प है। अतः उन्होंने एटली के 20 फरवरी,1947 के वक्तव्य के दायरे में भारत विभाजन की एक योजना तैयार की।

विवशता की स्थिति में कांग्रेस (Congress)की ओर से पं.जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार पटेल ने विभाजन योजना को स्वीकार किया, लेकिन गांधी जी अंत तक विभाजन का कङा विरोध करते रहे।

गांधी जी के शब्दों में – यदि सारा भारत भी आग की लपटों में घिर जाये, फिर भी पाकिस्तान नहीं बन सकेगा। यदि कांग्रेस विभाजन चाहती है तो वह मेरे मृत शरीर पर ही होगा, क्योंकि जब तक मैं जीवित हूँ भारत को विभाजित नहीं होने दूँगा।

अंतरिम सरकार के काल में मुस्लिम लीग द्वारा पैदा की हुई परेशानियों से थककर बल्लभ भाई पटेल ने कहा ,कि जिन्ना विभाजन चाहते हैं या नहीं, अब हम स्वयं विभाजन चाहते हैं।

3 जून, 1947 को प्रधानमंत्री एटली ने हाऊस ऑफ कॉमन्स में विभाजन योजना(3 जून योजना) की घोषणा की।

3 जून की योजना मूलतः भारत विभाजन की योजना थी, इसमें उस प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था, जिसके अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित की जानी थी तथा मुस्लिम बहुल प्रांतों को यह चुनना था, कि वे भारत में रहेंगे या प्रस्तावित राज्य पाकिस्तान में शामिल होंगे।

माउंट बेटन या 3 जून योजना का प्रारूप इस प्रकार था

  • मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र यदि चाहें तो अलग अधिराज्य बना सकते हैं।पर इसके लिए एक नई संविधान निर्मात्री सभा बैठेगी, बंगाल और पंजाब की प्रांतीय विधान सभाओं के दो पृथक-2 भाग होंगे ( जिसमें एक मुस्लिम बहुल जिला तथा दूसरे में बाकी जिले के प्रतिनिधि होंगे।)
  • उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में जनमत संग्रह द्वारा यह निश्चित किया जायेगा, कि वे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं या नहीं । असम के मुस्लिम बहुल इलाके सिलहट जिले में इसी तरह का जनमत संग्रह होना था।
  • सिंध और बलूचिस्तान के मामले में संबद्ध प्रांतीय विधान मंडल को सीधे निर्णय लेना था।
  • पंजाब, बंगाल आसाम के विभाजन हेतु एक सीमा आयोग का गठन।
  • रजवाङों को इस बात का निर्णय लेना था कि वे भारत में रहना चाहते हैं या फिर पाकिस्तान में।

पं. गोविंद बल्लभ पंत ने विभाजन की योजना के पुष्टि हेतु प्रस्ताव करते हुए कहा, कि आज हमें पाकिस्तान या आत्महत्या में से एक को चुनना है। देश की स्वतंत्रता और मुक्ति पाने का यही एकमात्र रास्ता है, इससे भारत में एक शक्तिशाली संघ की स्थापना होगी।

कांग्रेस के राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता मौलाना आजाद ने कहा, कि यदि कांग्रेस के नेताओं ने विभाजन मान लिया, तो इतिहास उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा।

खान अब्दुल गफ्फार खां (सीमांत गांधी ) ने विभाजन पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, कि कांग्रेस के नेतृत्व ने उनको आंदोलन के भेङियों के आगे फेंक दिया।

नेहरू, पंत, पटेल, कृपलानी और अंत में गांधी जी ने भी विभाजन स्वीकार लिया।

जिन्ना के शब्दों में मुस्लिम लीग ने सिरकटे और पतंगों द्वारा जर्जरीकृत पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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