मध्यकालीन भारतइतिहासमुगल कालस्रोत

मुगल कालीन शिक्षा एवं साहित्य कैसा था

mughal education

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

मुगल शासकों ने शिक्षा का पोषण किया। मुगल काल में मकतब (प्राइमरी शिक्षा) और मदरसों की व्यवस्था होती थी,जहाँ शिक्षा दी जाती थी।

बाबर के समय में एक विभाग- शुहरते-आम होता था, जो स्कूल एवं कालेजों की व्यवस्था करता था।

हुमायूँ ज्योतिष एवं भूगोल का अच्छा ज्ञाता था। उसने माहन अनगा (अकबर की धाय माँ) के सहयोग से दिल्ली में मदरसा-ए-बेगम की स्थापना की थी।

हुमायूँ के बारे में कहा जाता है कि – वह सदैव अपने साथ एक चुना हुआ पुस्तकालय लेकर चलता था।

अकबर स्वयं अशिक्षित था, किन्तु उसने शिक्षा के विकास के लिए-फतेहपुर सीकरी,आगरा एवं लाहौर आदि अनेक स्थानों पर मकतब एवं मदरसों का निर्माण कर शिक्षा को प्रोत्साहन दिया।

जहाँगीर ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी, जिसके अनुसार किसी संपन्न व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर राज्य उसकी संपत्ति लेकर मदरसों एवं मठों का निर्माण एवं मरम्मत करायेगा।

अकबर के काल में फारसी को बहुत प्रश्रय मिला था, जिससे फारसी के अलावा स्थानीय भाषा (हिन्दवी) में कागजात रखना बंद कर दिया गया।

शाहजहाँ ने दिल्ली में एक नये कालेज का निर्माण करवाया तथा – दारूल-बर्का नामक कालेज की मरम्मत करवायी।

मुगल राजपरिवार का सर्वाधिक विद्वान शाहजादा दाराशिकोह था, वह हमेशा विद्वानों एवं संतों का आदर करता था।

उसकी बङी बहन जहाँआरा भी एक विद्वान और विद्वानों का आदर करने वाली महिला थी।

औरंगजेब के समय में मकतबों एवं मदरसों को सहायता दी जाती थी।किन्तु उसने हिन्दू पाठशालाओं को बंद करवाने का प्रयत्न किया।

औरंगजेब की निर्वासित पुत्री जेबुन्निसा ने दिल्ली में बैतुल-उल-उलूम नामक एक स्कूल कुलवाया।जिसमें अभिजात वर्ग के साथ-2 मध्यम वर्ग के लोग भी पढ सकते थे।

मकतबों एवं मदरसों में फारसी भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी।

विभिन्न मदरसों में भन्न-2शिक्षा दी जाती थी-जैसे – लखनऊ का फरहंगी-महल मदरसा न्याय की शिक्षा के लिए तथा स्यालकोट का मदरसा – व्याकरण की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।

मुगल काल में विद्यार्थियों को तीन प्रकार की उपाधियाँ दी जाती थी-

  • तर्क और दर्शन के विद्यार्थी को फाजिल,
  • धार्मिक शिक्षा के विद्यार्थियों को आमिल तथा
  • साहित्य के विद्यार्थियों को – काबिल कहा जाता था।

टेबर्नियर ने शिक्षा  के क्षेत्र में बनारस की बहुत प्रशंसा की है।

मुगलकालीन साहित्य-

बाबर के समय में साहित्य-

बाबर साहित्य में बहुत रुचि लेता था उसने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा –तुजुके-बाबरी (बाबरनामा) लिखा।

बाबरनामा-

बाबरनामा का तीन बार फारसी अनुवाद हुआ। बाबरनामा में भारत की तत्कालीन राजनीतिक दशा, भारतीयों के तत्कालीन जीवन स्तर,फसलें और फूलों का विस्तृत वर्णन मिलता है।

बाबर ने एक नई काव्य शैली –मुबइयान को प्रारंभ किया।

बाबर ने कविताओं का संग्रह –दीवान (तुर्की भाषा) नाम से करवाया, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ।

हुमायूँ के काल में साहित्य –

हुमायूँ के शासन काल मिर्जा हैदर दोगलत ( जो हुमायूँ की शाही फौज का कमांडर था) तारीखे-रशीदी नामक फारसी ग्रंथ लिखा।जिसमें मध्य एशिया के तुर्कों का इतिहास एवं हुमायूँ के काल का विस्तार से वर्णन मिलता है।

हुमायूँनामा-

हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम द्वारा लिखित इस ग्रंथ के एक खंड में बाबर का इतिहास तथा दूसरे खंड में हुमायूँ का इतिहास मिलता है।

तजकिरात-उल-वाकियात-

जौहर आफतावची द्वारा लिखित इस ग्रंथ से हुमायूँ के जीवन के उतार-चढाव के बारे में पता चलता है।

वाकयात-ए-मुश्ताकी-

रिजकुल्लाह-मुस्ताकी द्वारा लिखित यह पहली पुस्तक है जिससे  सूरकाल एवं लोदी काल के विषय में जानकारी मिलती है।

अकबर के समय में साहित्य-

अबुल फजल अकबर के दरबार के 59 श्रेष्ठ कवियों का उल्लेख करता है। जिसमें-फैजी, नजीरी,अब्दुर्रहीम खानखाना,उत्बी(उर्फी), गिजाली एवं अबुल फजल आदि प्रमुख थे।

अकबर ने भारत में दरबारी इतिहास लेखन की परंपरा की शुरूआत की ।

अकबर कालीन साहित्य को सुविधानुसार तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. ऐतिहासिक पुस्तकें-
  2. अनुवाद
  3. काव्य एवं पद्य।
  • ऐतिहासिक पुस्तकें-

  1. नफांइस-उल-मासिर- मीर अलाउदौला कजवीनी  द्वारा लिखित अकबर के समय की प्रथम ऐतिहासिक पुस्तक है। जिसमें 1565ई. से 1575ई. तक की घटनाओं का विवरण मिलता है।
  2. अकबरनामा- अबुल फजल द्वारा 7 वर्षों में लिखी गई (1591-98ई.) यह पुस्तक तीन जिल्दों में बँटी है। इसकी आखिरी जिल्द आइने अकबरी है।आइने-अकबरी पुनः 5 भागों में बँटी है।यह पुस्तक अकबर कालीन शासन प्रणाली तथा मुगल आर्थिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।इसके अंतिम भाग में अबुल फजल की जीवनी वर्णित है।
  3. मुंतखाब-उल-तवारीख- बदायूँनी द्वारा अकबर के शासन काल में 1590ई. में प्रारंभ की गई इस पुस्तक को हिन्दुस्तान का आम इतिहास माना जाता है।बदायूँनी अकबर की धार्मिक नीतियों का कट्टर विरोध था, उसने अकबर की इस्लाम विरोधी नीतियों की एक लंबी सूची तैयार की थी।

अकबर के शासन काल की अन्य प्रमुख ऐतिहासिक पुस्तकें-मुल्ला दाउद की तारीखे अल्फी , निजामुद्दीन अहमद का तबकाते-अकबरी, फैजी -सरहिन्दी का अकबरनामा तथा अब्दुल बाकी की मआसिरे रहीमी आदि।

  • अनुवाद-

अकबर का राजकवि फैजी (अबुल फजल का भाई) अपने समय का श्रेष्ठ कवि था।अकबर ने उसी के अधीन एक-अनुवाद-विभाग की स्थापना की थी।

अकबर के आदेश से महाभारत के विभिन्न भागों का फारसी में अनुवाद किया गया तथा उसका संकलन रज्मनामा नाम से किया गया।

अकबर के शासनकाल के बदायूँनी ने रामायण का,राजा टोढरमल ने भागवत पुराण का, इब्राहीम सरहिन्दी ने अथर्ववेद की, फैजी ने गणित की एक पुस्तक लीलावती का, मुकम्मल खाँ गुजराती  ने ज्योतिष शास्र की एक पुस्तक-तजक का -जहाँन-ए-जफर नाम से,अब्दुर्रहीम खान-खाना ने तुजुके-बाबरी पायंदा खाँ ने तुजुके-बाबरी तथा मौलाना शाह मुहम्मद शाहावादी ने -कश्मीर के इतिहास (राजतरंगिणी)का फारसी में अनुवाद किया।

इसके अतिरिक्त सिंहासन-बत्तीसी तथा पंचतंत्र का कलीला एवं दिमना नाम से तथा अबुल फजल ने कालिया-दमन का अयोरे-ए-दानिश यार-ए-दानिश नाम से अनुवाद किया गया।

अकबर के ही काल में संभवतः कुरान का पहली बार अनुवाद हुआ।

काव्य या पद्य-

अकबर कालीन पद्यकारों में सबसे विख्यात – गिजाली थे।उसके बाद अबुल फजल का भाई फैजी थे।

अन्य प्रसिद्ध कवियों में निशापुर का मुहम्मद हुसैन नजीरी था, जो बहुत अच्छी गजलें लिखता था, शीराज का सैय्यद जमालुद्दीन उर्फी (उत्बी) था यह अपने समय में कसीदों का विख्यात लेखक था।

जहाँगीर के शासन काल में साहित्य-

जहाँगीर के शासन काल में विद्वानों की एक वस्तृत सूची मोतमद खाँ बख्शी द्वारा लिखित इकबालनामा-ए-जहाँगीरी में मिलती है।

जहाँगीर के शासनकाल में फारसी भाषा में लिखी गयी ऐतिहासिक पुस्तकों में – जहाँगीर  द्वारा लिखित स्वयं की आत्मकथा (तुजुके जहाँगीरी), मौतमिद खाँ द्वारा लिखित- इकबालनामा-ए-जहाँगीरी तथा ख्वाजा-कामगार द्वारा लिखित-मआसिरे-जहाँगीरी प्रमुख हैं।

तुजुके-जहाँगीरी-(जहाँगीर की आत्मकथा)

यद्यपि इसे जहाँगीर ने शुरू किया लेकिन अपने शासनकाल के 16 वर्षों तक कार्य करने के बाद बंद कर दिया।तत्पश्चात उसे मौतमिद खाँ ने शुरू किया।किन्तु अंतिम रूप से इस पुस्तक को मुहम्मद हादी ने पूरा किया।

शाहजहाँ के समय में साहित्य-

शाहजहाँ के समय में भी अनेक ऐतिहासिक पुस्तकें लिखी गयी, जिसमें उसके दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लहौरी का पादशाह नामा, मुहम्मद अमीन कजवीनी का पादशाहनामा मुहम्मद सादिक का पादशाहनामा इनायत खाँ का शाहजहाँनामा तथ ामुहम्मद सालेह -अमले-सालेह प्रमुख है।

मुहम्मद अमीन कजवीनी शाहजहाँ के समय का प्रथम सरकारी इतिहासकार था। जिसने अपनी पुस्तक में शाहजहाँ के शासन काल के 10 वर्षों का जिक्र किया है।

दाराशिकोह के काल का साहित्य-

दारा  ने अनेक ग्रंथों भगवत गीता एवं योग वशिष्ठ का स्वयं अपनी देख-रेख में फारसी में अनुवाद कराया।
दारा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य  वेदों का संकलन था,जिसे उसने ईश्वरीय कृति माना है। इसके अतिरिक्त उसने स्वयं तथा काशी के पंडितों का सहायता से बावन उपनिषदों का सिर्र-ए-अकबर नाम से फारसी में अनुवाद कराया।

औरंगजेब के समय में साहित्य-

औरंगजेब अपने साम्राज्य में इतिहास लेखन के विरुद्ध था। इसीलिए खफी खाँ को मुन्तखब-उल-तवारीख (औरंगजेब के शासन काल का आलोचनात्मक वर्णन) की रचना गुप्त रूप से करनी पङी।

फिर भी औरंगजेब के समय में अनेक ऐतिहासिक पुस्तकें फारसी भाषा में लिखी गई। जिनमें खफी-खाँ  का मुन्तखब-उल-तवारीख, मिर्जा मुहम्मद काजिम का आलमगीर नामा, मुहम्मद साकी का – मआसिरे-आलमगीर , सुजान राय का – खुलासत-उल-तवारीख , ईश्वरदास का फुतूहाते-आलमगीरी भीमसेन बुरहानपुरी का नुक्शा -ए-दिलकुशाँ आदि प्रमुख हैं।

औरंगजेब के  काल में मुहम्मद साकी द्वारा लिखी गयी- मआसिरे-आलमगीरी को डा. जदुनाथ सरकार ने मुगलराज्य का गजेटियर कहा है।

औरंगजेब ने अनेक अरबी ग्रंथों की सहायता से फारसी में एक न्याय और कानून की पुस्तक-फतवा -ए-आलमगीरी का संकलन करवाया। इसे भारत में रचित मुस्लिम कानून का सबसे बङा डाइजेस्ट (संक्षिप्त-पुस्तक)माना गया है।

संस्कृत साहित्य-

अकबर के शासन काल में प्रसिद्ध जैन विद्वान पद्मशंकर ने सर्व प्रथम फारसी -संस्कृति का एक शब्द कोष -फारसी प्रकाश नाम से तैयार किया।

अकबर ने अपने शासन काल में इस्लाम के प्रति हिन्दुओं में भाई-चारा तथा श्रद्धा जागृत करने के लिए संस्कृत में अकबर के शासनकाल का इतिहास लिखा।

इसके अतिरिक्त शाहजहाँ के दरबारी कवि-पंडित जगन्नाथ ने रसगंगाधर एवं गंगालहरी की रचना की।

हिन्दी साहित्य-

मुगलकाल हिन्दी साहित्य का उत्कृष्ट काल था जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी,तुलसीदास, अब्दुर्रहीम खानखाना तथा बीरबल अकबर के काल के प्रसिद्ध कवि थे।

तुलसी दास ने इसी समय रामचरित मानस की रचना की।अकबर ने बीरबल को कविप्रिय (कविराय) की उपाधि प्रदान की तथा नरहरि चक्रवर्ती को महापात्र की उपाधि दी थी।

अकबर के समय में तुलसीदास जी ने रामचरित मानस नामक ग्रंथ की रचना की।

रामचरित मानस को जार्ज ग्रियर्सन ने उचित ही हिन्दुस्तान के करोङों लोगों की एक-मात्र बाइबिल बताया है।

जहाँगीर के समय में सूरदास (अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि) ने सूरसागर की रचना की।

बूटा या वृक्षराज नामक हिन्दी कवि जहाँगीर का विशेष कृपापात्र था।

जहाँगीर के समय के सर्वश्रेष्ठ कवि केशवदास थे।

आचार्य बिहारी को जयसिंह ने संरक्षण दिया था।

मुगल काल में गुजराती, मराठी तथा बंगला में भी कविताओं एवं ग्रंथों की रचना हुई। बंगला में कृष्णदास कविराज ने चैतन्य चरितामृत की रचना की । जो बैष्णव संत चैतन्य की जीवनी है।

एक अन्य बंगाली लेखक मुकुंद राम चक्रवर्ती ने कवि कंकण -चंडी नामक ग्रंथ की रचना की, जिसे बंगाल में आज भी वैसी ही लोकप्रियता प्राप्त है, जैसे उत्तरी भारत में रामचरित मानस को प्राप्त है।

इसी कारण प्रोफेसर क्रावेल ने मुकुंद राम चक्रवर्ती को बंगाल का क्रैब कहा है।

अकबर के दरबार के प्रसिद्ध ग्रंथकर्ताओं (जिसकी एक सूची आइने अकबरी में मिलती है) में सबसे प्रमुख कश्मीर का मुहम्मद हुसैन था।जिसे अकबर ने जरीकलम की उपाधि दी थी।

उर्दू साहित्य-

उर्दू का जन्म सल्तनत काल में ही हो चुका था। प्रारंभ में इसे –जबान-ए-हिन्दवी कहा जाता था।

अमीर खुसरो पहला विद्वान था । जिसने उर्दू को अपनी कविताओं का माध्यम बनाया था।

सर्वप्रथम दक्षिण के सुल्तानों ने इस भाषा को प्रोत्साहन दिया था।

मुगल बादशाहों में मुहम्मद शाह(1719-48ई.) पहला बादशाह था, जिसे उर्दू को प्रश्रय दिया था, और इसके प्रोत्साहन के लिए दक्षिण के कवि वली को बुलाया था।

कालांतर में उर्दू को – रेख्ता भी कहा जाने लगा।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!