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मुहम्मद बिन तुगलक कौन थाः मूर्ख व पागल सुल्तान

मुहम्मद बिन तुगलक कौन था

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मुहम्मद बिन तुगलक ( 1325-1351 ) – गयासुद्दीन तुगलक की  मृत्यु के बाद जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा था।  यह सल्तनत काल का सबसे विद्वान सुल्तान था। इसने सोने का सिक्का – दीनार(200ग्रेन), चांदी के सिक्के – अदली ( 167 ग्रेन ) तथा अन्य धातुओं के भी कई  सिक्के जारी किये थे। इसे सिक्कों का राजकुमार कहा गया है।

इसने अल-सुल्तान जिल्ली अल्लाह  ( ईश्वर सुल्तान का समर्थक है) की  उपाधी धारण की।

मुहम्मद बिन तुगलक ने इंशा-ए-महरु नामक पुस्तक की रचना की।

मुहम्मद बिन तुगलक भारतीय इतिहास में पागल, सनकी, रक्तपिसासु आदि नामों से जाना जाता है।

मुहम्मद बिन तुगलक के काल में दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य सर्वाधिक विस्तृत था।

दिल्ली सल्तनत के  सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक सर्वाधिक विलक्षण व्यक्तित्व वाला शासक था। वह अरबी एवं फारसी का महान विद्वान तथा ज्ञान – विज्ञान की विभिन्न विधाओं जैसे खगोलशास्र, दर्शन, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, तर्कशास्र आदि विषयों में पारंगत था।

मुहम्मद बिन तुगलक का नाम कई संज्ञाओं से जोङा गया-

  “अंतर्विरोधों का विस्मयकारी मिश्रण ”  “रक्त का प्यासा अथवा परोपकारी “आदि।

इसके शासन काल में 1333ई. में अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता भारत आया था। सुल्तान ने उसका खूब स्वागत किया तथा दिल्ली का काजी नियुक्त किया।1342 में इब्नबतूता सुल्तान के राजदूत की हैसियत से चीनी शासक तोगन किमूर के दरबार में गया। इस यात्री ने मुहम्मद बिन तुगलक के समय की घटनाओं का अपनी पुस्तक रेहला में उल्लेख किया है।1341 ई. में चीनी सम्राट तोगनतिमुख ने अपना राजदूत भेजकर मुहम्मद बिन तुगलक से हिमाचल प्रदेश के बौद्ध मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिख अनुमति मांगी।

इब्नबतूता के अनुसार उस समय तुगलक साम्राज्य 23 प्रांतों में बंटा हुआ था। कश्मीर एवं आधुनिक बलूचिस्तान को छोङकर लगभग सारा हिन्दुस्तान दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में था।

1326-1337ई. के बीच मुहम्मद बिन तुगलक ने कई प्रशासनिक प्रयोग किए । इन प्रयोगों का क्रम बरनी, फरिश्ता, इब्नबतूता, इसामी ने इस प्रकार बताया है-

  • राजधानी परिवर्तन (1326 ई. )
  • दोआब में कर वृद्धि
  • खुरासान अभियान
  • सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
  • करांचिल अभियान ( 1337 ई. )

इन सभी योजनाओं में सबसे विवादित योजना राजधानी परिवर्तन है। 

राजधानी परिवर्तन-

  • इसने अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर दौलताबाद को बनाया। राजधानी परिवर्तन से पहले देवगिरि का नाम दौलताबाद था। राजधानी परिवर्तन के कारण अलग-2 विद्वानों ने अलग-2 बताये हैं-
    • फरिश्ता के अनुसार – “सुल्तान दिल्ली की जनता को दण्ड देना चाहता था तथा दिल्ली को जला दिया।” 
    • इब्नबतूता के अनुसार – ” दिल्ली के लोग सुल्तान को गाली भरे पत्र लिखते थे अतः उन्हें दण्डित करना चाहता था।”
    • मान्य मत –( i.)मंगोल आक्रमण से दिल्ली की सुरक्षा।

(ii.)प्रभावी प्रशासन के लिये राजधानी का केन्द्र में होना आवश्यक था।

लेकिन दिल्ली की जनता के समर्थन न देने के कारण यह योजना असफल हुई तथा इसामी के अनुसार 14 वर्षों के बाद दिल्ली पुनः बसी। जबकि अन्य इतिहासकारों के अनुसार सुल्तान ने अगले ही वर्ष दिल्ली में पुनः बसने का अधिकार दे दिया।

इस योजना का एक लाभ यह हुआ कि उत्तर भारत की संस्कृति दक्षिण भारत में भी फैली। बहुत से सूफी व मुस्लिम संत दौलताबाद में ही बस गये तथा एक समन्वित संस्कृति में योगदान दिया।

दोआब में कर वृद्धि- (गंगा – यमुना )

  • मुहम्मद बिन तुगलक ने दोआब क्षेत्र में भू राजस्व कर को बढाकर 50% कर दिया। इसी समय इस क्षेत्र के किसान अकाल से पीङित थे। किसानों का वद्रोह हुआ। इस विद्रोह को शांत करने के लिए  तथा उत्पादन बढाने के लिये मुहम्मद बिन तुगलक ने दीवान-ए-अमीर- कोही ( कृषि विभाग ) स्थापित किया। यह विभाग किसानों को उत्पादन बढाने हेतु ऋण ( तक्कावी / सोनघर ) प्रदान करता था।

इसके अलावा यह विभाग कृषि भूमि के विस्तार, कृषि क्षेत्र में शस्यावर्तन प्रणाली ( बदल-2 कर फसलों का उत्पादन ) तथा नकदी फसल उपजाने पर भी बल देना था।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अकाल सहायता के लिये एक अकाल-संहिता बनाई तथा कृषि आय का अलग रजिस्टर तैयार करवाया। यहीं से अकाल नीति प्रारंभ हुई।

इस सब के बावजूद किसानों का विद्रोह समाप्त नहीं हुआ। दूसरी तरफ अधिकारियों के भ्रष्टाचार के कारण यह योजना असफल हुई तथा 3 साल में ही कृषि सुधार के लिये 70 लाख टंका ऋण बांटा गया तथा कृषि सुधार योजना बंद कर दी गयी।

खुरासान अभियान ( मंगोल क्षेत्र )-

  • इस योजना का उद्देश्य निम्नलिखित था-
    • मंगोल आक्रमण की समस्या का समाधान करना।
    • साम्राज्य विस्तार के साथ-2 राज्य की आय को बढाना।

इस अभियान के लिये सुल्तान ने 1 लाख से अधिक सैनिकों की भर्ती करी उन्हें प्रशिक्षण दिया तथा 1 साल का अग्रिम वेतन सैनिकों को दिया। इसी दौरान खुरासान में राजनैतिक परिस्थितियां बदल गई अतः सुल्तान ने खुरासान अभियान की योजना को रद्द कर दिया और भर्ती किये  सैनिकों को बर्खास्त कर दिया तो सैनिकों नें विद्रोह हो गया।

सांकेतिक मुद्रा-( टोकन मनी का प्रचलन )

  • इस योजना का उद्देश्य इस प्रकार था- वैश्विक स्तर पर चांदी की कमि होने के कारण बाजार में चांदी के मूल्य के ताँबे ( बरनी ) , कांस्य ( इब्नबतूता ) अथवा पीतल ( इसामी ) के सिक्के जारी किये इसे ही सांकेतिक मुद्रा कहा गया, लेकिन सुल्तान द्वारा सांकेतिक मुद्रा चलाने से पूर्व प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित न करने तथा जनता व अधिकारियों के भ्रष्टाचार के कारण बाजार में नकली सिक्कों की बाढ आ गई। तथा योजना असफल हो गई।

Note :  मुहम्मद बिन तुगलक के पूर्व ईरान के शासक कैखतू खाँ तथा चीन के मंगोल शासक कुर्बला खाँ ने भी सांकेतिक मुद्रा चलाई थी लेकिन भारत में तुगलक ने ही चलाई थी।

करांचिल/ कराजल अभियान ( कुमायूं हिमाचल, उत्तराखंड) ( 1337 ई. )-

  • इस अभियान का उद्देश्य कुमायूं क्षेत्र के छोटे-2 हिन्दू शासकों को सल्तनत में मिलाना था। यह क्षेत्र सल्तनत के विद्रोहियों के लिये शरण स्थली बना हुआ था।

इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक बङी सेना भेजी। प्रारंभिक सफलता के बाद खुसरो मलिक सुल्तान की आज्ञा लिए बिना तिब्बत की ओर बढ गया, जहां रास्ता भटक जाने और स्थानीय आक्रमण के कारण संपूर्ण सेना  नष्ट हो गई।

योजनाओं की असफलता के कारण-

  • सुल्तान की योजनाओं का उद्देश्य सही व दूरगामी था, लेकिन योजनाओं को सही तरीके से लागू न करने, अधिकारियों व जनता के असहयोग व भ्रष्टाचार के कारण उद्देश्य में अच्छी होते हुये तथा भी असफल हो गयी। इससे राज्य को आर्थिक हानि हुई तथा विभिन्न वर्गों में विद्रोह भी पनपा जिसने दिल्ली सल्तनत के पतन को निर्मित कर दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने उलेमाओं को प्रशासन में हस्तक्षेप से रोका इसके अलावा उनके विशेषाधिकारों को समाप्त किया तथा उन्हें भी न्याय की परिधि में ले आया (उलेमाओं को नियंत्रित किया)।

मुहम्मद बिन तुगलक ने प्रशासन में भारतीय मुस्लमानों के साथ-2 विदेशीयों व हिन्दुओं को भी शामिल किया। इससे उलेमा नाराज हुये।

  • मुख्य हिन्दू अधिकारी-
    • रतन – राजस्व अधिकारी
    • पीरा-माली-राजस्व अधिकारी
    • साईराज, भीरूराम, धारा इक्तेदार थे।
  • प्रमुख अफगान अधिकारी-
    • मलिक मख
    • मलिक शाहू लोदी
  • विदेशी अधिकारी- इनमें विशेष रूप से खुरासानी थे। इन्हें सुल्तान प्यार से आइज्जा पुकारता था।
    • 1333 ई. में इब्नबतूता को  काजी के पद परनियुक्त किया ।

मुहम्मद बिन तुगलक जैन संतों से संपर्क रखता था-

  • जिन प्रभ सूरि
  • जम्बूजी को भूमि अनुदान दिया।
  • इसने जिन चंद्रसूरी को सम्मानित किया था।

मुहम्मद बिन तुगलक होली  के त्यौंहार में भाग लेता था।

मुहम्मद बिन तुगलक ने मुस्लिम राजस्व का सिद्धांत दिया तथा अपने सिक्कों पर अल-सुल्तान-जिल्ले-इलाही अंकित कराया। प्रारंभ में खलीफा से स्वीकृति प्राप्त नहीं की, लेकिन उलेमाओं के बढते विद्रोह को शांत करने के लिये मिश्र के फातिमी वंश के खलीफा वंशज गयासुद्दीन मुहम्मद को दिल्ली आमंत्रित किया, उसका स्वागत कर अपनी गर्दन पर पैर रखवाया।

इस सुल्तान के समय 1328ई. में एक मात्र मंगोल आक्रमण तरमाशरीन के नेतृत्व में हुआ।

बरनी के अनुसार- सुल्तान ने मेरठ के समीप तरमाशरीन को पराजित किया।

इसामी व फरिश्ता के अनुसार सुल्तान ने बङी मात्रा में उसे धन देकर भेज दिया।

मुहम्मद बिन तुगलक के समय साम्राज्य का विस्तार हुआ । 1328ई. में दक्षिण में काम्पिल्य तथा द्वारसमुद्र ( बल्लाल तृतीय) को जीत लिया। इसके साथ ही मदुरा के बङे भू-भाग को जीत लिया। उत्तर भारत में 1337ई. में नगरकोट ( हिमाचल ) पर आक्रमण  उसे जीता।

सल्तनत काल में सबसे बङा साम्राज्य विस्तार इसी का था।

मुहम्मद बिन तुगलक के समय हुये विद्रोह-

  • 1326-27ई. में सागर ( यू.पी.) के इक्तेदार का असफल विद्रोह ।
  • 1328ई. में मुल्तान, उच्छ, लाहौर के इक्तेदारों ने असफल विद्रोह किये।
  • 1335ई. में माबर ( मदुरा ) के इक्तेदार एहसानशाह ने विद्रोह किया तथा सफल रहा।
  • 1338ई. में बंगाल के इक्तेदार फखरुद्दीन ने सफल विद्रोह किया।
  • 1336ई. में हरिहर प्रथम व बक्का प्रथम ने विजयनगर को स्वतंत्र कराया।तथा विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की।
  • 1347ई. में अलाउद्दीन बहमनशाह ( हसन कांगू) ने बहमनी राज्य (महाराष्ट्र)  को स्वतंत्र कराया।तथा बहमनी राज्य की स्थापना की।
  • इसके शासनकाल में कान्हा नायक ने विद्रोह  कर स्वतंत्र वारंगल राज्य की स्थापना की।

मृत्यु-

  • मुहम्मद बिन तुगलक के जीवन के अंतिम समय में प्लैग फैला इससे बचने के लिये सुल्तान यू.पी. में कन्नौज के स्वर्गनगरी में रुका तथा 1351 ई. में सिंध अभियान में इसकी मृत्यु हो गयी।

इसकी मृत्यु पर बदायूंनी ने कहा है- “सुल्तान को प्रजा और प्रजा को सुल्तान से  मुक्ति मिली। “

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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