मध्यकालीन भारतइतिहास

मध्यकालीन भारत के इतिहास में संगीत कला

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इस्लाम धर्म द्वारा संगीत कला वर्जित था, परंतु भारतीय संगीत ने तुर्की शासकों पर प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप बलबन उसका पुत्र बुगरा खाँ, अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक जैसे सुल्तानों ने संगीत को संरक्षण प्रदान किया। जब तुर्क भारत आये तो अपने साथ ईरान एवं मध्य एशिया में पल्लवित समृद्ध अरबी संगीत परंपरा भी लाये। उनके पास कई नये वाद्य यंत्र थे जैसे रबाब और सारंगी और उनकी एक विशिष्ट संगीत पद्धति थी।

  • मध्यकालीन संगीत परंपरा के आदि संस्थापक अमीर खुसरो थे। सर्वप्रथम उन्होंने भारतीय संगीत में कव्वाली गायन को प्रचलित किया। खुसरो को तिलक, साजगिरि, सरपदा, औमन, घोर, सनम आदि रागों को प्रचलित करने के कारण उसे नायक की उपाधि प्रदान की गई थी।
  • अमीर खुसरो को सितार तथा तबले के निर्माण का भी श्रेय प्रदान किया जाता है।
  • तुर्क ( मुसलमान ) अपने साथ सारंगी आदि जैसे संगीत वाद्य लाये  परंतु यहाँ आकर उन्होंने सितार तथा तबला जैसे वाद्यों को अपनाया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत के महान संगीतज्ञ गोपाल को अपने दरबार में बुलाया तथा अमीर खुसरो को संरक्षण प्रदान किया।
  • फिरोज तुगलक के शासन काल में संगीत के एकीकरण की प्रक्रिया अनवरत चलती रही, इसी समय शास्रीय रचना रागदर्पण का फारसी में अनुवाद हुआ।
  • जौनपुर के सभी शर्की सुल्तान संगीत प्रेमी थे। हुसैन शाह शर्की ने राग ख्याल को भारतीय संगीत में सम्मिलित किया। उसके संरक्षण में संगीत शिरोमणि नामक ग्रंथ की रचना हुई।
  • हसन -ए-देहलवी को उसकी उच्च गजलों के कारण उसे भारत का सीदी कहा गया है।
  • मालवा का शासक बाज बहादुर संगीत में रुचि रखता था। ग्वालियर के राजा मानसिंह ने संगीत को संरक्षण प्रदान किया तथा उन्हीं के संरक्षण में मान कौतूहल नामक संगीत ग्रंथ की रचना हुई तथा ध्रुपद का सृजन हुआ। मान कौतूहल में मुस्लिमों द्वारा प्रचलित नयी संगीत पद्धतियाँ भी सम्मिलित की गई थी।
  • चिन्तामण नामक संगीतज्ञ को बिहारी बुलबुल की उपाधि दी गई। असम में उस समय शंकर नामक संगीतज्ञ का नाम बहुत विख्यात हुआ।
  • जौनपुर के सूफी संत पीर बोधन भी उस काल का एक महान संगीतज्ञ था।
  • गुनयाक्त-उत-मुनयास का संकलन भारतीय मुस्लिम विद्वान की भारतीय संगीत संबंधी प्रथम रचना है। यह जौनपुर के शर्की शासकों के संरक्षण में लिखी गई।
  • दक्षिण भारत के विभिन्न शासकों ने भी संगीत कला को संरक्षण प्रदान किया। बहमनी राज्य के शासकों में से फिरोजशाह और महमूद शाह तथा बीजापुर के यूसुफ आदिलशाह ने संगीत कला को विशेष संरक्षण प्रान किया।
  • सूफी संतों ने भी सामूहिक गान की परंपरा को स्वीकार करके संगीत कला को लोकप्रिय बनाने में बहुत सहयोग दिया। इस काल में धर्म निरपेक्ष तथा आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार का संगीत एक श्रेष्ठ स्थिति को प्राप्त कर सका था।
  • गजल और कव्वाली दोनों की गायन शैलियाँ सुल्तानों और सूफियों में समान रूप से प्रचलित थी। गजल का संग्रह दीवान कहलाता था।
  • मुहम्मद तुगलक भी बङा संगीत प्रेमी था। कहा जाता है कि उसके दरबार में बारह सौ गायक थे जो गाते भी थे और गाने की शिक्षा भी देते थे।
  • लोदी वंश के राज्यकाल में भारतीय संगीत ने पुनः करवट ली। इसी काल में जनता में संगीत के प्रति काफी उत्साह था। इसी काल में अनेक मुस्लिम कलाकार पैदा हुए।
  • बंगाल के चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन-शैली को जन्म दिया जो उत्तर भारत में भी लोकप्रिय हो गई।

Reference : https://www.indiaolddays.com/music-of-medieval-indian-history/

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