आधुनिक भारतइतिहास

मुस्लिम लीग एवं पाकिस्तान की माँग

खिलाफत और असहयोग आंदोलन के समय हिन्दुओं और मुसलमानों में जो एकता देखने को मिली थी, वह एकता साम्प्रदायिकता में बदल चुकी थी।

1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए महान उर्दू कवि इकबाल ने कहा कि उत्तर पश्चिम भारत का संगठित मुस्लिम राज्य के रूप में निर्माण ही मुझे मुसलमानों की अंतिम नियति प्रतीत होती है।

1933 से 35 के बीच कैम्ब्रिज(इंग्लैण्ड) में पढने वाले चौधरी रहमत अली नामक एक मुस्लिम छात्र ने एक पर्चा जारी कर पृथक राज्य पाकिस्तान की परिकल्पना को जन्म दिया।

रहमत अली द्वारा परिकल्पित पाकिस्तान में पंजाब अफगान प्रांत,कश्मीर,सिंध और बलूचिस्तान को शामिल होना था।

मुस्लिम लीग ने 1938-39 के बीच पृथक राज्य से संबंधित आये कई प्रस्तावों की जांच के लिए 1939 में एक समिति का गठन किया।

जांच समिति के सदस्यों में फजल हसन और हुसैन कादरी शामिल थे। इन लोगों ने अलीगढ नगर योजना तैयार कर पाकिस्तान, बंगाल, हैदराबाद तथा हिन्दुस्तान नामक चार पृथक राज्य स्थापित करने का सुझाव दिया।

1937 के चुनावों में लीग की बुरी पराजय से व्यथित जिन्ना ने गांधी पर हिन्दू राज्य स्थापित करने का आरोप लगाकर साम्प्रदायिकता को भङकाया, तथा द्विराष्ट्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

अब तक जिन्ना मुस्लिम लीग के एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभर चुके थे, उन्होंने अपने एक भाषण में कहा कि हम न तो अंग्रेजों को और न ही गांधी को मुसलमानों पर शासन करने देंगे। हम स्वतंत्र होना चाहते हैं।

22-23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पहली बार पृथक पाकिस्तान राज्य के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया। परंतु प्रस्ताव में पाकिस्तान शब्द का जिक्र नहीं था।

मुस्लिम लीग के इस अधिवेशन(1940) की अध्यक्षता मुहम्मद अली जिन्ना ने की थी।

पृथक पाकिस्तान की मांग को पहली बार आंशिक मान्यता 1942 के क्रिप्स प्रस्तावों में मिली।प्रस्ताव में व्यवस्था थी कि ब्रिटिश भारत का कोई राज्य यदि भारतीय गणराज्य से अलग होना चाहे तो उसे आजादी होगी।

सरकार की बांटो और राज करो की नीति ने पृथक पाकिस्तान की मांग को संरक्षण प्रदान किया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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