इतिहासमध्यकालीन भारत

हिन्दू ( भारतीय ) इस्लामी संस्कृति

हिन्दू इस्लामी संस्कृति शब्द मिश्रित या समन्वित संस्कृति के विकास का सूचक है, जो मध्यकालीन भारत और इस्लामी जगत की सांस्कृतिक परंपराओं के सम्पर्क  तथा अन्योन्याश्रित संबंधों और  सम्मिलन के फलस्वरूप विकसित हुई थी।यह संबंध अरब के उन व्यापारियों के माध्यम से स्थापित हुए थे जो भारत के विदेश व्यापार के प्रमुख स्रोत थे। हिन्दू धर्म तथा इस्लाम की सांस्कृतिक परंपराओं के समेकन से मिश्रित या हिन्दू इस्लामी संस्कृति का जन्म हुआ।

  • मध्यकालीन हिन्दू तथा मुस्लिम संतों ने दो सम्प्रदायों के बीच भाई चारा बनाएं रखने के अपने प्रयासों द्वारा सांस्कृतिक विकास में अत्यधिक योगदान दिया।
  • विद्वता एवं साहित्य के क्षेत्र में भी दोनों सम्प्रदाय एक दूसरे से प्रभावित हुए। मुस्लिम विद्वानों ने हिन्दू दर्शन और विज्ञान जैसे – योगशास्र तथा वेदांत,चिकित्सा शास्र तथा ज्योतिष का अध्ययन किया, तो हिन्दुओं ने उनसे भूगोल, अंकगणित तथा रसायन शास्र जैसे विषयों का अध्ययन किया।
  • पारस्परिक भाषा विषयक आदान – प्रदान हिन्दी के विकास में परिलक्षित हुआ जिसके आधार पर अंततः उर्दू का जन्म हुआ।
  • अमीर खुसरो ने दिल्ली को हजरत-ए-दिल्ली ( पवित्र दिल्ली  ) तथा दूसरा स्वर्ग और न्याय का एक महान केन्द्र कहते हुए अभिवादन किया।
  • समकालीन इतिहासकारों के अनुसार हिन्दू राजकीय सेवाओं में सेवारत थे और महत्त्वपूर्ण पदों पर थे। सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने श्रीराज नामक हिन्दू को अपना वजीर नियुक्त किया था।

भाषा और साहित्य-

  • दिल्ली सल्तनत का काल साहित्यिक दृष्टि से मध्यम था। इस समय फारसी और संस्कृत  भाषा के अतिरिक्त हिन्दी, उर्दू और प्रायः सभी प्रांतीय भाषाओं में ग्रंथ लिखे गये।
  • प्रांतीय भाषाओं के विकास में भक्ति मार्ग के संतों का अत्यधिक योगदान है।

संस्कृत साहित्य- 

संस्कृत साहित्य को हिन्दू शासकों मुख्यतया विजयनगर, वारंगल और गुजरात के शासकों से संरक्षण प्राप्त हुआ।संस्कृत इस काल में उच्च वर्ग की भाषा रही। धार्मिक एवं धर्म निरपेक्ष रचनाओं का सृजन बङी मात्रा में हुआ। इस युग में संस्कृत ग्रंथों में मौलिकता का अभाव था। अधिकांश पुस्तकें प्राचीन ग्रंथों की पुनरावृत्ति टीकाएं अथवा भाषाओं का आधार लेकर लिखी गयी।

  • रामानुज ने ब्रह्मसूत्र पर टीकाएं लिखी तथा पार्थसारथी ने काव्य मीमांसा पर ग्रंथ लिखे।जैनों ने भी संस्कृत के विकास में योगदान दिया हेमचंद्र सूरि उनमें प्रमुख हैं।
  • प्रसिद्ध फारसी कवि जामी द्वारा लिखित युसुफ और जुलेखा की प्रेम कहानी का फारसी से संस्कृत में अनुवाद किया गया।

प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञानेश्वर की रचना मिताक्षरा( हिन्दू कानूनी ग्रंथ )।
  2. जयदेव की रचना गीतगोविन्द
  3. जयसिंह सुरि की रचना हम्मीर मद मर्दन
  4. विद्यापति की रचना दुर्गाभक्ति तरंगिणी
  5. जयचंद्र की रचना हम्मीर काव्य
  6. विद्यारण्य की रचना शंकर विजय
  7. गंगाधर की रचना गंगाधर प्रताप विलास
  8. माधव की रचना नकासुर विजय

फारसी साहित्य-

  • तुर्की सुल्तान फारसी साहित्य में रुचि रखते थे। जबकि मुसलमानों का अधिकांश साहित्य अरबी में लिखा गया था जो पैगंबर की भाषा थी।
  • फारसी विकास के लिए लाहौर पहला केन्द्र था। दिल्ली सुल्तानों ने इस भाषा के विकास के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएं खोली तथा पुस्तकालय स्थापित किये। सबसे महत्त्वपूर्ण राजकीय पुस्तकालय जलालुद्दीन द्वारा स्थापित कराया गया जिसका अध्यक्ष अमीर खुसरो था। बलबन का पुत्र मुहम्मद तथा अलाउद्दीन ने अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान अमीर खुसरो तथा मीर हसन देहलवी को संरक्षण प्रदान किया। मुहम्मद बिन तुगलक के समय में बदरुद्दीन मुहम्मद फारसी का श्रेष्ठ कवि था।
  • अमीर खुसरो को फारसी कवियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।
  • फिरोज तुगलक ने स्वयं की आत्म कथा लिखी तथा इतिहासकार बरनी और अफीफ उसके संरक्षण में थे।
  • लोदी शासक सिकंदर लोदी, बहमनी शासक ताजुद्दीन फिरोजशाह तथा बहमनी वजीर महमूद गवाँ  का नाम भी विद्वानों में माना जाता है।
  • आयुर्वेद ग्रंथ का फारसी अनुवाद फरहंगे सिकंदरी तथा गान विद्या का एक श्रेष्ठ ग्रंथ लज्जत – ए – सिकंदरी सिकंदर लोदी के शासन काल में हुआ।
  • फिरोजशाह तुगलक के समय में चिकित्सा और संगीत शास्र पर संस्कृत की पुस्तकों का फारसी में अनुवाद हुआ।
  • जिया नक्शवी पहला व्यक्ति था जिसने संस्कृत कथाओं की एक श्रृंखला का फारसी में अनुवाद किया था। जो पुस्तक तूतीनामा के नाम से प्रसिद्ध है, उसकी रचना मुहम्मद बिन तुगलक के समय में हुई।

संगीत कला-

  • इस्लाम धर्म द्वारा संगीत कला वर्जित थी, परंतु भारतीय संगीत ने तुर्की शासकों पर प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप बलबन उसका पुत्र बुगरा खाँ, अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक जैसे सुल्तानों ने संगीत को संरक्षण प्रदान किया।
  • जब तुर्क भारत आये तो अपने साथ ईरान एवं मध्य एशिया में पल्लवित समृद्ध अरबी संगीत परम्परा भी लाये। उनके पास कई नये वाद्य यंत्र थे जैसे रबाब और सारंगी तथा उनकी एक विशिष्ट संगीत पद्धति  थी। मध्यकालीन संगीत परंपरा के आदि संस्थापक अमीर खुसरो थे।

चित्रकला-

मानवीय या अन्य किसी जीवित प्राणी के चित्र रूढिवादी मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं थे। अतः प्रारंभिक मुस्लिम सुल्तानों ने चित्रकला के प्रति रुचि नहीं दिखाई। सल्तनतकालीन चित्रकला के प्रचलन का सबसे प्रारंभिक उल्लेख बैहाकी द्वारा लिखित गजनवियों के इतिहास में मिलता है। इल्तुतमिश के समय में चीनी चित्रकार दिल्ली आये थे। इसकी पुष्टि इसामी के फतूह-उस-सलातीन से होती है।

स्थापत्य कला-

कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में हिन्दू इस्लामी संस्कृतियों के मध्य समन्वय अधिक स्पष्टतः परिलक्षित होता है। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण से पूर्व पश्चिम एवं मध्य एशिया, उत्तर अफ्रीका एवं दक्षिण -पश्चिम यूरोप की कला शैलियों की विशेषताओं को मिलाकर अपनी एक विशिष्ट स्थापत्य कला शैली का विकास कर लिया था।

Reference : htt://www.indiaolddays/muslim-sanskriti

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