इतिहासगुलाम वंशदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

दिल्ली सल्तनत में नासिरुद्दीन महमूद का योगदान

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नासिरुद्दीन महमूद (1246-1266 ई.)-

नासिरूद्दीन महमूद इल्तुतमिश का पोता तथा एक तुर्की शासक था, जो दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना। यह भी गुलाम वंश से था।यह मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था तथा खाली समय में कुरान की नकल करना उसकी आदत थी।

बलबन ने षड़यंत्र के द्वारा 1246 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन मसूद शाह को हटाकर नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया ये एक ऐसा सुल्तान हुआ जो टोपी सीकर अपनी जीविका का निर्बहन करता था ।

महमूद के शासनकाल में समस्त शक्ति बलबन के हाथों में थी।प्रारंभ में बलबन चहलगामी का सदस्य था लेकिन धीरे-2 बलबन ने अपनी शक्ति का विस्तार किया तथा 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से कर दिया। सुल्तान ने बलबन को उलुग खाँ की उपाधि प्रदान की और सेना पर पूर्ण नियंत्रण के साथ नायब-ए -ममलिकात का पद दिया।

नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में भारतीय मुसलमानों का एक अलग दल बन गया था जो बलबन का विरोधी था। इनका नेता इमामुद्दीन रिहान था। रिहान को एक धर्मच्युत (धर्म परिवर्तित करके मुसलमान बनाया गया  था ), शक्ति का अपहरणकर्त्ता, षङयंत्रकारी आदि कहा गया है।

बलबन की शक्ति में वृद्धि को देखकर चहलगामी के एक सदस्य किचलू खाँ/ किश्लू खाँ ने बलबन के विरुद्ध षङयंत्र शुरु कर दिया। तथा सुल्तान को भङकाकर बलबन को नायब के पद से हटा दिया तथा दिल्ली से दूर भेज दिया।

बलबन ने सुल्तान की आज्ञा का पालन किया तथा दिल्ली से दूर चला गया। दूसरी तरफ किशलू खाँ ने रिहान जो वकील-ए-दर(सुल्तान के राजमहल की सुरक्षा का प्रमुख ) के पद पर था, को नायब -ए-ममलिकात का पद प्रदान किया तथा चहलगामी ने इसका विरोध किया। रिहान की हत्या करवा दी।

इन सभी कार्यों के बाद बलबन को फिर से नायब-ए-ममलिकात  बनाया गया। तथा सारी शक्तियाँ फिर बलबन ने अपने हाथों में ले ली।

नासिरुद्दीन महमूद के काल में बलबन ने ग्वालियर, रणथंभौर, मालवा तथा चंदेरी के राजपूतों का दमन किया।

नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु-

1266 ई.में सुल्तान की मृत्यु हो गई। इसकी मृत्यु के बारे में अलग-2 विद्वानों ने अलग-2 मत प्रस्तुत किये हैं-

  • इब्नबतूता के अनुसार बलबन ने सुल्तान की हत्या करवायी।
  •  तारीख ए मुबारकशाही  के लेखक याहिया बिन सरहिंदी के अनुसार सुल्तान की मृत्यु बिमारी से हुई।

इब्नबतूता और याहिया बिन सरहिंदी दोनों ही विद्वान नासिरुद्दीन महमूद के समकालीन न होकर बाद के काल के हैं। 

नासिरुद्दीन महमूद के समकालीन लेखक-

मिनहास उस सिराज

  • मिनहास उस सिराज ने सुल्तान की मृत्यु का वर्णन नहीं किया क्योंकि मिनहास के ग्रंथों में 1260 ई. तक का ही वर्णन मिलता है।
  • मिनहाजुद्दीन सिराज ने तबकात ए नासिरी  उसे ही समर्पित की है।
  • मिनहाजुद्दीन सिराज नासिरुद्दीन महमूद के समय मुख्य काजी के पद पर था जो बाद में षङयंत्र द्वारा उसी के शासनकाल में हराया गया।

जियाउद्दीन बरनी-

  • बरनी ने फतवां ए जहांदरी तथा फतवां ए जहांदरी नामक प्रमुख ग्रंथों की रचना की थी।
  • बरनी के ग्रंथों में भी नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु का वर्णन नहीं मिलता क्योंकि बरनी ने 1266 ई. के बाद से लिखना प्रारंभ किया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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