1857 की-क्रांतिआधुनिक भारतइतिहास

1857 के विद्रोह का स्वरूप

1857 के विद्रोह का स्वरूप

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

1857 के विप्लव का स्वरूप क्या था, इस प्रश्न पर विद्वान एकमत नहीं हैं। 1857-58 में कुछ अंग्रेजों की यह मान्यता थी कि विप्लव जनसाधारण द्वारा अंतोष अभिव्यक्ति का एक उदाहरण था, किन्तु अधिकांश ब्रिटिश लेखकों ने इसे मात्र सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी है। ईसाई मिशनरी तथा आध्यात्मिक विचारधारा के लोग ईश्वर द्वारा भेजी गई विपत्ति समझते थे, क्योंकि कंपनी प्रशासन ने भारतीय प्रजा को ईसाई नहीं बनाया। कुछ अंग्रेज लेखकों ने इसे हिन्दू-मुसलमानों का ब्रिटिश सत्ता को उखाङ फेंकने का षड्यंत्र भी बताया है। इन विचारों के ठीक विपरीत 1909 में विनायक दामोदर सावरकर(Vinayak Damodar Savarkar) ने इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम(First War of Independence) कहा। अतः इस विप्लव के स्वरूप के बारे में आज भी मतभेद विद्यमान है।

सैनिक विद्रोह-

सर जॉन सीले के अनुसार 1857 की क्रांति पूर्णतः अराष्ट्रीय तथा स्वार्थी सैनिकों का विद्रोह था, जिसका न कोई देशी नेतृत्व था और न जनता का सहयोग। सर जॉन लारेन्स ने इसे भी केवल सैनिक विद्रोह बताया है और इसका प्रमुख कारण चर्बी वाले कारतूस बताया है। पी.ई. राबर्ट्स भी इसे विशुद्ध सैनिक विद्रोह मानते थे। वी. ए. स्मिथ ने लिखा है कि यह एक शुद्ध रूप से सैनिक विद्रोह था, जो संयुक्त रूप से भारतीय सैनिकों की अनुशासनहीनता और अंग्रेज सैनिक अधिकारियों की मूर्खता का परिणाम था। इस प्रकार लगभग सभी विदेशी इतिहासकार इसे एक सैनिक विद्रोह मानते हैं।

1957 में स्वतंत्र भारत में 1857 की क्रांति की पहली शताब्दी मनाई गई और इस अवसर परर सरकार की ओर से तथा अन्य शोधकर्ताओं द्वारा इस विप्लव पर पुनः वचार किया गया। सुरेन्द्रनाथ सेन ने अपनी पुस्तक एटीन फिफ्टी सेवन 1857 में लिखा हा, आंदोलन एक सैनिक विद्रोह की भाँति आरंभ हुआ,किन्तु केवल सेना तक सीमित नहीं रहा। सेना ने भी पूरी तरह विद्रोह में भाग नहीं लिया। उन्होंने यह भी लिखा है कि इस विप्लव को मात्र सैनिक विप्लव कहना गलत होगा। शशिभूषण चौधरी ने भी इसे सामान्य जनता का विद्रोह बताया। डॉ.आर.सी.मजूमदार ने इसे सैनिक विप्लव बताया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कुछ क्षेत्रों में जनसाधारण ने इसका समर्थन किया था। नाथूराम खड्गावत ने राजस्थान में हुए विप्लव पर पर्याप्त प्रकाश डालते हुए बताया कि यहाँ विप्लव में साधारण जनता ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में भाग लिया।

मुस्लिम सत्ता की पुनः स्थापना का प्रयास-

सर जेम्स आउटरम का मत है कि यह मुसलमानों के षड्यंत्र का परिणाम था,जो हिन्दुओं की शक्ति के बल पर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे। स्मिथ ने भी इसका समर्थन किया है। इस दृष्टि से यह विप्लन भारतीय मुसलमानों का षड्यंत्र था, जो पुनः मुगल सम्राट बहादुरशाह के नेतृत्व में मुस्लिम सत्ता स्थापित करना चाहते थे। विद्रोह के काफी समय बाद जीनत महल ने भी देशी शासकों को पत्र लिखे, जिसमें मुगल सम्राट की अधीनता में अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने की बात कही थी।

सामंतवादी प्रतिक्रिया-

इतिहासकार मेलीसन ने इसे जागीरदारों द्वारा अपने शासकों के विरुद्ध सामंती प्रतिक्रिया कहा है। अंग्रेजों की देशी रियासतों के प्रति नीति के फलस्वरूप अनेक सामंत अपनी जागीरों से हाथ धो बैठे थे। इन लोगों में अंग्रेजों के प्रति घृणा व क्रोध फूट पङना स्वाभाविक था। दूसरी ओर अंग्रेजों ने देशी शासकों से मिलकर सामंतों के विशेषाधिकारों पर प्रहार किया तथा उनकी प्रतिष्ठा को गिराया। ऐसे सामंतों ने विप्लवकारियों का साथ देकर विप्लव को फैलाने में योगदान दिया। किन्तु देश के मुठ्ठी भर सामंतों द्वारा संघर्ष में भाग लेने से पूरे विप्लव को सामंतवादी प्रतिक्रिया का रूप नहीं दिया जा सकता।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम-

सर्वप्रथम श्री सावरकर ने इस विप्लव को राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए आयोजित युद्ध कहा। पट्टाभिसीतारमैया के अनुसार भी 1857 का महान आंदोलन भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था। अशोक मेहता ने भी अपनी पुस्तक द ग्रेट रिवोल्ट में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि यह एक राष्ट्रीय विद्रोह था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी लिखा है कि यह केवल सैनिक विद्रोह शीघ्र ही जन-विद्रोह के रूप में परिणित हो गया था। बेंजेमिन डिजरैली ने भी ब्रिटिश संसद में इसे एक राष्ट्रीय विद्रोह कहा था। सुरेन्द्रनाथ सेन लिखते हैं कि जो युद्ध धर्म के नाम पर प्रारंभ हुआ था, स्वातंत्र्य युद्ध में जाकर समाप्त हुआ, क्योंकि इस बात में कोई संदेह नहीं कि विद्रोही विदेशी शासन से मुक्ति चाहते थे और वे पुनः पुरातन शासन व्यवस्था स्थापित करने के इच्छुक थे, जिनका प्रतिनिधित्व दिल्ली का बादशाह करता था।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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