मध्यकालीन भारतइतिहासमुगल काल

नूरजहाँ गुट क्या था

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नूरजहाँ अलीकुली खाँ (शेर अफगन) की विधवा थी। जिसे कुछ इतिहासकारों के अनुसार जहाँगीर ने मरवा दिया था।जब नूरजहाँ 17 वर्ष की अवस्था में थी तो नूरजहाँ का विवाह ‘अलीकुली‘ नामक एक ईरानी नवयुवक से हुआ था, जिसे जहाँगीर के राज्य काल के प्रारम्भ में शेर अफ़ग़ान की उपाधि और बर्दवान की जागीर दी गई थी। 1607 ई. में जहाँगीर के दूतों ने शेर अफ़ग़ान को एक युद्ध में मार डाला।नूरजहाँ के बचपन का नाम  मेहरुन्निसा था। मेहरून्निसा  को पकड़ कर दिल्ली लाया गया।

मेहरुन्निसा को जहाँगीर ने सर्वप्रथम नौरोज़ त्यौहार के अवसर पर देखा और उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर जहाँगीर ने मई, 1611 ई. में उससे विवाह कर लिया।जहाँगीर ने मेहरुन्निसा को नूरमहल एव नूरजहाँ की उपाधि दी थी। 1613 ई. में नूरजहाँ को ‘‘बादशाह बेगम’ बनाया गया।

नूरजहाँ की कूटनीति-

नूरजहाँ के पिता एत्मादुद्दोला और भाई आसफ़ ख़ाँ को मुग़ल दरबार में उच्च पद प्रदान किया गया था और उसकी भतीजी का विवाह, जो आगे चलकर मुमताज़ के नाम से प्रसिद्ध हुई, शाहजहाँ से हो गया। उसने पहले पति से उत्पन्न अपनी पुत्री का विवाह जहाँगीर के सबसे छोटे पुत्र शहरयार से कर दिया और क्योंकि उसकी जहाँगीर से कोई संतान नहीं थी, अत: वह शहरयार को ही जहाँगीर के उपरांत राज सिंहासन पर बैठाना चाहती थी। नूरजहाँ के ये सभी कार्य उसकी कूटनीति का ही एक हिस्सा थे।

शाहजहाँ का विद्रोह-

1620 ई. के अन्त तक नूरजहाँ के सम्बन्ध ख़ुर्रम (शाहजहाँ) से अच्छे नहीं रहे, क्योंकि नूरजहाँ को अब तक यह अहसास हो गया था कि शाहजहाँ के बादशाह बनने पर उसका प्रभाव शासन के कार्यों पर कम हो जायगा। इसलिए नूरजहाँ ने जहाँगीर के दूसरे पुत्र ‘शहरयार’ को महत्व देना प्रारम्भ कर किया। चूंकि शहरयार अल्पायु एवं दुर्बल चरित्र का था, इसलिए उसके सम्राट बनने पर नूरजहाँ का प्रभाव पहले की तरह शासन के कार्यों में बना रहता। इस कारण से शेर अफ़ग़ान से उत्पन्न अपनी पुत्री ‘लाडली बेगम’ की शादी 1620 ई. में शहरयार से कर उसे 8000/4000 का मनसब प्रदान किया।

शाहजहाँ को जब इस बात का अहसास हुआ कि नूरजहाँ उसके प्रभाव को कम करना चाह रही है, तो उसने जहाँगीर द्वारा कंधार दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीतने के आदेश की अवहेलना करते हुए 1623 ई. में ख़ुसरो ख़ाँ का वध कर दक्कन में विद्रोह कर दिया। उसके विद्रोह को दबाने के लिए नूरजहाँ ने आसफ़ ख़ाँ को न भेज कर महावत ख़ाँ को शहज़ादा परवेज़ के नेतृत्व में भेजा। उन दोनों ने सफलतापूर्वक शाहजहाँ के विद्रोह को कुचल दिया। शाहजहाँ ने पिता जहाँगीर के समक्ष आत्समर्पण कर दिया और उसे क्षमा मिल गई। जमानत के रूप में शाहजहाँ के दो पुत्रों दारा शिकोह और औरंगज़ेब को बंधक के रूप में राजदरबार में रखा गया। 1625 ई. तक शाहजहाँ का विद्रोह पूर्णतः शान्त हो गया।

नूरजहाँ गुट-

नूरजहाँ से संबंधित सबसे महत्त्वपूर्ण घटना उसके द्वारा बनाया गया जुन्टा गुट था। जिसमें उसका पिता एतमादुद्दौला, माता अस्मत बेगम, भाई आसफ खाँ तथा शाहजादा खुर्रम  सम्मिलित था।

नूरजहाँ के जन्म एवं प्रारंभिक जीवन के बारे में जानकारी मुअतमिद खाँ द्वारा लिखित – इकबाल नामा-ए-जहाँगीरी से मिलता है। उसके बचपन का नाम मेहरुन्निसा था।

नूरजहाँ के पिता गयासबेग ( जिसे जहाँगीर ने ऐतमादुद्दौला की उपाधि दी थी) एवं माता अस्मत बेगम फारस के रहने वाले थे, जो अकबर के काल में मुगल दरबार में आये थे।

नूरजहाँ के चरित्र की मुख्य विशेषता –

उसकी अपरिमित महत्वाकांक्षा थी। नूरजहाँ जहाँगीर के साथ झरोखा दर्शन देती थी। सिक्कों पर बादशाह के साथ उसका भी नाम अंकित होता था। इसके अतिरिक्त शाही आदेशों पर बादशाह के साथ उसका भी हस्ताक्षर होता था।

नूरजहाँ ने भी श्रृंगार – प्रसाधनों और जेवरों में सुरुचिपूर्ण परिवर्तन किये।

नूरजहाँ 2 लाख रुपये प्रति वर्ष की पेंशनभोगी बनकर अपना अंतिम जीवन लाहौर में बिताया और 1645ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।जहाँगीर के जीवन काल में नूरजहाँ सर्वशक्ति सम्पन्न रही, किंतु 1627 ई. में जहाँगीर की मृत्यु के उपरांत उसकी राजनीतिक प्रभुता नष्ट हो गई। अपनी मृत्यु पर्यन्त तक का शेष जीवन उसने लाहौर में बिताया। उसकी कलात्मक रुचि का प्रमाण उस भव्य एवं आकर्षक मक़बरे में उपलब्ध है, जिसे उसने अपने पिता एत्मादुद्दोला के अस्थि अवशेषों पर आगरा में बनवाया था। कलाविदों के अनुसार यह मक़बरा बारीक और साज-सज्जा की दृष्टि से अनुपम है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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