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पाबना विद्रोह(1873-76)का इतिहास

पाबना विद्रोह

1870 से 1880 के बीच का दशक बंगाल के लिए किसान आंदोलनों का दशक था।

पावना क्षेत्र जो पटसन की कृषि हेतु प्रसिद्ध है, के 50 प्रतिशत से अधिक किसानों को 1850 के अधिनियम दस के द्वारा जमीन पर कब्जे का अधिकार तथा कुछ सीमा तक लगान में वृद्धि के लिए संरक्षण प्राप्त था।पावना के किसानों को अधिनियम 10 के द्वारा मिली सुविधाओं के बावजूद भी जमींदारों को शोषण का शिकार होना पङता था। 1793 से 1882 के बीच लगान में करीब 7गुना वृद्धि  तथा भूमि की नाप-जोख हेतु छोटे मापों के प्रयोग जैसी ज्यादतियों का किसानों को समाना करना पङता था।

जमीदारों के अत्याचार के विरुद्ध 1873 में पावना जिले के यूसुफशाही परगने में एक  एक किसान संघ की स्थापना हुई। इस संघ ने किसानों को संगठित करने,लगान न देने,जमींदारों के विरुद्ध मुकदमें के खर्च के लिए चंदा एकत्र करने जैसे कार्य किये।

साहूकारों और महाजनों के चंगुल से बचने के लिए 1874 में सिरूर तालुका के करडाह गांव में विद्रोह प्रारंभ हुआ, जो देखते-2 छः तालुकों के 33 स्थानों तक फैल गया।आंदोलनकारियों का उद्देश्य था, साहूकारों के साथ व्यक्तिगत हिंसा का प्रयोग केवल तभी हुआ जब वे दस्तावेजों को बचाना चाहे।

12मई,1875 को भीमरथी तालुका के सूपा कस्बे में यह आंदोलन हिंसक हो गया, शेष स्थानों पर यह आंदोलन अहिंसक रहा।

दक्कन विद्रोह के समय महाजनों का सामाजिक बहिष्कार किया गया। जिसके अंतर्गत उनकी दुकानों से सामान खरीदने उनके खेत को जोतने आदि पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

बुलोटीदार जिसे गांव की प्रजा भी कहा जाता था में नाई,धोबी,बढई,मोची तथा लुहार शामिल थे को जमींदारों के कार्य करने से रोका गया।

दक्कन विद्रोह के समय सामाजिक बहिष्कार का आंदोलन पूना,अहमदाबाद,शोलापुर एवं सतारा जिले तक फैला था।

सरकार द्वारा इस विद्रोह के कारणों और प्रकृति को जांचने के लिए नियुक्त आयोग ने गरीबी और इसके परिणामस्वरूप किसानों की ऋणग्रस्तता को ही विद्रोह का एकमात्र कारण बताया।

आयोग की सिफारिश पर सरकार द्वारा पारित कृषक राहत अधिनियम 1873 व्यवस्था दी गई कि सिविल प्रोसीड्यर के क्रियान्वयन के अंतर्गत किसानों की जमीनों को जब्त नहीं किया जायेगा।

पावना के अलावा यह विद्रोह ढाका,मैमन सिंह,बिदुरा,बाकरगंज,फरीदपुर,बोगरा और राजशाही में भी फैल गया।

पावना विद्रोह की प्रमुख विशेषता थी,इसका कानून के दायरे में रहना।किसानों की यह लङाई केवल जमींदारों से थी।

आंदोलनकारियों का नारा था कि हम सिर्फ महारानी की रैय्यत होना चाहते हैं।

सरकार ने भारतीय दंड संहिता के दायरे में ही इस आंदोलन को दबाने का प्रयास किया। अंग्रेज लेफ्टिनेंट गवर्नर कैंपबेल ने पावना विद्रोह का समर्थन किया।

इस आंदोलन की एक विशेषता यह भी थी कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलनरत रहें, सांप्रदायिक सौहार्द का यह एक अनूठा उदाहरण था।

बंगाल के बुद्धिजीवी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय तथा आर.सी.दत्त ने पावना आंदोलन का समर्थन किया।

इण्डियन एसोसिएशन के सदस्य सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, आनंद मोहन बोस,द्वारकानाथ गांगुली आदि ने किसानों की रक्षा हेतु अभियान चलाया।

पावना आंदोलन के प्रमुख नेता ईशान चंद्र राय तथा शंभुपाल थे।

Reference :https://www.indiaolddays.com/

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