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जैन धर्मः 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ कौन थे

जैन धर्म  के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ  का जन्म वाराणसी में हुआ। इनके पिता का नाम अश्वसेन तथा माता का नाम वामादेवी था। राजा अश्वसेन वाराणसी के राजा थे।

  • जैन पुराणों के अनुसार तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को नौ जन्मों का वरण करना पङा था।पूर्व जन्म के संचित पुण्यों तथा 10वें जन्म के तप के फलस्वरूप वे 23 वें तीर्थंकर बने।
  • दिगंबर धर्म के अनुयायियों के अनुसार पार्श्वनाथ बाल ब्रह्मचारी थे, जबकि श्वेतांबर अनुयायियों के एव वर्ग के अनुसार तो उनकी बात का समर्थन करता है, लेकिन दूसरा सम्प्रदाय नहीं करता तथा पार्श्वनाथ को विवाहित मानता है।
  • पार्श्वनाथ का बचपन राजसी ठाठ-बाट में गुजरा। 16 वर्ष की आयु में वे एक दिन वन भ्रमण कर रहे थे तभी उनकी दृष्टि एक तपस्वी पर पङी,जो कुल्हाङी से एक वृक्ष पर प्रहार कर रहा था। ऐसा दृश्य देख कर पार्श्वनाथ अचानक चीख उठे तथा बोले- ठहरो , उन निरीह जीवों को मत मारो।उस तपस्वी का नाम महीपाल था।
  • महीपाल अपनी पत्नी की मृत्यु के दुःख में साधु बन गया था। उसने क्रोध से पार्श्वनाथ की ओर देखा तथा कहा-” किसे मार रहा हूँ मैं ? देखते नहीं, मैं तो तप के लिए लकङी काट रहा हूँ।”
  • पार्श्वनाथ ने व्यथित स्वर में  कहा – लेकिन उस वृक्ष पर नाग-नागिन का जोङा है। महीपाल ने तिरस्कारपूर्वक कहा-“तू क्या त्रिकादर्शी है लङके”- और फिर से वृक्ष पर वार करने लगा। तभी वृक्ष के चिरे हुए तने से छटपटाता हुआ, रक्त से सना हुआ नाग- नागिन का जोङा बाहर निकला।
  • एक बार तो क्रोधित महीपाल उन्हें देखकर डर गया, लेकिन फिर वह धूर्ततापूर्वक हंसने लगा।तभी पार्श्वनाथ  ने नाग-नागिन को एक मंत्र सुनाया, जिससे उनकी मृत्यु पीङा शांत हो गई तथा अगले जन्म में नाग जाति के इंद्र-इंद्राणी धरणेन्द्र व पद्मावती बने एवं मरणोपरांत महीपाल सम्बर नामक दुष्ट देव के रूप में जन्मा।
  • पार्श्वनाथ को इस घटना से संसार के जीवन – मृत्यु से विरक्ति हो गई। उन्होंने ऐसा कुछ करने की ठानी जिससे जीवन – मृत्यु के बंधन से हमेशा के लिए मुक्ति मिल सके।
  • जब वे 30 वर्ष के हुए तो उनके जन्म दिवस पर कई राजाओं ने उपहार भेजे। अयोध्या के दूत उपहार देने लगा तो पार्श्वनाथ ने उससे अयोध्या के वैभव के बारे में पूछा।
  • उसने कहा “जिस नगरी में ऋषभदेव, अजित नाथ, अभिनंदन नाथ, सुमित नाथ, अनंनत नाथ जैसे पांच तीर्थंकरों ने जन्म लिया हो उसकी महिमा का क्या कहना ?” वहां तो पग-2 पुण्य बिखरा पङा है।
  • इतना सुनते ही पार्श्वनाथ को अपने पूर्व नौ जन्मों का स्मरण हो आया तथा वे सोचने लगे, इतने जन्म उन्होंने ऐसे ही गवा दिए। अब उन्हें आत्मकल्याण का उपाय करना चाहिए। एवं उन्होंने उसी दिन से मुनि-दीक्षा ले ली और कई वनों में तप करने लगे।
  • पार्श्वनाथ ने जैन धर्म में चार महाव्रत (सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, अहिंसा) जोङे।
  • चैत्र कृष्ण के दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ और तीर्थंकर बन गए। वे 100 वर्ष तक जीवित रहे। उन्होंने जैन धर्म का प्रचार – प्रसार किया तथा श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन उन्हें सम्मेद पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ।

reference : https://www.indiaolddays.com/

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