राजस्थान का एकीकरण कितने चरणों में हुआ
स्वतंत्रता के समय राजस्थान में 19 राज्य ऐसे थे, जिनके शासकों के सम्मान में तोपों की सलामी दी जाती थी। 3 छोटे राज्य ऐसे थे, जिनके राजाओं को यह सम्मान प्राप्त नहीं था। इन सभी राज्यों के अलावा अजमेर-मेरवाङा का छोटा-सा इलाका भी था जो सीधे अंग्रेजी शासन के नियंत्रण में था।
ये सभी मिलकर एक विशाल संगठित क्षेत्र का निर्माण चाहते थे। अतः भारत सरकार के रियासती विभाग (राज्य मंत्रालय ) ने इन सभी को मिलाकर एकीकृत राजस्थान का निर्माण करने का निश्चय किया। परंतु यह काम बहुत ही सावधानी, संयम और धीरे-धीरे संपन्न किया गया। वस्तुतः एकीकृत राजस्थान का निर्माण 7 चरणों में पूरा हो गया।
राजस्थान निर्माण के 7 चरण निम्नलिखित हैं-
पहला चरण- 18 मार्च, 1948
स्वतंत्रता और देश के विभाजन के साथ ही समूचे भारत में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद शुरू हो गये। अलवर और भरतपुर में इसका प्रभाव कुछ ज्यादा ही रहा और जब इन राज्यों के नरेश शांति एवं व्यवस्था को कायम रखने में विफल हो गये तो भारत सरकार ने यहाँ के नरेशों को अपने-2 राज्यों की शासन-व्यवस्था भारत सरकार को सौंप देने की सलाह दी, जो कि मान ली गई।
चूँकि भारत सरकार की नीति विलीनीकरण अथवा समूहीकरण की थी, अतः यह सोचा गया कि अलवर,भरतपुर,करौली और धौलपुर इन चारों राज्यों को मिलाकर एक संघ बना दिया जाये। 27 फरवरी, 1948 को भारत सरकार ने उपर्युक्त चारों राज्यों के नरेशों को दिल्ली बुलाया तथा उनके सामने संघ का प्रस्ताव रखा, जिसे सभी ने स्वीकार कर लिया। इस संघ का नाम मत्स्य संघ रखा गया और 18 मार्च, 1948 को इसका विधिवत् उद्घाटन हुआ।
जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का ‘राजस्थान’ में विलय कर दिया जाएगा।
इस प्रकार एकीकृत राजस्थान के निर्माण का प्रथम चरण पूरा हुआ।
दूसरा चरण 25 मार्च, 1948
जिस समय मत्स्य संघ के निर्माण की वार्ता चल रही थी, उसी दौरान भारत सरकार राजस्थान के छोटे राज्यों – बांसवाङा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाङ, किशनगढ, कोटा, प्रतापगढ, शाहपुरा और टोंक के नरेशों के साथ भी वृहद् संघ के निर्माण हेतु बातचीत कर रही थी। सभी की स्वीकृति मिल जाने के बाद राज्यों को मिलाकर संयुक्त राजस्थान का निर्माण किया गया। इसका उद्घाटन 25 मार्च, 1948 को किया गया। इसके साथ ही दूसरा चरण पूरा हुआ।
तीसरा चरण 18 अप्रैल, 1948
संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के तीन दिन बाद ही उदयपुर के महाराणा ने भी इसमें सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की। अतः संयुक्त राजस्थान राज्य के पुनर्गठन की आवश्यकता हुई।
माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख बनाया गया, कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उपराजप्रमुख बनाया गया।
अंत में 18 अप्रैल, 1948 को नये संयुक्त राजस्थान के निर्माण की घोषणा की गई और पंडित जवाहरलाल नहेरु ने स्वयं इसका उद्घाटन किया। एकीकृत राजस्थान के निर्माण का यह तीसरा चरण था।
चौथा चरण 30 मार्च,1949
अब केवल जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर के राज्य शेष रह गये। उनके विलीनीकरण अथवा सामूहीकरण में विलंब का एकमात्र कारण यही रहा कि भारत सरकार इस उधेङबुन में फँसी रही कि उन्हें संयुक्त राजस्थान में सम्मिलित किया जाय, अथवा तीनों सीमांत राज्यों – जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर को मिलाकर एक केन्द्रीय शासन क्षेत्र के रूप में रखा जाय। क्योंकि इन तीनों की सीमाएँ पाकिस्तान से सटी हुई थी। और सुरक्षा की दृष्टि से इस लंबे सीमांत की रक्षा एक कठिन समस्या थी. परंतु स्थानीय जनता की भावना शेष राजस्थान के सथा संयुक्त होने की थी। अतः भारत सरकार को अपना विचार बदलना पङा और 14 जनवरी, 1949 को सरदार पटेल ने वृहत्तर उद्घाटन भी सरदार पटेल के हाथों ही हुआ। 15 मई, 1949 को मत्स्य संघ का शासन दायित्व भी वृहत्तर राजस्थान को हस्तांतरित कर दिया गया।
इसका उद्घाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। यह राजस्थान राज्य का एक अंग बन गया।
बीकानेर रियासत ने सर्वप्रथम भारत में विलय किया। यही 30 मार्च आज राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। इस कारण इस दिन को हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। एकीकरण का चौथा चरण पूरा हुआ।
पांचवा चरण 15 मई, 1949
15 मई, 1949 को मत्स्य संध का विलय ग्रेटर राजस्थान में करने की औपचारिकता भी भारत सरकार ने निभा दी। भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था, कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया।
छठा चरण 26 जनवरी, 1950
भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है, क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोवगढ की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल ही देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई में और शेष रियासत का विलय राजस्थान में किया गया।
सांतवा चरण 1नवंबर, 1956
अब तक अलग चल रहे आबू देलवाडा तहसील को राजस्थान के लोग खोना नहीं चाहते थे, क्योंकि इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबूपर्वत भी आता था, दूसरे राजस्थानी, बच चुके सिरोही वासियों के रिश्तेदार और कईयों की तो जमीन भी दूसरे राज्य में जा चुकी थी। आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन कारियों के जायज कारण को भारत सरकार को मानना पड़ा और आबू देलवाडा तहसील का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया।
इस चरण में कुछ भाग इधर उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गयी। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल थापा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड जिले के उप जिला सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।
इसी के साथ राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। 1 navambar 1956 को राजप्रमुख का पद समाप्त कर राज्यपाल का पद सृजित किया गया था।
निष्कर्ष
नरेश-राज्यों का शांतिपूर्वक भारतीय संघ में विलय भारत सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की अभूतपूर्व सफलता थी। केवल हैदराबाद के मामले में पुलिस कार्यवाही का सहारा लेना पङा। इस संपूर्ण प्रक्रिया में स्थानीय नेताओं तथा अनेक नरेशों ने भी आपसी मतभेदों को भुलाकर सरकार को पूरा-2 सहयोग दिया।
इससे भारतीय गणराज्य के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण सहायता मिली। राजनैतिक दृष्टि से भारत की एकता सुदृढ हो गई।
Reference : https://www.indiaolddays.com/