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रॉलेट-एक्ट क्या था एवं कब पारित किया गया

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी दल अत्यधिक सक्रिय हो गये थे। इनको कुचलने के लिए सरकार ने भारत रक्षा अधिनियम (India protection act)पारित किया था।

युद्ध समाप्त हो चुका था और इस अधिनियम की अवधि भी समाप्त होने वाली थी किन्तु अंग्रेज नौकरशाही क्रांतिकारियों तथा उग्र विचार के राष्ट्रीय नेताओं को दबाने के लिये इस कानून को किसी न किसी रूप में रखना चाहती थी।

अतः अंग्रेज सरकार ने 1918 में न्यायाधीश रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की, जिसे क्रांतिकारी गतिविधियों की रोकथाम के लिए उपाय बताने को कहा गया।

इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर फरवरी, 1919 में न्यायाधीश भारत सरकार ने दो विधेयक प्रस्तावित किये, जो पारित होने के बाद रॉलेट-एक्ट के नाम से विख्यात हुए।इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति पर संदेह मात्र होने पर उसे बंदी बनाया जा सकता था और बिना मुकदमा चलाये, उसे चाहे जितने समय तक जेल में रखा जा सकता था।

इस समय प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। देश में कोई विशेष क्रांतिकारी आंदोलन नहीं चल रहा था। अतः इस प्रकार के कानून की कोई आवश्यकता नहीं थी।

विधेयक प्रस्तावित होते ही गाँधीजी ने घोषणा की कि यदि ये कानून पास कर दिये तो इन कानूनों का विरोध करने के लिए वे सत्याग्रह करेंगे।

सरकार अपनी तानाशाही कब छोङने वाली थी। सरकार ने भारतीय नेताओं के विरोध की उपेक्षा करके 21 मार्च,1919 को इस कानून को लागू कर दिया।

महात्मा गाँधी द्वारा रॉलेट-एक्ट का विरोध

महात्मा गाँधी ने अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार इस कानून का विरोध करने का निश्चय किया। महात्मा गाँधी ने लोगों को 6 अप्रैल,1919 को देशव्यापी हङताल के लिए आह्वान किया। 6अप्रैल को सारे देश में हङताल रखी गई तथा जुलूस निकाले गये।

दिल्ली में जुलूस का नेतृत्व स्वामी श्रद्धानंद ने किया। यूरोपियन सैनिकों ने उन पर गोली चलाने की धमकी दी।स्वामी श्रद्धानंद ने अपनी नंगी छाती उनके सामने कर दी। किन्तु उस समय जुलूस पर गोली नहीं चलाई गयी।

जब जुलूस दिल्ली के रेलवे स्टेशन के पास पहुँचा, तब उस पर गोली चला दी गई।इससे 5 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई, कुछ अन्य लोगों के सख्त चोटें आई।

लाहौर में भी गोली चली और पंजाब में उपद्रव हुए। पंजाब के उपद्रव का समाचार सुनकर तथा स्वामी श्रद्धानंद एवं पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉ. सत्यापाल का निमंत्रण मिलने पर गाँधीजी 8 अप्रैल,1919 को दिल्ली की तरफ रवाना हुए।

मार्ग में गाँधीजी को सरकार का नोटिस मिला कि वह दिल्ली और पंजाब में प्रविष्ट न हों। गाँधीजी ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया।अतः पलवल(हरियाणा) में गाँधीजी को गिरफ्तार करके उन्हें वापिस भेज दिया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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