साइमन कमीशन भारत से वापस क्यों गया
1919 के भारत शासन अधिनियम में कहा गया था, कि अधिनियम के पारित होने के दस वर्ष बाद एक संवैधानिक आयोग की नियुक्ति की जायेगी।जो इस बात की जाँच करेगा कि अधिनियम व्यवहार में कहाँ तक सफल रहा है।तथा भारत उत्तरदायी शासन की दिशा में कहाँ तक प्रगति करने की स्थिति में है।
आयोग की नियुक्ति दस वर्ष बाद की जानी थी। लेकिन ब्रिटेन सरकार ने दो वर्ष पूर्व ही साइमन कमीशन की नियुक्ति कर दी।क्योंकि उसे यह आशंका थी, कि दो वर्ष लेबर दल की सरकार भारत समर्थक सदस्यों वाले वैधानिक आयोग की नियुक्ति कर सकती है।
जिस समय साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई। उस समय भारत में समग्र राजनीतिक वातावरण क्रांतिकारी आतंकवादी गतिविधियों के कारण भयानक उत्तेजनापूर्ण था, 1926-27 में साम्प्रदायिकता के कारण दंगा और खून-खराबा हो रहा था।
साइमन कमीशन(1927-28) ( saiman kameeshan ) का गठन
सर जान साइमन (Sir John Simon)की अध्यक्षता में गठित, साइमन आयोग में कुल सात सदस्य थे। चूँकि इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे, इसलिए कांग्रेसियों ने इसे श्वेत कमीशन कहा।
11दिसंबर,1927 को इलाहाबाद (Allahabad)में हुए एक सर्वदलीय सम्मेलन में, आयोग में एक भी भारतीय सदस्य को न नियुक्त किये जाने के कारण, इसके बहिष्कार का निर्णय लिया गया।
तत्कालीन राजनीतिक दलों में लिबरल फेडरेशन (तेजबहादुर), भारतीय औद्योगिक वाणिज्यिक काँग्रेस, हिन्दू महासभा,किसान मजदूर पार्टी,मुस्लिम लीग आदि ने आयोग के बहिष्कार का समर्थन किया।
कालांतर में मुस्लिम लीग का एक गुट मुहम्मद शफी के नेतृत्व में, साइमन कमीशन का समर्थक हो गया था। कुछ अन्य दल जिन्होंने आयोग का समर्थन किया-जस्टिस पार्टी(मद्रास) तथा यूनियनिस्ट पार्टी(पंजाब) आदि।
3 फरवरी, 1928 को आयोग बंबई पहुँचा,उस दिन पूरी बंबई में हङताल का आयोजन कर, काले झंडे के साथ साइमन वापस जाओ के नारे लगाये गये।
जहां-2 आयोग गया वहां-2 साइमन गो बैक के नारे के साथ आयोग का स्वागत किया गया। लखनऊ में खलीकुज्जमा और मद्रास में टी.प्रकाशम ने अनोखे अंदाज में आयोग का विरोध किया। लखनऊ में आयोग के विरोध के समय प.जवाहरलाल नेहरू तथा गोविंद वल्लभ पंत को लाठिया खानी पङी।
लाहौर में बीमारी की हालत में भी लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai)आयोग का विरोध करने वाली एक बङी भीङ का नेतृत्व कर रहे थे। तभी पुलिस ने इतने बर्बर तरीके से उन्हें पीटा की कुछ दिन बाद लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
मरने से पूर्व लाला लाजपत राय का यह कथन ऐतिहासिक सिद्ध हुआ, कि मेरे ऊपर जो लाठियों के प्रहार किये गये हैं वही एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत(शवपेटी) की आखिरी कील साबित होगा।
लाला लाजपतराय की मृत्यु से क्रोधित होकर चंद्रशेखर और सरदार भगतसिंह ने साण्डर्स की हत्या कर दी।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट
1928-29 के बीच कमीशन ने भारत की दो बार यात्रा की ।आयोग ने मई, 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी, जिस पर लंदन (London)में आयोजित गोलमेज सम्मेलनों ( golamej sammelan )में विचार होना था।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट की मुख्य बातें निम्नलिखित थी-
- भारत सचिव को परामर्श देने के लिए भारत परिषद् कायम रखी जाय, किन्तु इसकी शक्ति को कम किया जाय।
- भारत में संघ व्यवस्था लागू की जाय,जिसमें ब्रिटिश प्रांतों और देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल हों।
- प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर प्रांतों को स्वायत्तता दे दी जाय, सारा प्रांतीय शासन मंत्रियों को सौंप दिया जाये। ताकि वे विशेष परिस्थतियों में मंत्रियों की सलाह की उपेक्षा कर सकें।
- कम से कम 10 या 15 प्रतिशत आबादी को वोट देने का अधिकार होना चाहिये।साम्प्रदायिक निर्वाचान पद्धति को कायम रखा जाये।
- प्रांतीय विधान मंडलों का विस्तार किया जाय,जिनमें सरकारी अधिकारी बिल्कुल न रहें और सरकारी अधिकारियों की संख्या, विधान मंडल के समस्त सदस्यों के दसवें भाग से अधिक न हो।
- बर्मा को भारत से तथा सिंध को बंबई से अलग कर दिया जाये।उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत को प्रांतीय स्वायत्तता न दी जाय।
- उच्च न्यायालयों को भारत सरकार के अधीन कर दिया जाय।
- हर दस वर्ष बाद भारत की संवैधानिक प्रगति की जाँच की पद्धति समाप्त कर दी जाय, और नया संविधान ऐसा लचीला तैयार किया जाय कि वह स्वयं ही विकसित हो सके।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट में औपनिवेशिक स्वराज्य का कही उल्लेख नहीं था। केन्द्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिये कुछ नहीं कहा गया था।
प्रतिरक्षा को भारतीयों के हाथों में नहीं सौंपा गया था। प्रांतों को भी स्वायत्तता देकर गवर्नर की विशेष शक्तियों द्वारा सीमित कर दिया गया था।इसलिए भारतीयों ने इसकी निंदा की।
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में साइमन आयोग विरोधी आंदोलन युगांतकारी घटना सिद्ध हुई। इसने जन आंदोलन के साथ-2 भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को निर्णायक दौर में पहुँचा दिया।
Reference : https://www.indiaolddays.com/