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सप्त सैंधव प्रदेश (आर्यावर्त ) : आर्यों ( हिन्दूओं ) का प्रारंभिक स्थल

सप्त सैंधव प्रदेश अथवा सप्त सिंधु आर्य लोगों का प्रारंभिक निवास स्थल माना जाता है। वेदों में गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी,नर्मदा आदि प्रमुख नदियों का उल्लेख है।

सप्त सैंधव भारतवर्ष का उत्तर पश्चिमि भाग था। इसे आर्यों का आदिदेश कहा गया है।

विस्तार

सप्त सैंधव प्रदेश का विस्तार कश्मीर, पाकिस्तान और पंजाब के अधिकांश भागों में था। आर्य, उत्तरी ध्रुव, मध्य एशिया अथवा किसी अन्य स्थान से भारत आये थे, यह मान्यता भारतीय विद्वानों में पूर्ण रूप से स्वीकार्य नहीं है।अलग – अलग विद्वानों के अलग – 2 मत हैं।  भारत में ही नहीं विश्व भर में संख्या ‘सात’ का आश्चर्यजनक मह्त्व है, जैसे सात सुर, सात रंग, सप्तॠषि, सात सागर, आदि। इसी तरह सात नदियों के कारण सप्त सैंधव प्रदेश का  नामकरण हुआ था।

सप्त सैंधव प्रदेश = सिंधु नदी +सिंधु नदी की 5 सहायक नदी + सरस्वती नदी।

सप्त सैंधव प्रदेश में निम्नलिखित नदियां थी-

  • सिंधु
  • सरस्वती
  • वितस्ता (झेलम)
  • अस्किनी (चेनाब)
  • पुरुष्णी (रावी/ इरावदी)
  • शतुद्री (सतलज)
  • विपासा (व्यास)

ऋग्वेद में 42 नदियों का उल्लेख है जिसमें से मुख्य नदियां निम्नलिखित हैं-

  • क्रुमु (कुरुम),
  • गोमती (गोमल),
  • कुभा (काबुल)
  • सुवास्तु (स्वात)
  •  वितास्ता (झेलम)
  • आस्किनी(चेनाब)
  • परुष्णी (रावी),
  • शतुद्र (सतलज),
  • विपासा (व्यास)

सरस्वती नदी सबसे पवित्र नदी मानी गई है। इसके तट पर वैदिक मंत्रो की रचना की गई थी। इसे नदियों में अग्रवती,नदियों की माता, वाणी, बुद्धी, संगीत की देवी कहा गया है। सरस्वती नदी को नदीत्तमा नाम से भी जाना गया है क्योंकि यह नदी ऐसी अदभुद नदी है जो एक स्थान पर दिखती है , तो दूसरे स्थान पर अदृश्य हो जाती है।

विपास(व्यास) नदी के तट पर ही इन्द्र ने उषा को पराजित किया। और उसके रथ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया।

सिन्धु नदी को उसकेआर्थिक महत्व के कारण हिरण्यनी कहा गया है। सिन्धु नदी द्वारा ऊनी वस्त्रों का व्यवसाय होने के कारण इसे ऊर्णावती भी कहा गया है। सुषोम पर्वत से निकलने के कारण इसे सुषोमा भी कहा गया है। ऋग्वेद में सिन्धु नदी की चर्चा सर्वाधिक हुयी है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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