मध्यकालीन भारतइतिहासमुगल कालशाहजहाँ

शाहजहाँ की धार्मिक नीति

Shah Jahan

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-

शाहजहाँ ने अपने शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में इस्लाम का पक्ष लिया किन्तु कालांतर में दारा और जहाँआरा  के प्रभाव के कारण सहिष्णु बन गया था।

जहाँआरा ने 1636-37 ई. में सिजदा एवं पायवोस प्रथा को समाप्त कर दिया तथा उसके स्थान पर चहार-तस्लीम की प्रथा शुरू करवायी। तथा पगङी में बादशाह की तस्वीर पहनने की मनाही कर दी।

शाहजहाँ ने इलाही संवत् के स्थान पर हिजरी संवत् चलाया, हिन्दुओं को मुसलमान गुलाम रखने से मना कर दिया,हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा कर लगाया(यद्यपि कुछ समय बाद हटा लिया) तथा गो-हत्या निषेध संबंधी अकबर और जहाँगीर के आदेश को समाप्त कर दिया।

शाहजहाँ ने 1633ई. में पूरे साम्राज्य से नवनिर्मित हिन्दू मंदिरों को गिरा देने का हुक्मनामा जारी किया। जिसके फलस्वरूप बनारस,इलाहाबाद, गुजरात और कश्मीर में अनेक मंदिर तोङे गये।

शाहजहाँ ने जुझारसिंह के परिवार के कुछ सदस्यों को बलात् इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया था।

शाहजहाँ ने 1634ई. में यह पाबंदी लगा दी कि कोई मुसलमान लङकी तब तक हिन्दू लङके से नहीं ब्याही जा सकती जब तक कि वह इस्लाम धर्म स्वीकीर न कर ले।

पुर्तगालियों से युद्ध होने पर उसने आगरे के गिरजाघरों को तुङवा दिया था।

उसने अपने शासनकाल के 7वें वर्ष में यह आदेश निकाला कि, यदि आप इस्लाम धर्म स्वीकार करते हो तो आपको अपने पिता की संपत्ति का हिस्सा मिलेगा।

शाहजहाँ ने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए एक पृथक विभाग स्थापित किया था।

शाहजहाँ ने 2लाख 50हजार रुपये की कीमत के हीरे-जवाहरातों से जङीं हुई मशाल मुहम्मद साहब के मकबरे को भेंट की तथा 50हजार रुपये मक्का के धर्मगुरू को भेंट किये।

शाहजहाँ नियमित रूप से मक्का और मदीना के मुल्लाओं और फकीरों को दान – दक्षिणा भेजता था।

किन्तु इन कार्यों के अलावा उसने ऐसे कार्य भी किये जो उसकी  धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देते हैं।

शाहजहाँ ने झरोखा – दर्शन, तुलादान और हिन्दू राजाओं के माथे पर तिलक लगाने की प्रथा को जारी रखा।

शाहजहाँ ने अहमदाबाद के चिंतामणि मंदिर की मरम्मत किये जाने की आज्ञा दी। तथा खंभात के नागरिकों के अनुरोध  किये जाने पर गोहत्या पर पाबंदी लगा दी।

रसगंगाधर और गंगालहरी के लेखक पंडित जगन्नाथ शाहजहाँ का राजकवि था।इसके अतिरिक्त चिंतामणि, कवीन्द्राचार्य और सुंदरदास आदि अनेक हिन्दू लेखक भी उसके दरबार में रहते थे।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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