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शाक्त धर्म का अर्थ क्या है

शाक्त सम्प्रदाय  हिंदू धर्म के तीन प्रमुख सम्प्रदायों (भागवत , शैव , शाक्त ) में से एक है। इस धर्म में सर्वशक्तिमान को पुरुष न मानकर देवी माना गया है। वैसे तो मातृदेवी की उपासना का सूत्र पूर्व वैदिक काल में भी खोजा गया है। लेकिन देवी या शक्ति की उपासना का सम्प्रदाय वैदिक काल जितना ही प्राचीन है।

  • शाक्त सम्प्रदाय का शैव मत के साथ घनिष्ठ संबंध है।
  • इस आदि शक्ति या देवी की पूजा का स्पष्ट उल्लेख महाभारत में प्राप्त होता है।
  • पुराणों के अनुसार शक्ति की उपासना में मुख्यतः काली तथा दुर्गा की उपासना तक सिमित है।
  • वैदिक साहित्य में उमा, पार्वती, अम्बिका, हेमवती, रुद्राणी तथा भवानी जैसे नाम मिलते हैं।
  • ऋग्वेद के दशम् मंडल में एक पूरा सूक्त ही शक्ति की उपासना में विवृत है जिसे तांत्रिक देवी सूक्त कहते हैं।
  • चौसठ योगिनी का मंदिर (जबलपुर) शाक्त धर्म के विकास तथा प्रगति में काफी हद तक सहायक है।
उपासना पद्दत्ति-

शाक्तों के दो वर्ग हैं – कौलमार्गी और समयाचारी।

कौलमार्गी शाक्त – ये पूर्ण रूप से अद्वैतवादी साधक कौल कहे जाते हैं, जो कर्दम तथा चंदन में, शत्रु और पुत्र में,  श्मशान तथा भवन में,  तथा कांचन और तृण में कोई भेद नहीं समझते हैं। कौल मार्गी पंचमकार की उपासना करते हैं। जिसमें मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन है, जो से प्रारंभ होते हैं।

शाक्त धर्म का उद्देश्य-

शाक्त धर्म का उद्देश्य मोक्ष है। शाक्त का अर्थ हम यह भी लगा सकते हैं, कि शक्तिका संचय करो। शक्ति ही जीवन है। नाथ तथा शाश्वत संप्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह – तरह के योग तथा साधना करते हैं। शाक्त धर्म का मानना है कि शक्ति नहीं है तो सिद्धि, बुद्धि तथा समृद्धि का कोई अर्थ नहीं है।

 Reference : https://www.indiaolddays.com/

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