आधुनिक भारतइतिहासविदेशी सम्बन्ध

शिमला समझौता(Shimla Agreement) क्या थाःयह किस-किस के बीच हुआ

शिमला समझौता 3 जुलाई, 1972 को हुआ था।यह समझौता भारत एवं पाकिस्तान के बीच एक शांति समझौता था।1971 के भारत पाक युद्ध के बाद शिमला समझौता हुआ।

1971 में भारत एवं पाक के बीच हुई लङाई के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  • पाकिस्तान धार्मिक एवं साम्प्रदायिक आधार पर भी भारत के लिए समस्याएं उत्पन्न करता रहा है। अप्रैल, 1963 में हजरल बल कांड को लेकर पाकिस्तान ने कश्मीर में साम्प्रदायिक दंगे कराने का प्रयास किया।
  • पाकिस्तान ने 2 मार्च, 1963 को चीन के साथ गैर कानूनी समझौता करके 2000 वर्ग मील ( 5180 वर्ग किमी.) पाक अधिकृत कश्मीर का भू भाग उपहार के रूप में चीन को दे दिया।
  • इसी प्रकार 1965 में कश्मीर में घुसपैठिए भेजकर विद्रोह भङकाने के लिए साम्प्रदायिक विष का सहारा लिया। 1969 में रबात मुस्लिम शिखर सम्मेलन में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया खाँ ने भारतीय प्रतिनिधि मंडल के साथ बैठने से इंकार कर दिया।

पाकिस्तान में जनरल याहिया खाँ के स्थान पर सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो के हाथों में आ गयी। भुट्टों और भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 3 जुलाई 1972 को शिमला में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसे शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है।

पाकिस्तान की माँग और मुहम्मद अली जिन्ना

यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसंबर,1971 में हुई लङाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 93,000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था, और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी।

शिमला समझौता अपने आप में महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें भारत व पाकिस्तान के बीच शांति और मैत्री स्थापित करने की बात है। इस समझौते में भारत ने युद्ध के दौरान बंदी बनाये गये 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को पाकिस्तान को वापिस लौटा दिया था।

लेकिन भारत के कुछ सैनिक जिनको पाकिस्तान ने बंदी बनाया था, उनको पाकिस्तान ने आज तक भी नहीं लौटाया है।

यह समझौता करने के लिए पाकिस्तानी तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो अपनी पुत्री बेनजीर भुट्टो के साथ 28 जून, 1972 को शिमला पधारे।

ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल की जंग करने की कसमें खायी थी।

28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परंतु किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके।

तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से बेनजीर भुट्टो और भारत की ओर से इंदिरा गाँधी ने हस्ताक्षर किये थे।

यह समझना कठिन नहीं है, कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बङी विदेशी ताकत का दबाव था।इस समझौते से भारत को पाकिस्तान के सभी 93,000 से अधिक युद्धबंदी छोङने पङे। और युद्ध में जीती गयी 56,00 वर्ग मील जमीन भी लौटानी पङी।

इसके बदले में भारत को कुछ भी नहीं मिला। यहाँ तक कि पाकिस्तान में भारत के जो युद्ध बंदी थे, उनको भी भारत वापस नहीं ले सका और वे 41 साल से आज भी अपने देश लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

अपना सब-कुछ लेकर पाकिस्तान ने एक थोथा सा आश्वासन भारत को दिया,कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा।

लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकङों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया है।

इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि, 17 दिसंबर,1971 अर्थात् पाकिस्तानी सेनाओं के समर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति में थी, उस रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा माना जायेगा। कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा।

लेकिन पाकिस्तान अपने इस वचन पर कभी भी नहीं रहा।सब जानते हैं कि 1999 में कारगिल में पाकिस्तान सेना ने जानबूझकर घुसपैठ की और इस कारण भारत को कारगिल में युद्ध लङना पङा।

शिमला समझौते के प्रमुख प्रावधान-

  • यह प्रावधान किया गया कि दोनों देश अपने संघर्ष और विवाद समाप्त करने का प्रयास करेंगे।
  • यह वचन दिया गया कि उप-महाद्वीप में स्थाई मित्रता के लिए कार्य किया जाएगा।
  • दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और किसी भी स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे।
  • दोनों देश एक दूसरे के विरुद्ध न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखंडता की अवहेलना करेंगे। और न ही एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे।
  • दोनों सरकारें एक दूसरे देश के विरुद्ध प्रचार को रोकेंगी और ऐसे समाचारों को प्रोत्साहन देंगी जिनसे संबंधों में मित्रता का विकास हो।
  • दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सभी संचार संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे।
  • आवागमन की सुविधाएँ दी जाएंगी, ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ-जा सकें और घनिष्ठ संबंध स्थापित कर सकें।
  • जहां तक संभव होगा व्यापार और आर्थिक सहयोग शीघ्र ही फिर से स्थापित किेए जायेंगे।
  • विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में आपसी सहयोग को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  • दोनों देशों ने 17 दिसंबर, 1971 की युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा के रूप में मान्यता दी।
  • यह तय हुआ कि समझौते के बीस दिन के अंदर सेनाएं अपनी-2 सीमा से पीछे चली जाएंगी।
  • यह भी तय किया गया कि भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे और इस बीच अपने संबंध सामान्य बनाने के लिए दोनों देशों के अधिकारी बातचीत करते रहेंगे।
  • शिमला समझौते के बाद पाकिस्तान ने दशकों से भारत के साथ कई सैन्य कार्यवाही जारी रखी। हर बार युद्ध में हारने के बाद भी पाकिस्तान ने सैन्य कार्यवाही ,आतंकवादी गतिविधियों को जारी रखा।और कश्मीर समस्या को और ज्यादा पेचीदा और उलझा हुआ मुद्दा बना दिया।
  • साथ ही चीन को कश्मीर के मुद्दे पर पाक. ने खुद के पक्ष में रखने के लिए पी.ओ.के.(P.O.K.) के उत्तर में स्थित एवं छोटे से भाग को चीन को सौंप दिया। जिस का विरोध भारत संयुक्त राष्ट्र में भी कर चुका है।

इन सभी बातों से साफ है कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को शांति से हल करने के पक्ष में नहीं है। साथ ही आज पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद को एक्सपोर्ट करने वाला देश बन गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

Related Articles

error: Content is protected !!