प्राचीन भारतवैदिक काल

6 वेदांग और उनका संक्षिप्त परिचय

वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों के अंग। वेदांग हिन्दू धर्म ग्रंथ हैं, इनकी संख्या 6 है।

  • शिक्षा
  • व्याकरण
  • ज्योतिष
  • निरुक्त
  • छंद
  • कल्प

    शिक्षा-

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वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण के लिये इसकी रचना हुई। इससे संबंधित प्राचीनतम ग्रन्थ – प्रतिशाख्य है।

  • व्याकरण-

वेदों में प्रयुक्त की गई संस्कृत – व्याकरण का सरलीकरण इसमें मिलता है। संबंधित ग्रंथ – पाणिनि का अष्टाध्यायी(5 वी. शता. ई.पू.)।

  • ज्योतिष-

शुभ – अशुभ तथा वैदिक यज्ञों में कर्मकांडों के शुभ- अशुभ फलों के प्रभाव को जानने के लिये ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है। इससे संबंधित ग्रंथ – मागध मुनि का वेदांग ज्योतिष

  • निरुक्त –

इसमें वैदिक साहित्य में प्रयुक्त कठिन शब्दों की व्युत्पत्ति मिलती है। इससे संबंधित ग्रंथ – निगंठु । इस ग्रंथ में वैदिक साहित्य के कठिन शब्द मिलते हैं।

  • छंद-

वैदिक साहित्य के मंत्रों के लिये प्रयुक्त किये गये विभिन्न छंदों का उल्लेख छंद नामक वेदांग में हुआ है। इससे संबंधित ग्रंथ- पिंगलमुनि का छंद सूत्र।

  • कल्प –

वैदिक साहित्य में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के कर्म – कांडों को कल्प सूत्र में लिखा गया है।

इसके 4 भाग हैं(कल्प को ही सूत्र साहित्य कहा गया है)-

  1. धर्म सूत्र-

वैदिक समाज के सामाजिक नियम – कानून सूत्र रूप में मिलते हैं । इसमें एक – एक पंक्ति में श्लोक मिलते हैं। इसी धर्म सूत्र पर आगे स्मृति ग्रंथ लिखे गये।

2.गृह्य सूत्र-

व्यक्ति और परिवार से संबंधित व्यक्तियों और कर्म – कांडों का उल्लेख है।

3.श्रौत सूत्र-

  इस सूत्र में संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिये विविध प्रकार के कर्मकांड दिये हुये हैं।

4.शुल्व सूत्र- 

शुल्व का शाब्दिक अर्थ होता है-रस्सी । इसमें वैदिक यज्ञों के निर्माण की विधि (हवन कुण्ड को बनाने की विधि) बताई गई है। यज्ञ वेदियों का प्रकार कैसा होगा , वो सब इसमें बताया गया है। इसे भारतीय ज्यामिति का प्राचीनतम ग्रंथ कहा गया है।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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